तीन मई को कार्ल मार्क्स का जन्मदिन था। सरला माहेश्वरी की कविता अरुण माहेश्वरी ने अपनी फेसबुक वाल पर दी है। उसे साभार प्रकाशित कर रहे हैं।
मार्क्स ! हर दिन तुम्हारा जन्मदिन है !
-सरला माहेश्वरी
मार्क्स सच में तुम अपनी कृतियों से भी बहुत ऊँचे थे !
क्या ये बात पाल लफार्ग सिर्फ़ इसलिये कह सकते थे कि
संयोग से वे एक चिंतक के साथ तुम्हारे दामाद भी थे।
नहीं ना !
याद है जब किशोरावस्था में पढ़ा था कम्युनिस्ट घोषणापत्र
पढ़कर रोंगटे खड़े हो गये थे, पूरे शरीर में अजीब सी सिहरन
पढ़े हुए पन्नों को बार-बार पढ़ा था
आँखों से आँसू गिर रहे थे
बीकानेर की वो भयंकर गर्मी
घर की सुरंग !
बाकी सब लोग सोये हुए !
मैं कभी घोषणापत्र तो कभी तुम्हारी तस्वीर देखती
तुम्हारी आँखों में झांकती
जेनी और तुम्हे देखती
कभी बच्चों के साथ तुम्हे देखती
लगा जैसे मैं तुम्हारे पास ही हूँ
तुम्हारे हाथों की छुअन को महसूस कर सकती थी
घोषणापत्र के उस पहले पाठ की अनुभूति !
कभी न भूलने वाली अनुभूति !
वो हमेशा मेरे साथ रहती है !
अद्भुत रचना ! अद्भुत रचनाकार !
मेरी सबसे प्रिय पुस्तक !
सोचती थी ये बोध-प्राप्ति ! सिद्धी ! क्या होती है !
बुद्ध को कैसे ज्ञान प्राप्त हुआ !
ज्ञान ! क्या चीज़ है !
घोषणापत्र ने जैसे सारी पहेली को सुलझा दिया
दुनिया ऐसी है तो आख़िर ऐसी क्यों है।
इस दुनिया को बदला जा सकता है
दार्शनिकों का काम सिर्फ़ व्याख्या करना नहीं
असल काम है दुनिया को बदलना !
कि कुछ भी करने, सोचने से पहले
राजनीति, कला, विज्ञान, धर्म से पहले
मनुष्य जाति को रोटी, कपड़ा और मकान चाहिये।
कि यही वो नींव का पत्थर है जिस पर ये दुनिया खड़ी है !
कि दुनिया को सर के बल नहीं !
पाँव पर खड़ा करके देखो !
मार्क्स तुम सिर्फ़ एक नाम नहीं !
कोई जड़, निर्जीव वाद नहीं !
तुम ज़िंदगी की साँस !
उसका विश्वास !
उसका ईमान हो !
हे दुनिया के महान चिंतक ! महान शिक्षक !
तुम हमेशा जिंदा रहोगे !
अँधेरे में मशाल की तरह राह दिखाओगे !
हर दिन तुम्हारा जन्मदिन है !