जनवादी लेखक संघ उत्तर प्रदेश का दसवाँ राज्य सम्मेलन

जनवादी लेखक संघ उत्तर प्रदेश का दसवाँ राज्य सम्मेलन

अल्पमत को सुना जाना ही लोकतंत्र, जब हम कठिन समय में हों तो चीजों को सीधे-सीधे कह देना चाहिए

हरीश चन्द्र पाण्डे अध्यक्ष और नलिन रंजन सिंह सचिव बने, 71 सदस्यीय कमेटी का गठन

जनवादी लेखक संघ उत्तर प्रदेश का दसवाँ  राज्य सम्मेलन लखनऊ स्थित कैफ़ी आज़मी एकेडमी में 13-14अप्रैल 2025 को आयोजित किया गया। पहले दिन उद्घाटन सत्र में ‘असहमति और जनतंत्र: हमारे समय की चुनौतियों के बीच साहित्य’ विषय पर गोष्ठी आयोजित की गई।

इस सत्र में स्वागत समिति के अध्यक्ष लेखक और संपादक अखिलेश ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि इसी प्रदेश की धरती पर कबीर, निराला और प्रेमचंद जैसी साहित्यिक हस्तियों ने जन्म लिया है। इसी धरती को उन्होंने आंदोलन की धरती बताया। जनवादी लेखक संघ की स्थापना के समय को याद करते हुए उनका कहना था कि यहाँ आने वाले हर ज़िले और दूर दराज़ के साथी एक ऐसा नज़रिया लेकर जाएँ जो अपने क्षेत्र में उस मशाल को जलाए रख सके। उन्होंने हर साथी से यह अपील की कि इस कठिन समय में हर कलाकार अपने हर संभव प्रयास से इस समय का सामना करे। साथ ही उन्होंने नए  साथियों को सम्मिलित किए जाने की बात कही।

जनवादी लेखक संघ के महासचिव संजीव कुमार ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि लोकतंत्र बहुमत का नाम नहीं है। सौ लोगों में अगर एक की बात सुनी जाए या अल्पमत का सुना जाना ही लोकतंत्र है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का मतलब संख्या से नहीं है। अपने भाषण में उन्होंने सावित्री बाई फुले की फिल्म पर सेंसर बोर्ड द्वारा लगाए गए कट्स की बात कही और निर्माता की सहमति के हवाले से लोकतंत्र के नष्ट होने का हवाला दिया। फिल्म ‘हाउ डेमोक्रेसी डाई’ के हवाले से उन्होंने कहा कि ब्यूरोक्रेसी को अपनाकर, चुनाव में हस्तक्षेप करके मीडिया हॉउस को काबू करके और मतपत्र को हथिया कर लोकतंत्र नष्ट किया जाता है। कानून हमें असहमति का अधिकार देता है।  गुलिफशान और उमर खालिद को सीएए से असहमत होने पर आज भी कारावास में रखा गया है और उन पर केस शीट तक नहीं बन सकी है। असहमति के अधिकार को छीनने के लिए किस तरह चिलिंग इफेक्ट की मदद ली गई हैं, जिनमें कानून भी सुरक्षित रहता है। ऐसे में जनता को लगता ही नहीं कि लोकतंत्र नष्ट हो रहा है।

बनाने और बदलने की लड़ाई एक सपने की तरह थी। अब हम बचाने की बात करते हैं। साझा संस्कृति को बचाने की, उदारीकरण के बाद स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सरकारी संस्थान को बचाने की बात करते हैं। आज भी प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण नहीं लागू हो सका है। हम एक ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में हैं जब महान साहित्य रचा जाना चाहिए मगर जब हम कठिन समय मे हों तो हमारे समय की चीज़ों को सीधा-सीधा कह देना चाहिए। क्या साहित्य रचे जाने की स्थिति में है। अपने समय की चुनौतियों से रूबरू कराने और हस्तक्षेप की भूमिका निभाने की हैसियत रखता है। क्या आज साहित्य का वह प्रभाव क्षेत्र है, मुझे उस पर संदेह है। वह सैकड़ों और कुछ में हज़ारों तक जाता है।मिलियन की संख्या में व्यू के दौर में ये संख्या कम है। साहित्य में कहीं कुछ ऐसा होता है जो सौ साल बाद अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है।

