जयपाल की घुड़चढ़ी पर तीन कविताएं
दलित दुल्हे को विवाह में घुड़चढ़ी के वक्त घोड़ी से उतार देना,उससे दुर्व्यवहार करना , उसे नीचा दिखाना और उसकी जातिगत हैसियत का एहसास करवाना ,उत्तरी भारत के गांवों में आम बात है। हाल ही में हरियाणा के एडवांस कहे जाने वाले जिला पंचकूला के गांव मौली में घुड़चढ़ी को लेकर गांव के दबंगों और दलित वर्ग के बीच विवाद उत्पन्न हुआ है। गांव में अभी भी तनाव बना हुआ है। इस विषय पर प्रस्तुत हैं जयपाल की तीन कविताएं—-
1.
घुड़चढ़ी का सवाल
पवित्र ग्रंथ ,पवित्र-मूर्तियां
पंडे-पुजारियों के आसन
संत-महात्माओं के मंच
पीर-पैगंबरों की समाधियां
पंचायतों के चबूतरे
महल-चौबारे-हवेलियां
शोभायमान सब
ऊपर-ऊपर, ऊंचे- ऊंचे
जातियां जो मुख से पैदा हुई
भुजाओं और उदर से
मतलब ऊपरी हिस्सों से
वे भी शोभायमान
ऊपर-ऊपर, ऊंचे-ऊंचे
ऊंचे लोग, ऊंची पसंद
ब्याहने जाएंगे बहू को
ऊपर-ऊपर चलकर
ऊंचे-ऊंचे, उचक-उचककर कूदते हुए
घोड़ी, बग्घी, रथ, बी. एम. डब्ल्यू. पर सवार होकर
सब कुछ ऊंचे-ऊंचे, ऊपर-ऊपर
सबसे ऊपर
लेकिन
जिनके टूटे-फूटे घर
गांव के बाहर नीची सी जगह
दलदल में धंसी एक बस्ती
ऊंची-नीची,टेढी-मेढी ,गिरी-पड़ी छतें
लोग जिन्हें दलित बस्ती कहते हैं
या कुछ दूसरे नाम
जिन्हे वे बड़ी हिकारत से लेते हैं
जो लोग रहते हैं वहां
सबके सिर नीचे, गर्दनें झुकी हुई
आंखें गड़ी हुई जमीन में
मुख ,भुजाओं और उदर से
पैदा नहीं हो सके वे
पैरों से पैदा हुए
शरीर की सबसे निचली जगह से
कहते हैं–
घुड़चढ़ी करेंगे
और ब्याहने जाएंगे घोड़ी पर बैठकर
मतलब पैर करेंगे बराबरी
मुख, बाजू और उदर की
उल्टे बांस बरेली को !
2.
घुड़चढ़ी से खतरा
आज घोड़ी पर चढ़ गए
तो कल सिर पर चढ़ जाएंगे
परसों छाती पर
तरसों खेतों , मकानों पर
पंचायत , प्रशासन पर
औेर एक दिन देश के शासन पर
बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है
पैरों की जुत्ती पैरों में ही शोभा देती है !
3.
घोड़ी और घुड़चढ़ी
आज घोड़ी बहुत उदास थी
डरी सहमी सी
आशंकित और आतंकित
चल रही थी बहुत धीरे-धीरे
जैसे जाना हो किसी अप्रत्याशित जंग में
दरअसल आज उसे जाना था
अपने गांव के एक दलित मौहल्ले में
घुड़-चड़ी की रस्म के लिए।