जब किसान आंदोलन जोरों पर था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि के तीन काले कानून वापस लेने की घोषणा की थी। दिखावे के लिए सरकार ने एमएसपी पर समिति का गठन भी कर दिया लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात। इसके बाद किसान दूसरी बार आंदोलन करने के लिए आगे आए। लेकिन तब तक किसानों में पहले चरण के आंदोलन जैसी एकता नहीं रह गई थी, मतभेद के चलते सभी किसान संगठन मैदान में नहीं उतरे। फिर अदालत के हस्तक्षेप, सरकारी दमन आदि के चलते आंदोलन को वापस ले लेना पड़ा। तब से अब तक यमुना में बहुत पानी बह चुका है। ताजातरीन स्थिति यह है कि पिछले दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विभागीय अधिकारियों के साथ कई राज्यों का दौरा किया, किसानों का हाल जाना। उन्होंने मीडिया में जो बयान दिया है कि उनके ये दौरे काफी सफल रहे हैं। किसानों की वास्तविक स्थिति से वे अवगत हुए हैं। निकट भविष्य में किसानों के लिए कुछ बेहतर करेंगे। वर्तमान हालात में यह लेख पुनः प्रासंगिक है। प्रतिबिम्ब मीडिया के पाठकों के लिए प्रस्तुत है यह शोधपरक आलेख। संपादक
किसान आंदोलन 2 – किसान लांग मार्च की ओर बढ़े: पुनर्मूल्यांकन
एमएसपी पर समिति का गठन: किसान विरोधी और निरर्थक समिति
डॉ. रामजीलाल
कोरोना काल में “आपदा को अवसर” में बदलते हुए भारत सरकार ने 5 जून 2020 को भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात तीन कृषि संबंधी अध्यादेश असाधारण राजपत्र में प्रकाशित किए। संविधान के अनुच्छेद 123 के अनुसार अध्यादेश की अवधि 6 माह होती है। इन्हें भारत सरकार द्वारा संसद की मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया गया। संसद की मंजूरी के पश्चात भारत के राष्ट्रपति ने इन पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी। 27 सितंबर 2020 (रविवार) को ये तीनों कृषि कानून (आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020; कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020; तथा आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020) भारत के विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा भारत के राजपत्र में प्रकाशित किए गए और ये उसी दिन (27 सितंबर 2020) से लागू हो गए.
>:डॉ.रामजीलाल, तीन कृषि अधिनियम-त्रिशूल आलोचनात्मक आकलन, जग मार्ग (चंडीगढ़, कुरुक्षेत्र संस्करण), 26 फरवरी 2021, पृ. 6
>डॉ. रामजी लाल, ‘किसानों का बजट 2018-2019: आंदोलन की राह पर बढ़ रहे हैं किसान’, सजग समाज (करनाल), वर्ष 12, अंक 3, मार्च 2018, पृ. 23-29.)
>डॉ. रामजी लाल, ‘कंटीले तारों और नुकीली कीलों वाली सड़क: बजट और किसान’, जग मार्ग (चंडीगढ़, कुरुक्षेत्र संस्करण), 14 फरवरी 2021, पृ.6)
जब भारत सरकार ने 5 जून 2020 को तीन कृषि संबंधी अध्यादेश लागू किए, तो किसानों को डर था कि धीरे-धीरे मंडियां खत्म हो जाएंगी और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नहीं मिलेगा। नतीजतन, किसानों ने 9 अगस्त 2020 को पंजाब में इन अध्यादेशों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। यह आंदोलन 26 नवंबर 2020 को दिल्ली में शुरू हुआ और किसानों ने दिल्ली की सीमा पर डेरा डाल दिया। देश के करीब 600 किसान संगठनों ने मिलकर आंदोलन करने पर सहमति जताई।
>डॉ.रामजीलाल ‘किसान आंदोलनों की पृष्ठभूमि: किसानों के साथ अन्याय, असंतोष https://samajweekly.com/background-of-farmers-movements-injustice-angdissatisfaction-with-farmers/
14 अक्टूबर 2020 से 22 जनवरी 2021 के बीच केंद्र सरकार और किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों के बीच ग्यारह दौर की वार्ता हुई। वार्ता के बाद सरकार के प्रतिनिधियों ने भी इन कानूनों में कई खामियां स्वीकार कीं। 22 जनवरी 2021 को वार्ता विफल होने के बाद 9 महीने के इंतजार के बाद, 19 नवंबर 2021 को, इस आंदोलन के एक साल पूरे होने से 6 दिन पहले, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिख धर्म के महान गुरु नानक देव जी की जयंती के प्रकाश उत्सव के अवसर पर अपने संबोधन में एमएसपी पर एक समिति बनाने, तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और संसद के माध्यम से एक नया कानून बनाकर उन्हें खत्म करने का वादा किया। 29 नवंबर 2021 को, तीनों कृषि कानून – किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020, किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020 का समझौता, और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 – संसद द्वारा निरस्त कर दिए गए, और “कृषि कानून निरसन विधेयक, 2021” संसद द्वारा पारित किया गया। भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद, “कृषि कानून निरसन अधिनियम, 2021” 1 दिसंबर 2021 को भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशित किया गया.