प्रगतिशील लेखक संघ से शकील सिद्दीकी ने अपनी बात रखते हुए प्रतिरोध की परंपरा और चेतना को जिलाए रखने के लिए इसके संस्थापक लेखकों के सहयोग की बात कही। अपने संगठन की ओर से जनवादी लेखक संघ के इस आयोजन की सराहना की और कहा कि यह अधिवेशन रास्ता दिखाने वाला, प्रेरणा देने वाला और रौशनी दिखाने तथा नए लोगों को जोड़ने वाला कार्यक्रम है।

अध्यक्ष मंडल से कवि हरीश चंद्र पाण्डे ने कहा कि आज लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में भी कही हुई बात को स्विच बंद करके रोक दिया जाता है। उन्होंने दक्षिण भारत में इस समय भाषा को लेकर जारी विवाद का हवाला दिया और बताया कि किस प्रकार वहॉं हिंदी थोपी जा रही है।

पूर्व अध्यक्ष जनवादी लेखक संघ उत्तर प्रदेश नमिता सिंह ने जनवादी लेखक संघ की स्थापना से अब तक के सफर को याद किया और कहा कि पिछले लम्बे समय से माहौल ऐसा है कि बेबसी ओर बेचैनी बनी रहती है। आज कि स्थितियों को कठिन बताते हुए उन्होंने कहा कि लेखक संघ हमेशा से इस आज़ादी और सत्ता के चरित्र का विरोध कर रहा था। साथ ही उन्होंने कहा कि हम उन समानांतर चल रही ताकतों को शायद उस हद तक नहीं समा सके और उतनी गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने इन हालात के साथ पली-बढ़ी पीढ़ी और पूँजीवाद के खतरे का ज़िक्र किया। ऐसे समय में उन्होंने साहित्य की भूमिका पर बोलते हुए गोर्की का हवाला दिया कि यथार्थ को दर्ज किया जाना चाहिए। इस बात पर उन्होंने अफ़सोस जताया कि आज भी हम वही साहित्य लिखने को मजबूर हैं जो कई दशक पहले लिखा जा रहा था। साथ ही उन्होंने सोशल मीडिया और आज के माहौल में वर्तमान साहित्यकारों को इस बात पर विचार करने की बात कही कि किस तरह हम जनता के बीच जाएँ। उन्होंने व्यंग्य विधा को सबसे साहस की विधा कहा और कहा कि खतरे तो उठाने ही होंगे।

दुनिया में नवफासीवाद से हड़कंपः चंचल चौहान

कुँवारपाल सिंह स्मृति सम्मान से नवाज़े गए जनवादी लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष चंचल चौहान ने इस समय सारी दुनिया को संकट का सामना करते बताया। उन्होंने कहा कि यहाँ शिक्षा का स्तर कम है जबकि अमरीका में अच्छी शिक्षा और जागरूकता के बावजूद वहॉं की जनता हालात की मार झेल रही है। पूरी दुनिया में हड़कंप का कारण जानने की कोशिश में लगे जानकारों के हवाले से उन्होंने इसे नवफासीवाद बताया। फासीवाद को पूँजीवाद की जड़ बताते हुए उन्होंने ऐसे साहित्य का हवाला दिया जो इन कारणों पर प्रकाश डालता है। आई एम एफ, वर्ल्ड बैंक और डब्लू टी ओ को पूरी दुनिया पर राज करने वाला टूल बताते हुए उन्होंने कहा कि इनकी मदद से हमें ग़ुलाम बना लिया गया है। अपने वक्तव्य में उन्होंने बताया कि मुक्तिबोध अपनी रचना में इंटरनेशनल फाइनेंस कैपिटल का ज़िक्र करते हैं और इसे वह मौजूदा समय में संकट का सबसे बड़ा कारण बताते हैं। धर्मवीर भारती को याद करते हुए चंचल चौहान ने उनकी कही बात को आज के समय से जोड़ते हुए उनकी पंक्ति दोहराई – ‘सत्ता उसकी होगी जिसकी पूँजी होगी।’ उन्होंने कहा कि इस समय यह तो कहा जाता है कि डेमोक्रेसी की आत्मा, आलोचना है जबकी परिस्थितियाँ इसके विपरीत हैं। उन्होंने बताया कि हर दौर में दोनों तरह के लेखक रहे हैं, कुछ लेखक मानसिक रूप से गुलाम बनने के लिए होते हैं जबकी कुछ लेखक संवेदना को लेकर रचते हैं।

