यूपी सरकार की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी – ये हमारी अंतरआत्मा को झकझोरता है

सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में बुलडोजर कार्रवाई की आलोचना की

यह शर्मनाक है। सरकारों को न्यायालय को बार-बार शर्मशार करने की कोशिश करनी पड़ती है, लेकिन राजनीतिक और उनके मातहत हैं कि उनकी मोटी खाल पर कोई असर नहीं पड़ता। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की बुलडोजर नीति जारी है। अपनी प्रशासनिक अक्षमता को छिपाने और एक संप्रदाय विशेष को टारगेट कर अनैतिक तरीके से उनके घरों को बुलडोज करने की कार्रवाई को एक बड़ा तबका सही मानता है और इसी की बदौलत वह दूसरी बार सत्ता में भी आ चुके हैं। जब-जब किसी प्रदेश की सरकार प्रशासनिक तौर पर नाकाम रही तो उसके लिए बुलडोजर कार्रवाई ज्यादा सुभीता लगा। इसी कारण दूसरी सरकारों ने भी यही रास्ता अपनाया और कमजोर तबका चुपचाप उनको सहन करता रहा है। ऐसे दर्जनों उदाहरण मिल जाएंगे कि जब तक न्यायालयों का फैसला आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अब उच्चतम न्यायालय का एक नया फैसला आया है। फैसला लिखते हुए माननीय जजों ने यूपी सरकार की कार्रवाई के प्रति असंतोष जताते हुए जिन लफ्जों का उपयोग किया है वह मामले की गंभीरता को साबित करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार और प्रयागराज विकास प्राधिकरण की खिंचाई करते हुए प्रयागराज में घरों को गिराने की कार्रवाई को ‘‘अमानवीय और अवैध’’ बताया है।

समाचार एजेंसी के मुताबिक न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा, ‘‘जिस तरीके से मकान गिराये गये हैं, वह हमारी अंतरात्मा को झकझोर देने वाला है। अपीलकर्ताओं के घरों को मनमाने तरीके से ध्वस्त कर दिया गया। आश्रय का अधिकार, कानून की उचित प्रक्रिया नाम की कोई चीज होती है।’’
पीठ ने ‘देश में कानून के शासन’ पर बल देते हुए कहा कि मकान गिरा देने का ‘मनमाना’ तरीका प्रशासन की असंवेदनशीलता को दर्शाता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि नागरिकों के मकानों को इस तरह से ध्वस्त नहीं किया जा सकता।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण को याद रखना चाहिए कि आश्रय का अधिकार अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है और कानून शासन संविधान का मूल हिस्सा है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्राधिकरण ने उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 की धारा 27 के तहत मकान गिराये थे।
पीठ ने कहा कि 18 दिसंबर 2020 को एक कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए इसे उसी दिन घरों पर चिपकाया गया था जिसमें यह उल्लेख भी था कि दो मौकों पर यह नोटिस व्यक्तिगत रूप से भी देने का प्रयास किया गया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मकान गिराने से संबंधित अगला आदेश भी आठ जनवरी, 2021 को चिपका दिया गया था, लेकिन उसे पंजीकृत डाक से नहीं भेजा गया।
पीठ ने कहा, ‘‘पहली पंजीकृत डाक एक मार्च, 2021 को भेजी गयी थी जो छह मार्च, 2021 को प्राप्त हुई। लेकिन अगले ही दिन मकान गिरा दिया गया, जिससे अपीलकर्ताओं को अधिनियम की धारा 27 (2) के तहत अपील करने का कोई अवसर नहीं मिला।’’
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘धारा 27(1) के प्रावधान का उद्देश्य मकान गिराने से पहले कारण बताने का उचित अवसर प्रदान करना है। यह उचित अवसर प्रदान करने का कोई तरीका नहीं है।’’
पीठ ने कहा कि प्रावधानों के अनुसार, नोटिस चिपकाने से पहले व्यक्तिगत रूप से नोटिस देने के लिए वास्तविक प्रयास किए जाने चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘ जब प्रावधान कहता है कि यदि संबंधित व्यक्ति मिल नहीं पाता है, तो यह स्पष्ट है कि व्यक्तिगत रूप से नोटिस देने के लिए वास्तविक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं हो सकता कि जिस इंसान को नोटिस देने का काम सौंपा गया है, वह घर जाए और यह पता चलने के बाद कि उस दिन संबंधित व्यक्ति उपलब्ध नहीं है नोटिस को चस्पा कर दे।
अदालती आदेश में कहा गया कि यह स्पष्ट है कि व्यक्तिगत सेवा को लेकर ‘‘बार-बार प्रयास करने होंगे।’’
पीठ ने कहा, ‘‘यदि वे प्रयास विफल हो जाते हैं तब दो विकल्प उपलब्ध हैं। पहला (नोटिस) चस्पा करने का और दूसरा पंजीकृत डाक से भेजने का।’’
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने मुआवजे की मांग करते हुए कहा कि उनके मुवक्किलों के पास अपने घरों के पुनर्निर्माण के लिए वित्तीय साधन नहीं हैं।
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने धन(भरपाई) देने का विरोध करते हुए तर्क दिया कि अवैधता की भरपाई नहीं की जा सकती और प्रभावित व्यक्तियों के पास वैकल्पिक आवास सुविधा है।
हालांकि, शीर्ष न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया तथा कहा कि यह ‘‘उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करने को सही ठहराना’’ है।
न्यायालय ने कहा, “इस वजह से उन्हें अपने घर गंवाने पड़े हैं। आपको नोटिस देने के लिए ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए, न कि इसे बेतरतीब ढंग से चिपका देना चाहिए। यह चस्पा करने का धंधा बंद होना चाहिए। केवल इसलिए कि उनके पास पैसे नहीं हैं, वे पीड़ित हैं।”
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा था कि राज्य सरकार ने यह सोचकर गलत तरीके से मकानों को ध्वस्त किया कि यह जमीन गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद की है जिसे 2023 में पुलिस अभिरक्षा में दो हमलावरों ने गोली मार दी थी।
शीर्ष अदालत अधिवक्ता जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य लोगों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनके मकान ध्वस्त कर दिए गए थे।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मकान गिराने की इस कार्रवाई को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ताओं को कथित तौर पर प्रयागराज जिले के लूकरगंज में कुछ निर्माणों के संबंध में छह मार्च, 2021 को नोटिस दिया गया था।