ओम प्रकाश तिवारी
दीपावली के अगले दिन क काफी देरी से सो कर उठे। इसकी वजह यह थी कि दिवाली की रात देर तक सो नहीं पाए थे। पहले तो घर पर ही त्योहार की चहल-पहल देर तक रही। उसके बाद पटाखों का शोर और उसका धुआं उन्हें परेशान करता रहा।
क के बच्चे जब पटाखे खरीद कर ले आए तो उन्होंने उनसे पूछा था।
इसे जलने के लिए परमिशन ली है?
नहीं,
क्यों?
क्योंकि इसके लिए किसी की परमिशन नहीं चाहिए।
= ये तो गलत है। जिसे बनाने के लिए परमिशन चाहिए। बेचने के लिए लाइसेंस चाहिए। उसे जलाने के लिए कुछ नहीं चाहिए?
= जलाने के लिए क्यों चाहिए परमिशन?
= जाहिर सी बात है। यह विस्फोटक है। इससे हमें नुकसान हो सकता है। इसीलिए तो इसे बनाने के लिए और फिर बेचने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। अब इसे जलाना भी तो खतरनाक हो सकता है। इसे कौन बताएगा? कम से कम यह बताने के लिए कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए, पर्यावरण के लिए कितना खतरनाक है, परमिशन की बाध्यता होनी चाहिए। सतर्कता बरतना कौन सिखाएगा? आपको पता है कि यह कितना खतरनाक है?
नहीं?
इसीलिए। यदि परमिशन लेते तो वह आपको एजुकेट करते। फिर आपको पता चलता कि पटाखे कितने खतरनाक होते हैं और क्यों होते हैं?
आप भी न। त्योहार में पटाखा जलाना जरूरी होता है।
क्यों जरूरी होता है? पटाखे क्या वैल्यू एड करते हैं त्योहार में ?
मजा आता है। खुशी मिलती है।
अपने मजे के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं? नहीं न? आप पटाखे जलाओ, लेकिन उसकी आवाज पड़ोसी को परेशान न करे। यह भी कह सकते हो कि पड़ोसी पटाखा जलाए तो उसका शोर, उसका धुआं हमें न परेशान करे। आप किसी की निजता को कैसे भंग कर सकते हैं? आपकी स्वतंत्रता वहीं तक है, जब तक उससे किसी की स्वतंत्रता बाधित न हो। इस नियम का पालन कीजिए। खूब जलाएं पटाखे। यह भी ध्यान रहे कि इससे कोई जले न। न किसी के दुकान, मकान, गोदाम में आग लगे। हवा दूषित न हो। शोर इतना न हो जाय कि बहरा कर दे। हद में रहकर आप जितना पटाखा जला सकते हैं जलाएं।
यह कैसे संभव है?
फिर जरूरी क्यों है?
त्योहार है। सभी जलाते हैं।
सभी जलाते हैं तो हम भी जलाएं? त्योहार खुशी के लिए मनाए जाते हैं कि किसी को बीमार या परेशान करने के लिए? वैसे भी दिवाली दीयों का त्योहार है, न कि पटाखों का।
ठीक है। कह कर बच्चे चले गए। पटाखे कम लिए थे और जलाए भी कम। हल्के-फुल्के पटाखे ही जलाए। लेकिन कई पड़ोसी बेलगाम रहे। उन्हें कौन समझाए?
नतीजा रात भर सास लेने में दिक्कत हुई। कई बार लगा कि अस्पताल जाना पड़ जाएगा। लेकिन खिड़की दरवाजे बंद करके किसी तरह बच गए।
देरी से सो पाए तो देरी से जगे।
छत पर जाने की सोच रहे थे, लेकिन धूप तेज थी। हवा भी खराब थी।
नहीं गए। कमरे में ही बेड पर लेट गए।
क को याद आया अपना बचपन।
तब दीपावली तक हल्की ठंड आ जाती थी। हवा भी खराब नहीं होती थी।
वह सभी भाई-बहन सुबह उठकर मिट्टी के रात में जलाए गए दीये इक्कठा करते। इसके बाद मिट्टी के खिलौने लेकर खेत में चले जाते थे खेलने। इस समय तक अरहर के खेत में छोटकी जोनहरि में दाने आ जाते थे। चिड़ियां उन्हें खाने लगती थीं। चिड़ियों को भगाने के लिए क भाई-बहन खेत में होते। खेलते और चिड़ियों से ज्वार-बाजरे की फसल की रखवाली भी करते।
और अब खिड़की-दरवाजे बंद करके पंखा चलाकर घर में लेटना पड़ रहा है। बाहर जाओ तो मास्क लगाना पड़ रहा है।
कितना सब बदल गया समय के साथ।
बदलना तो चाहिए, लेकिन इतना नहीं कि अपने लिए ही जीना मुश्किल हो जाए।
बेड पर लेटे लेटे क सोचते रहे।
लेखक परिचय:
ओम प्रकाश तिवारी वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेकिन वह मूलतः कथाकार हैं। उनकी कई कहानियां चर्चित रही हैं। उनके दो उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। तिवारी जी की कहानियों में समाज के आए बदलाव के साथ रिश्तों की गहराई से पड़ताल होती है। पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया में जो बदलाव आया है निश्चित तौर पर उसका असर भारत पर भी पड़ा है। रिश्तों में दरार आ रही है। संवेदना लुप्त होती जा रही है। रूढ़िवादिता और धर्मांधता तेजी से पैर पसार रही है या यों कहें कि मदद देकर उनका प्रसार किया जा रहा है। सच कहने की हिम्मत कम होती जा रही है। उपन्यास हंस प्रकाशन दिल्ली से छपा है साल 2023 में। दो पाटन के बीच उपन्यास इसी साल अक्तूबर में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित हुआ है। कहानी संग्रह किचकिच इसी पब्लिकेशन से आने वाला है। कविता संग्रह डरा हुआ पेड़ notnul.com ऑन लाइन वेबसाइट पर मौजूद है। पहली कहानी 1995 वैचारिकी संकलन में छपी थी। कविताएं भी तभी से लिखते रहे हैं। लेकिन ज्यादातर कहानी। साल 2021 के बाद कविताएं लिखने लगे। कविताओं का विषय सामयिक ही होता है। इसे राय, नजरिया, सुझाव, सलाह या हस्तक्षेप जैसा कुछ कह सकते हैं।