धन्यवाद ज्ञापन जनवादी लेखक संघ लखनऊ के अध्ययक्ष ज्ञान प्रकाश चौबे ने किया। प्रदेश भर से आने वाले सभी साथियों का आभार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि अपने साथियों की बदौलत हम इस कार्यक्रम को सफल बना सके। संचालन जलेस लखनऊ की सचिव शालिनी सिंह ने किया।

इस अवसर पर विनोद कुमार दत्ता, नमिता सिंह, नाइश हसन और केशव तिवारी को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया।

दूसरे सत्र में सफ़दर हाशमी के नाटक ‘औरत’ की प्रस्तुति इप्टा के कलाकारों द्वारा की गई। नाटक को शहज़ाद रिज़वी ने निर्देशित किया था।

तीसरे सत्र में विभिन्न जनपदों से आए प्रतिनिधियों को स्मृति चिन्ह देते हुए उनका परिचय कराया गया।

चौथे सत्र में तीन प्रस्ताव रखे गए। पहला प्रस्ताव उत्तर प्रदेश सरकार की उर्दू भाषा नीति के विरुद्ध मुनेश त्यागी ने रखा जिसका समर्थन समीना खान ने किया। दूसरा प्रस्ताव उत्तर प्रदेश में महिला हिंसा के विरुद्ध नाइश हसन द्वारा रखा गया जिसका समर्थन सीमा सिंह ने किया। तीसरा प्रस्ताव लेखकों, पत्रकारों, शिक्षकों और छात्रों की अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरों के विरुद्ध विशाल श्रीवास्तव द्वारा रखा गया जिसका समर्थन बसंत त्रिपाठी ने किया।

दिन के चौथे और अंतिम सत्र में ‘एक कवि-एक कविता’ शीर्षक से काव्य पाठ आयोजित किया गया।

दूसरे दिन सांगठनिक सत्र में विभिन्न जिलों से आए प्रतिनिधियों और केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने शिरकत की।

सत्र का आरम्भ जनवादी लेखक संघ उत्तर प्रदेश के सचिव नलिन रंजन सिंह ने बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर को याद करते हुए किया। उन्होंने कहा कि आज के समय में भी अंबेडकर के विचार बेहद प्रासंगिक हैं। भारत के संविधान और जनतंत्र को बचाने के लिए जरूरत है कि हम कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के विचारों से प्रेरणा लेकर काम करें। उनके विचारों पर चलकर ही हम धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा कर पाएँगे।

सांगठनिक सत्र में प्रदेश की राज्य समिति के सदस्यों की संख्या 47 से बढ़ाकर 71 करने का निर्णय लिया गया। 2022 में 14 जनपदों में सक्रिय इकाइयाँ होने के कारण 47 की संख्या रखी गई थी। इस सम्मेलन तक उत्तर प्रदेश के 24 जिलों में इकाइयाँ सक्रिय होने के कारण और सदस्यों की संख्या डेढ़ गुना बढ़ जाने के कारण राज्य समिति की संख्या बढ़ा कर 71 करना जरूरी था। राज्य समिति में आने वाली कार्यकारिणी, राज्य परिषद,पदाधिकारी मंडल एवं संरक्षक मंडल सभी में सदस्यों की संख्या उचित अनुपात में बढ़ायी गई।

इस दौरान बनारस इकाई के नईम अख्तर, मेरठ के मंगल सिंह ‘मंगल’ और बीना मंगल की किताबों एवं जलवायु पत्रिका का विमोचन किया गया।

