नयी दिल्ली। समाचार पोर्टल ‘न्यूजक्लिक’ के संस्थापक और प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को उच्चतम न्यायालय द्वारा उनकी गिरफ्तारी को ‘‘अवैध’’ बताने के कुछ घंटों बाद बुधवार रात को तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया।
पुरकायस्थ पिछले साल दो नवंबर से जेल में बंद थे। उनको पिछले साल तीन अक्टूबर को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज एक मामले में गिरफ्तार किया था।
पुरकायस्थ के खिलाफ आरोप लगाया गया कि ‘न्यूजक्लिक’ को चीन के पक्ष में प्रचार के लिए कथित तौर पर धन मिला था।
पुरकायस्थ के वकील अर्शदीप सिंह खुराना के मुताबिक, प्रवीर रात नौ बजे रोहिणी कारागार की जेल नंबर 10 से बाहर आए। पुरकायस्थ के परिवार के सदस्यों और दोस्तों ने जेल परिसर के बाहर उनका स्वागत किया।
उच्चतम न्यायालय ने यूएपीए के तहत एक मामले में पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को ‘कानून की नजर में अवैध’ करार दिया और उन्हें हिरासत से रिहा करने का आदेश दिया।
न्यायालय ने कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 के तहत गारंटीकृत ‘‘सबसे अटूट’’ मौलिक अधिकार है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यूएपीए या अन्य अपराधों के आरोप में गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप में सूचित किया जाना मौलिक और वैधानिक अधिकार है।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी के ऐसे लिखित आधारों की एक प्रति गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को ‘‘बिना किसी अपवाद के जल्द से जल्द दी जानी चाहिए’’।
शीर्ष अदालत ने पाया कि चार अक्टूबर, 2023 के रिमांड आदेश के पारित होने से पहले पुरकायस्थ या उनके वकील को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप से ‘संचार की कथित कवायद’ में रिमांड आवेदन की प्रति प्रदान नहीं की गई थी, जो उनकी गिरफ्तारी और उसके बाद रिमांड को निष्प्रभावी करता है।
उसने कहा, ‘‘तदनुसार, अपीलकर्ता (पुरकायस्थ) की गिरफ्तारी और उसके बाद उनकी रिमांड का आदेश और इसी तरह दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को भी कानून की नजर में अमान्य घोषित किया जाता है और खारिज किया जाता है।’’
फैसला सुनाते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हालांकि, हम अपीलकर्ता को मुचलका प्रस्तुत करने की आवश्यकता के बिना रिहा करने का निर्देश देने के लिए राजी हो जाते, लेकिन चूंकि आरोप पत्र दायर किया गया है, इसलिए हमें यह निर्देश देना उचित लगता है कि अपीलकर्ता को निचली अदालत की संतुष्टि के मुताबिक जमानती मुचलका जमा करने पर हिरासत से रिहा किया जाए।’’
पीठ ने स्पष्ट किया कि उसकी किसी भी टिप्पणी को मामले के गुण-दोषों पर टिप्पणी नहीं माना जाएगा।
फैसला सुनाये जाने के बाद दिल्ली पुलिस की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने कहा कि गिरफ्तारी को अमान्य घोषित कर दिया गया, इसलिए पुलिस को गिरफ्तारी के सही अधिकार का प्रयोग करने से नहीं रोका जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘हमें इस पर कुछ कहने की जरूरत नहीं है। कानून में आपको जो अनुमति है तो है।’’
चक्रवर्ती ने यूएपीए के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ अपनी याचिका को पहले ही उच्चतम न्यायालय से वापस ले लिया था।
दिल्ली की एक अदालत ने चक्रवर्ती को मामले में सरकारी गवाह बनने की अनुमति दी थी।
इस बीच दिल्ली की एक अदालत ने पुरकायस्थ को बुधवार को निर्देश दिया कि वे मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं करेंगे या सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) हरदीप कौर ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालन में पुरकायस्थ की रिहाई का आदेश जारी करते हुए यह शर्त लगाई।
एएसजे ने आरोपी को आतंकवाद रोधी कानून, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज मामले में एक लाख रुपये का निजी मुचलका भरने और इतनी ही राशि की दो जमानत राशि जमा कराने का निर्देश दिया।
न्यायाधीश ने पुरकायस्थ को निर्देश दिया कि वह मामले में किसी भी गवाह या सरकारी गवाह अमित चक्रवर्ती से संपर्क नहीं करेंगे।