औरत विरोधी मानसिकता को बदलना सबसे जरूरी 

 

      मुनेश त्यागी

 

मां की मुक्ति, बहन की मुक्ति 

नारी मुक्ति, सबकी मुक्ति, 

बेटी की मुक्ति, बहू की मुक्ति 

नारी मुक्ति सबकी मुक्ति।

 

8 मार्च को पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने जा रही है। हमारे देश में भी इस दिन अनेक प्रोग्राम आयोजित किए जाएंगे। आजादी प्राप्ति के बाद संविधान में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिये गये थे। इसी वजह से कुछ औरतें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक, जज, वकील, डॉक्टर, नर्स, शिक्षिकाएं बन पाई हैं। मगर इस सबके साथ साथ आज हमारा देश औरत विरोधी अपराधों की सुनामी से गुजर रहे हैं। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार है,,,, 7 माह की बच्ची से बलात्कार, 3 साल की बच्ची से बलात्कार, 4 साल की बच्ची से बलात्कार, 7 माह की बच्ची से बलात्कार, 5, 6, 9 साल की बच्चियों से बलात्कार, 18 महीने की बच्ची से बलात्कार, 75 वर्षीय नानी से बलात्कार, नाबालिक भांजी से बलात्कार, 4 साल की बच्ची से मौसा द्वारा बलात्कार। बलात्कार की घटनाओं को राजनेता, शिक्षक, सेवादार, कोचिंग सेंटर के मालिक, पड़ोसी, लेबर कांट्रेक्टर के मालिक, सिपाही द्वारा साली से बलात्कार, चलती कार में बलात्कार, दहेज न लाने के कारण हजारों हत्याएं, जैसी अनगिनत घटनाऐं प्रकाश में आई हैं। इसी के साथ-साथ बहुओं द्वारा घरेलू झगड़ों को लेकर लाखों मुकदमे कचहरी में दायर किए गए हैं। वहां औरतों के मुकदमों को लेकर बाढ़ आई हुई है।

हमारे समाज में औरतों को पुराने समय से ही गृह लक्ष्मी, धनदेवी, सरस्वती और साम्राज्ञी का अधिकार प्राप्त रहा है। यहां सीता, राधा, द्रौपदी और सावित्री के किस्से मशहूर रहे हैं। वहीं पर औरत विरोधी मानसिकता और पुरुष वर्चस्ववादी सोच के ऐतिहासिक प्रमाण भी मौजूद हैं जिनकी संक्षिप्त जानकारी देना यहां उचित होगा। औरत काफी लंबे समय तक वासना की तृप्ति का सामान बनी रही, उसका हरण, अग्नि परीक्षा, गृहनिष्कासन, चीरहरण होता रहा। वह अबला कहलाई, बाल विधवा बनी, वह रूपजीवा और अभितृप्ति से सिद्धि का माध्यम बनी। वह नग्न रूप से पूजी जाने वाली कुमारी बानी। वह गाय, बकरी, धन, जमीन की तरह दान और दहेज में ली दी जाने वाली कन्यादान बनी। उसे दासियों के रूप में खरीदा बेचा गया। उसे सति प्रथा का शिकार बनाया गया। वह पर्दे, बुर्के, घूंघट में रहने को मजबूर की गई। मनुस्मृति के अनुसार उसे धन-धान्य से, जमीन जायदाद से, सोना चांदी और दूसरे गहनों से वंचित किया गया। उसके पढ़ने पर पाबंदी लगाई गई।

भारत की आजादी के बाद औरतों को कुछ राहत मिली, मगर वे फिर भी औरत विरोधी मानसिकता और सोच का शिकार बनी रहीं। आजादी के 77 वर्ष बाद भी वह मुनाफा कमाने की वस्तु बनी हुई है। इस औरत विरोधी मानसिकता के तहत उस पर अम्लीय हमले, छेड़छाड़, शारीरिक शोषण, छींटाकशी, अपहरण, बलात्कार और उसकी दहेज़ हत्याएं हो रही हैं। दुनिया भर में भारत में सबसे ज्यादा बच्चियों को पेट में मर जाता है, उनकी भ्रूण हत्या की जाती हैं।औरत विरोधी अपराधों की यह सुनामी आज भी आंधी की तरह बह रही है। यह थमने का नाम ही नही ले रही है। आखिर क्या कारण है कि आजादी के 77 साल बाद भी औरत विरोधी माहौल और सोच व मानसिकता बदलने को तैयार नहीं है। दरअसल आजादी मिलने के बाद उस नये आदमी और सोच का निर्माण नहीं हुआ जिसकी स्वतंत्रता संग्राम में कामना और कल्पना की गई थी। वह औरत विरोधी अमानवीय मानसिकता, सोच और संस्कृति बदली ही नहीं गई, जिसके विषय में स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन के दौरान औरतों के बेहतर भविष्य के बारे में सोचा गया था।

