अब आरएसएस ने भाजपा के साथ मतभेदों से पल्ला झाड़ा, मतभेद की खबरों को किया खारिज

 

आकुव

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा ) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच मतभेदों की लगातार चर्चा के बीच शुक्रवार को संघ ने भाजपा के साथ अपने मतभेद की खबरों को खारिज किया और इसे भ्रम पैदा करने की कोशिश करार दिया।


लोकसभा चुनावों के दौरान ही  भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा था कि अब भारतीय जनता पार्टी सशक्त हो गई है और आरएसएस की जरूरत नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय और मौजूदा समय में काफी कुछ बदल चुका है। पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे, हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं।
इसी के बाद नागपुर संघ मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में सरसंघचालक मोहन भागवत ने परोक्ष रूप से भाजपा नेतृत्व के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणियां की थीं।
इस बात की चर्चा दबे छुपे तो काफी समय से चल रही थी कि संघ और भाजपा नेतृत्व के बीच सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। उसे यूं समझ सकते हैं कि आरएसएस का अब भाजपा सरकार पर नियंत्रण खत्म हो चुका है। ऐसा केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद ही सामने आने लगा था लेकिन राजनीति के जानकार पिछले दो तीन साल से इस पर खुलकर अपनी राय रख रहे थे। लोकसभा चुनाव में जाने से पहले से ही भाजपा नेतृत्व ने नारा दे दिया था कि ‘इस बार 370 पार’ । लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद पता चला कि बड़े-बड़े दावे करने वाली भाजपा तो अपने दम पर बहुमत भी नहीं हासिल कर पायी तो लोगों ने कहा कि संघ सक्रिय नहीं था इसलिए वोटरों को मतदान केंद्र तक नहीं ले गई और भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला।
जब यह चर्चा चल रही थी लेकिन इसी बीच नागपुर संघ मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बगैर नाम लिए भाजपा शीर्ष नेतृत्व को अहंकारी तक कह दिया और कई नसीहतें भी दे डालीं तो संघ-भाजपा नेतृत्व में मतभेद को और बल मिला। इसके कुछ ही दिन बाद संघ के मुखपत्र आर्गेनाइजर में रतन शारदा नामक संघ विचारक ने भाजपा और उसके नेतृत्व को काफी खरी खोटी सुनाई। उन्होंने कहा कि अति आत्मविश्वासी भाजपा नेताओं के कारण चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन सामने आया। उन्होंने राज्यों में कांग्रेस के नेताओं को भाजपा में शामिल करने की कटु आलोचना की और तर्क दिया कि जिस कांग्रेसी नेता के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ता आंदोलन चलाते रहे उसको पार्टी में शामिल करने और टिकट देकर चुनाव में उतारने पर कैसे कार्यकर्ता उसके पक्ष में वोट मांगने जाएगा।
रतन शारदा के लेख की आंच धीमी भी नहीं पड़ी थी कि आरएसएस के एक और नेता इंद्रेश कुमार ने एक प्रेस कान्फ्रेंस में भाजपा नेताओं की जमकर लानत मलानत की। उन्होंने भाजपा नेतृत्व की खुले रूप में आलोचना की।
इन सब वाकयों के बाद मीडिया खुलकर भाजपा-संघ के बीच रिश्तों पर चर्चा करने लगा। इसे लेकर न सिर्फ भाजपा नेतृत्व बल्कि आरएसएस की भी फजीहत हो रही थी। इसे देखते हुए अब संघ ने मतभेद की खबरों से इनकार किया है। यह सफाई भी उसी तरह आई है जैसे केंद्र सरकार और भाजपा की सरकारों के पदाधिकारी सामने आकर कुछ नहीं कहते बल्कि उनकी तरफ से की गई ब्रीफिंग को पत्रकार सूत्रों के हवाले से देते हैं। तो 14 जून को सूत्रों के हवाले से आए संघ के बयान में इस बात का खंडन किया गया है कि भाजपा नेतृत्व और संघ नेतृत्व के बीच कोई मनमुटाव चल रहा है।
संघ सूत्रों ने इस बात को भी मानने से इंकार किया कि लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर संघ प्रमुख ने भाजपा नेतृत्व की आलोचना की थी।

सूत्रों ने यह भी कहा कि आरएसएस और भाजपा सहित उसके सहयोगी संगठनों की तीन दिवसीय वार्षिक समन्वय बैठक केरल के पलक्कड़ जिले में 31 अगस्त से शुरू होगी। बैठक में भाजपा अध्यक्ष समेत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है।

आरएसएस सूत्रों ने कहा, “आरएसएस और भाजपा के बीच कोई दरार नहीं है।”

संघ का यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि विपक्षी नेताओं समेत लोगों के एक वर्ग का दावा है कि भागवत की वह टिप्पणी लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं करने के बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को एक संदेश है, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘सच्चा सेवक कभी अहंकारी नहीं होता’

