सौ साल बाद भारत को जानने के लिए बॉलीवुड फिल्में ‘‘बड़ी त्रासदी’’ होंगी: नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह वर्तमान में चल रहे आठवें संस्करण केरल साहित्य महोत्सव में बोलते हुए।

केरल  फिल्म महोत्सव के दौरान नसीरुद्दीन शाह से बातचीत करतीं पार्वती तिरुवोतु। 

केरल साहित्य महोत्सव के आठवें संस्करण में इंटरव्यू के दौरान बोले  नसीर

कोझिकोड (केरल)। अभिनेता नसीरुद्दीन शाह का मानना है कि सिनेमा अपने समय के समाज का चित्रण करता है, लेकिन उन्हें चिंता है कि अगर भविष्य की पीढ़ियां आज के भारत को समझने के लिए बॉलीवुड फिल्मों को देखेंगी तो यह एक ‘‘बड़ी त्रासदी’’ होगी।

‘‘निशांत’’, “आक्रोश”, “स्पर्श” और “मासूम” जैसी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय के लिए चर्चित शाह केरल साहित्य महोत्सव (केएलएफ) के आठवें संस्करण को संबोधित कर रहे थे।

शाह ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि गंभीर सिनेमा का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य दुनिया में बदलाव लाना नहीं है। मुझे नहीं लगता कि एक फिल्म देखने के बाद किसी की सोच बदल जाती है, चाहे वह कितनी भी शानदार क्यों न हो। हां, यह आपको कुछ सवाल उठाने में मदद कर सकती है।’’

शाह (74) ने अभिनेत्री पार्वती तिरुवोतु के साथ बातचीत में कहा, ‘‘लेकिन मेरे विचार से सिनेमा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य अपने समय का रिकॉर्ड बनाना है। ये फिल्में 100 साल बाद देखी जाएंगी और अगर 100 साल बाद लोग जानना चाहेंगे कि 2025 का भारत कैसा था और उन्हें कोई बॉलीवुड फिल्म मिल जाए, तो मुझे लगता है कि यह एक बड़ी त्रासदी होगी।’’

शाह ने उन कठिनाइयों को भी उजागर किया जो फिल्मकारों को समय की वास्तविकताओं को दर्शाने वाली ‘‘ईमानदार फिल्में’’ बनाने में आती हैं। उन्होंने कहा कि सच्चाई को दिखाने की कोशिश करने वाली फिल्मों को अक्सर प्रतिबंध का सामना करना पड़ता है या उसे दर्शक नहीं मिलते हैं क्योंकि उनमें सफल फिल्मों के समान व्यावसायिक तत्वों की कमी होती है।

शाह का कहना है कि उनके लिए किसी फिल्म की सफलता या असफलता कोई मायने नहीं रखती। उन्होंने कहा, ‘‘महत्वपूर्ण बात यह है कि फिल्म उन चंद लोगों तक पहुंचे जो इसे देखते हैं। अगर मेरा काम दुनिया के एक भी व्यक्ति को प्रभावित करता है, तो मेरे लिए यह काफी है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने कुछ फिल्में सिर्फ पैसे के लिए कीं। यह एक सच्चाई है… और मुझे नहीं लगता कि पैसे के लिए काम करना गलत है। आखिर हम सब क्या करते हैं? लेकिन हां, मुझे उन कुछ पसंदों पर पछतावा है। सौभाग्य से, लोग बुरे काम को भूल जाते हैं और वे आपके द्वारा किए गए अच्छे कामों को याद रखते हैं।’’

बृहस्पतिवार को शुरू हुए केएलएफ में 15 देशों के करीब 500 वक्ता हिस्सा ले रहे हैं। कोझिकोड में आयोजित इस महोत्सव में बड़ी संख्या में पुस्तक प्रेमी हिस्सा ले रहे हैं। 26 जनवरी को इस महोत्सव का समापन होगा।