1991 में नई आर्थिक नीतियों के लागू होने के बाद हालात और भयावह हो गए हैं। आज ज्यादातर औरत और आदमी उग्र हुए हैं। उनकी सुरक्षा और सम्मान लगातार खतरे में हैं। आज अपराधी बेखौफ हो गए हैं, उन्हें सजा या कानून का डर नहीं रह गया है। ना ही वे समाज से डरते हैं। उनकी नैतिकता, मानवीय मूल्य और मर्यादा जैसे मर गई हैं, समाज में भी संवेदनशून्यता, हिंसा और अलगाव बढ़ रहे हैं। लड़कियां आज भी अनचाही और बोझ समझी जाती हैं। उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा नहीं मिला है। घटिया शिक्षा पद्धति की वजह से, अल्प मानसिक विकास के कारण कई युवा ड्रग्स, शराब और ग्लैमर के नशे में बलात्कार को रोमांस का हिस्सा मान बैठे हैं। असामान्य सेक्स जीवन के बच्चे, लड़कियों के विरुद्ध यौन हिंसा करने लगते हैं। कुछ लोग खुद को ताकतवर या बड़ा साबित करने के लिए और अपना रुतबा कायम करने के लिए बलात्कार करते हैं। यह एक मानसिक विकृति और बीमारी है, जिसका समुचित इलाज नहीं खोजा गया है। यह हमारी सामाजिक, नैतिक और राजनीतिक व्यवस्था की गंभीर असफलता है।

हम 77 साल से नया आदमी, नई सोच, सर्वकल्याणकारी सोच एवं मानसिकता और संस्कृति विकसित नहीं कर पाए हैं। इस औरत विरोधी मानसिकता को नहीं बदल पाए हैं। हमारा पुलिस तंत्र लगभग असंवेदनशील बना हुआ है। उसके पास तफ्तीश के आधुनिक संसाधनों का अभाव है, पर्याप्त मैनपॉवर नहीं है, समाज की भागीदारी से कटी पिटी है, मुकदमें साल दर साल न्यायालय में लंबित पड़े रहते हैं। महिलाओं के साथ अपराध करने वालों को समय से पर्याप्त और जरुरी सजा नहीं मिलती है। हमारी सरकार और प्रशासन में लापरवाही, निष्क्रियता, बहाने बाजी और दिखावा पसरा हुआ है।अतः औरत विरोधी अपराधों में बाढ़ सी आ गई है और अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। सामाजिक लगाव, सुरक्षा और पहल कदमी खत्म सी हो गयी हैं।

महिला विरोधी इन अपराधों पर काबू करने के लिए जरूरी है कि इनका अभिलंब जोरदार प्रतिरोध हो, कानून को सशक्त और सजा कठोरता और उदाहरणीय बनाई जाए, सारे पुरुषों को और बच्चों को बचपन से ही औरतों का सम्मान करना सिखाया जाए, अपराधियों को अधिकारहीन घोषित कर दिया जाए, उनका सामाजिक बहिष्कार हो, अपराधो की छानबीन के तौर तरीके आधुनिक और वैज्ञानिक हों, अपराधियों से लड़ने की राजनीतिक इच्छा सकती हो, तुरंत एफआईआर दर्ज हो, हम खड़े हों, मुकाबला करें, भागे नहीं, औरत विरोधी मानसिकता, सोच, व्यवहार और संस्कृति को बदलें। मीडिया और जनता औरत विरोधी मानसिकता के खिलाफ एक जोरदार अविराम अभियान चलाएं, महिला विरोधी अपराधों के कारणों को ढूंढें और इस औरत विरोधी मानसिकता, सोच संस्कृति और व्यवहार के खिलाफ जनमानस तैयार करें। तभी जाकर इस महिला महिलाविरोधी माहौल, मानसिकता और सोच को बदला जा सकता है और तभी जाकर औरत विरोधी सुनामी और आंधी पर प्रभावी रोक लगाई जा सकती है। औरत के समुचित विकास और मान सम्मान के बिना हमारा समाज और देश आगे नहीं बढ़ सकते। आज मांओं, बहनों, बेटियों, बहुओं, महिला मित्रों समेत सबको बचाने की सबसे ज्यादा जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इस महत्वपूर्ण मौके पर हम तो यही कहेंगे,,,,

 

बच्चों से मानव वंश चले 

बच्चे हैं घर की शान,

पर जिस घर में बेटी नहीं 

वो घर तो है रेगिस्तान।