सूत्रों ने कहा, ”2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद उन्होंने (भागवत) जो भाषण दिए थे और इस बार का जो भाषण है , इनमें बहुत अधिक अंतर नहीं है। किसी भी संबोधन में राष्ट्रीय चुनावों जैसी महत्वपूर्ण घटना का संदर्भ होना लाजिमी है।”

उन्होंने कहा, “लेकिन इसका गलत मतलब निकाला गया और भ्रम पैदा करने के लिए इसे संदर्भ से बाहर ले जाया गया। उनकी ‘अहंकार’ वाली टिप्पणी कभी भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या भाजपा के किसी नेता के खिलाफ नहीं थी।”

अपने भाषण में भागवत ने सोमवार को मणिपुर में एक साल बाद भी शांति बहाल ना होने पर चिंता जताई थी। इसके साथ ही उन्होंने चुनाव के दौरान आम विमर्श की आलोचना की थी और चुनाव खत्म होने और परिणाम आने के बाद क्या और कैसे होगा, इस पर अनावश्यक बातचीत के बजाय आगे बढ़ने का आह्वान किया था।

विपक्षी नेताओं ने भाजपा और मोदी पर निशाना साधने के लिए उनकी टिप्पणियों को हथियार बना लिया।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा था कि भले ही ‘एक तिहाई’ प्रधानमंत्री की अंतरात्मा या मणिपुर के लोगों की बार-बार की पुकार भी उन्हें पिघला न पाई, शायद भागवत आरएसएस के पूर्व पदाधिकारी को मणिपुर जाने के लिए राजी कर सकते हैं।”

आरएसएस सूत्रों ने कहा कि विपक्षी नेताओं के इस तरह के दावे कुछ और नहीं बल्कि भ्रम फैलाने की राजनीति है।

संघ सूत्रों ने भाजपा के वैचारिक संरक्षक माने जाने वाले आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार के उस बयान से भी पल्ला झाड़ लिया जिसमें उन्होंने भाजपा पर उसके चुनावी प्रदर्शन को लेकर निशाना साधते कहा था कि ‘भगवान राम ने 241 पर उन लोगों को रोका जो अहंकारी हो गए थे’।

उन्होंने जयपुर में एक कार्यक्रम में कहा, ”जिस पार्टी ने भगवान राम की भक्ति की लेकिन अहंकारी हो गई उसे 241 पर रोक दिया गया… हालांकि वह सबसे बड़ी पार्टी बनी।”

उन्होंने कहा, “और जिन लोगों का राम में कोई विश्वास नहीं था, उन्हें एक साथ 234 पर रोक दिया।” उनका इशारा ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर था जिसे इस चुनाव में 234 सीट मिले।

अपने बयान को लेकर पैदा हुए विवाद के बीच कुमार ने शुक्रवार को कहा कि देश चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन और मोदी के लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से वह खुश हैं।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”इस समय, ताजा खबर यह है कि जो भगवान राम के खिलाफ थे वे सत्ता से बाहर हैं और जो भगवान राम के भक्त थे वे सत्ता में हैं।” उन्होंने कहा कि मोदी के नेतृत्व में देश प्रगति करेगा।

भागवत के भाषण पर चल रही बहस के बारे में पूछे जाने पर कुमार ने कहा, ”बेहतर होगा कि आप संघ के अधिकृत पदाधिकारियों से इस बारे में पूछें। कुमार के गुरुवार के बयान के बारे में पूछे जाने पर आरएसएस के एक पदाधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि यह उनकी निजी राय है और यह संगठन के दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित नहीं करता।

आरएसएस के एक पदाधिकारी ने कहा कि यह कुमार की निजी राय है और यह संगठन के विचार को प्रतिबिंबित नहीं करता। सूत्रों ने इस बात को भी खारिज कर दिया कि आरएसएस इस बार भाजपा के समर्थन में उस तरह से चुनाव प्रक्रिया में शामिल नहीं था, जिस तरह से वह पहले रहा है।

उन्होंने कहा, “आरएसएस प्रचार नहीं करता लेकिन लोगों में जागरूकता पैदा करता है और उसने चुनाव के दौरान अपना काम किया। पूरे देश में हमने लाखों सभाएं की हैं। अकेले दिल्ली में हमने एक लाख से अधिक छोटे समूहों की बैठकें कीं।”

केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री जेपी नड्डा की जगह नए भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति की संभावना के बारे में पूछे जाने पर आरएसएस सूत्रों ने कहा कि उनका संगठन हमेशा इस तरह के महत्वपूर्ण निर्णय के लिए परामर्श प्रक्रिया का हिस्सा रहा है।

एक सूत्र ने कहा, “इस बार भी स्थिति अलग नहीं होगी।” उन्होंने कहा कि भाजपा में आरएसएस पृष्ठभूमि वाले नेताओं का इतिहास रहा है।