ओम प्रकाश तिवारी की कविता -द ग्रेट इंडियन कार्पोरेट

 

ग्रेट इंडियन कार्पोरेट

 

चमचमाती रोशनी में

डायस पर खड़ा होकर

जो कर रहा था बड़ी बड़ी बातें

पंचुयलिटी, क्वालिटी, लाइबिलिटी और ऑनेस्टी की 

वह कंपनी का सीईओ है

लाखों में है उसका सालाना वेतन

औऱ हाल में उसके सामने जो बैठे हैं

ध्यान से सुन रहे हैं उसकी बातें

वे कंपनी के ठेके के कर्मचारी हैं

इनमें से अधिकतर को हर माह

दस से बीस हजार रुपए मिलता है मानदेय

कुछ हैं जिन्हें 30-40हजार भी मिलते हैं हर माह

यह दृश्य सड़क पर लगे किसी मदारी के 

मजमे जैसा ही लगता है

बड़ी बड़ी बातें कहते समय सीईओ

किसी मदारी जैसा ही लगता है

दरअसल वह करता है बातों की खेती

उसी से उगाता है इंसेंटिव की फसल

प्रमोशन और इंक्रीमेंट की भी

कर्मचारियों को देता है ज्ञान

मेहनत करो, कर्म करो, फल मिलेगा

सीईओ जब ऐसा कह रहा होता है

ठीक उसी समय सोच रहे होते हैं

अधिकतर कर्मचारी अपने परिवार के बारे में

इस माह कैसे भरी जाएगी बच्चों की फीस

राशन कहाँ से खरीदें की सस्ता मिल जाय

बिटिया के बुखार के इलाज के लिए 

किस डॉक्टर के पास जायँ की फीस कम लगे

दवाइयों के पैसे के लिए किससे मांगे उधार

दोस्तों से तो पहले ही ले रखा है कर्ज़

फिर वे भी कहाँ देने की स्थिति में होते हैं

नहीं मिला उधार तो करना पड़ेगा देसी उपचार 

पता नहीं जान बचेगी भी की नहीं

बढ़ती ही जा रही है पिता जी की भी बीमारी

मां का भी कुछ ऐसा ही है हाल

ऐसे तो अधिक दिन जी नहीं पाएंगे

सरकारी अस्पताल में डाक्टर हैं ना दवा

यूँ दर्द में कोई कब तक जी सकता है

खत्म होता है सीईओ का भाषण

हाल में गूंजती है तालियों की गूंज

मुस्कराता है करोड़पति सीईओ

चेहरा लटकाए खड़े हो जाते हैं कर्मचारी

लंबे डग भरता हाल से निकल जाता है सीईओ

वातानुकूलित केबिन में जाकर

बुलाता है महिला सचिव को

उसके शारीरिक विन्यास का करते हुए अवलोकन

बनाता है भविष्य की योजनाएं

ताकि बनी रहें उसकी सुख सुविधाएं

मिलता रहे हर साल लाखों का इंसेंटिव

और थके कदमों से हाल से निकलते हैं कर्मचारी

उदास चेहरे लिए लग जाते हैं काम पर

ताकि चलता रहे जीवन किसी तरह…

 

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