दिल्ली विधानसभा चुनाव में वाम दलों को नोटा से कम वोट मिले

वाम दलों के शुभचिंतकों के लिए एक निराश करने वाली खबर है। दिल्ली देश की राजधानी है और वहां पर पढ़े लिखों की तादाद भी काफी अधिक है। लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में छह सीटों पर चुनाव लड़ने वाले वामपंथी दलों को सभी क्षेत्रों में ‘उपरोक्त में कोई नहीं’ (नोटा) से भी कम वोट मिले। इससे लगता है कि वामपंथी दलों का न तो श्रमिक वर्ग में प्रभाव रह गया है और न ही बौद्धिक तबके में।

चुनाव जाति धर्म और संप्रदाय  में इस तरह बंट गए हैं कि रोजी रोटी और  हक की बात करने वालों  की सुनवाई नहीं हो रही है और वोटरों ने उनसे मुंह मोड़ लिया है। अब बात करते हैं कि वाम पंथी दलों में  कौन पार्टी के उम्मीदवार कहां से चुनाव लड़े और उनकी क्या स्थिति रही। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने करावल नगर और बदरपुर से उम्मीदवार उतारे थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) विकासपुरी और पालम से मैदान में थी और भाकपा (माले) लिबरेशन ने नरेला एवं कोंडली सीट से चुनाव लड़ा था।

छह सीट पर वाम दलों को कुल मिलाकर 2,158 वोट मिले, जबकि नोटा को 5,627 वोट मिले।

करावल नगर में माकपा ने प्रसिद्ध आरटीआई कार्यकर्ता एवं वकील अशोक अग्रवाल को मैदान में उतारा था, जिन्हें केवल 457 वोट मिले, जबकि 709 वोट नोटा को गए।

बदरपुर में माकपा के उम्मीदवार जगदीश चंद को 367 वोट मिले, जबकि विजेता उम्मीदवार, आम आदमी पार्टी (आप) के राम सिंह नेताजी को 1,12,991 वोट मिले और 915 वोट नोटा को गए।

विकासपुरी से भाकपा उम्मीदवार शेजो वर्गीस को 580 वोट मिले, जबकि 1,127 वोट नोटा को गए।