इसके बाद सचिव की रिपोर्ट पढ़ी गई। इस रिपोर्ट के माध्यम से मौजूदा हालात पर रौशनी डालते हुए सिलसिलेवार राज्य सरकार की नाकामियों का विस्तार से उल्लेख किया गया। सचिव की रिपोर्ट के माध्यम से प्रदेश की आगामी योजनाओं की जानकारी दी गई। इसमें लेखक और कवियों पर आधारित कार्यक्रमों की संख्या बढ़ाए जाने के साथ लेखन को और भी माँझने के लिए कार्यशालाएँ आयोजित किए जाने पर चर्चा हुई।

रिपोर्ट के माध्यम से संगठन के सदस्यों और इकाईयों के विस्तार पर भी विचार-विमर्श हुआ। सचिव की रिपोर्ट पर जिलों से आए प्रतिनिधियों ने अपने विचार व्यक्त किए और जिलों की रिपोर्ट भी प्रस्तुत की। इन रिपोर्ट्स के ज़रिए ज़िले में होने वाली विभिन्न गतिविधियों की जानकारी दी गई। अंत में सभी प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से सचिव की रिपोर्ट का अनुमोदन किया।

इसके बाद मुनेश त्यागी ने अंधविश्वास के विरुद्ध प्रस्ताव रखा जिसे ध्वनिमत से पारित किया गया। प्रतिनिधि-परिचय रिपोर्ट ज्ञान प्रकाश चौबे ने रखी।

राज्य सचिव ने नई राज्य कमेटी का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया। नवनियुक्त अध्यक्ष हरीश चन्द्र पांडे ने प्रतिनिधियों को संबोधित किया और सम्मेलन के समापन की घोषणा की। चुनी गई राज्य कमेटी इस प्रकार है-

यूपी जलेस की नई कमेटी

संरक्षक मण्डल―

  1. विनोद कुमार दत्ता
  2. अमरीक सिंह ‘दीप’
  3. नमिता सिंह
  4. प्रदीप सक्सेना
  5. तारिक छतारी
  6. प्रमोद कुमार

 

अध्यक्ष-

हरीश चन्द्र पाण्डे

उपाध्यक्ष—

  1. केशव तिवारी
  2. एम. पी. सिंह
  3. मुनेश त्यागी
  4. सगीर अफ़राहिम
  5. टीकेन्द्र सिंह ‘शाद’
  6. सुधीर कुमार सिंह
  7. अनीता मिश्रा

सचिव-

नलिन रंजन सिंह

कोषाध्यक्ष—

ज्ञानप्रकाश चौबे

उपसचिव –

  1. आशिक अली
  2. बसंत त्रिपाठी
  3. विशाल श्रीवास्तव
  4. वेद प्रकाश
  5. धर्मराज
  6. सोनी पाण्डेय
  7. आभा खरे

कार्यकारिणी सदस्य-

  1. अजय बिसारिया
  2. राजेन्द्र वर्मा
  3. माधव महेश
  4. रमेश पंडित
  5. विवेक निराला
  6. अनिल दीक्षित
  7. धर्मेन्द्र वीर सिंह
  8. अब्दुल अज़ीम खान
  9. रामनाथ शर्मा
  10. महेश आलोक
  11. अरुण मौर्या
  12. शालिनी सिंह
  13. नूर आलम
  14. सीमा सिंह
  15. समीना खान
  16. नाइश हसन
  17. सुभाष राय
  18. .

परिषद सदस्य—

  1. जयप्रकाश मल्ल
  2. सरिता सिंह
  3. राजनारायण सिंह
  4. सीमंत साहू
  5. सबिता एकांशी
  6. जावेद आलम
  7. आरसी चौहान
  8. मो. हुसैन
  9. नीरज सिन्हा ‘नीर’
  10. मंगल सिंह ‘मंगल’
  11. शालू शुक्ला
  12. सलमान खयाल
  13. रेनू सिंह
  14. सलाम बनारसी
  15. बलबीर पाल
  16. राकेश रागी
  17. उमेश शर्मा
  18. रचित
  19. विमल चन्द्राकर
  20. अजय कुमार पाण्डेय
  21. सुनील कटियार
  22. गीता भारद्वाज
  23. मुजम्मिल फिदा
  24. अजय गौतम
  25. रमाशंकर सिंह
  26. देव कुमार
  27. शोएब निजाम
नलिन रंजन सिंह और  समीना खान की रिपोर्ट

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