भारत सरकार का किसानों को पांच मांगों का आश्वासन
भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय एवं विभाग के द्वारा 9 दिसंबर 2021 पत्र किसानों को उनकी लंबित समस्याओं के बारे में पत्र (9 दिसंबर 2021 पत्र क्रमांक सचिव(एफडब्ल्यू /2021/ मिस/1) प्रेषित किया गया . इस पत्र के अनुसार निम्नलिखित विषयों पर आश्वासन दिये गए:
1.एमएसपी पर कमेटी गठित करने व एमएसपी खरीद की स्थिति को जारी रखने का आश्वासन
भारत सरकार के पत्र के अनुसार एमएसपी पर गठित इस कमेटी में”केंद्र सरकार, राज्य सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि और कृषि वैज्ञानिक”सम्मिलित होने की बात कही गई. यह स्पष्ट किया गया कि” किसान प्रतिनिधि में एसकेएम के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे. कमेटी का एक मेंडेट यह होगा कि देश के किसानों को एमएसपी मिलना किस तरह सुनिश्चित किया जाए. सरकार वार्ता के दौरान पहले ही आश्वासन दे चुकी है कि देश में एमएससी पर खरीदी की अभी की स्थिति को जारी रखा जाएगा.”
- किसानआंदोलन के दौरान किसानों पर तत्काल प्रभाव से केस वापस :पूर्णतया सहमति
इस पत्र में यह स्पष्ट किया गया कि” जहां तक किसानों के आंदोलन के वक्त के केसों का सवाल है यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकार ने इसके लिए पूर्णतया सहमति दे दी है कि तत्काल प्रभाव से आंदोलन संबंधित सभी केसों को वापस लिया जाएगा”.
2A. “किसान आंदोलन के दौरान भारत सरकार के संबंधित विभाग और एजेंसियों तथा दिल्ली सहित सभी संघ शासित क्षेत्र में आंदोलनकारियों और समर्थकों पर बनाए गए आंदोलन से संबंधित सभी केस भी तत्काल प्रभाव से वापिस लेने की सहमति है .भारत सरकार अन्य राज्यों से अपील करेगी कि इस किसान आंदोलन से संबंधित केसों को अन्य राज्य भी वापस लेने की कार्रवाई करें”.
3. मुआवजे का प्रश्न :सैद्धांतिक सहमति
मुआवजे के संबंध में पत्र में लिखा है कि “जहां तक मुआवजा का सवाल है इसके लिए भी हरियाणा और यूपी सरकार ने” सैद्धांतिक सहमति” दे दी है .
उपर्युक्त दोनों विषयों (क्रमांक 2एवं 3)के संबंध में पंजाब सरकार ने भी सार्वजनिक घोषणा की है.”
4.बिजली बिल के प्रावधान : बिल संसद में पेश करने का आश्वासन
पत्र के अनुसार “बिजली बिल में किसान पर असर डालने वाले प्रावधानों पर पहले सभी स्टेक होल्डर्स/ संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा होगी. संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा होने के बाद ही बिल संसद में पेश किया जाएगा.”
5.पराली का मुद्दा :क्रिमिनल लायबिलिटी से किसानों को मुक्ति
पत्र के अनुसार “जहां तक पराली के मुद्दे का सवाल है, भारत सरकार ने जो कानून पारित किया है उसकी धारा 14 और 15 में क्रिमिनल लायबिलिटी से किसानों को मुक्ति दी.”
भारत सरकार के इस पत्र में इस बात पर बल दिया गया कि सरकार के इस “प्रस्ताव से लंबित पांच मांगों का समाधान हो जाता है.अब किसान आंदोलन को जारी रखने का कोई “औचित्य” नहीं रह जाता है. और किसानों से अनुरोध किया गया कि “किसान आंदोलन समाप्त करें.”
यद्यपि तीनों कृषि कानून संसद के द्वारा एक नया कानून बनाकर निरस्त कर दिए गए .परंतु किसानों की बाकी मांगें अभी पूरी नहीं हुई. तीन कृषि कानून वापिस होने के पश्चात संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री मोदी को संदेश देते हुए कहा कि मुख्य छह मांगें व लक्ष्य बाकी हैं:
“1.किसानों को खेती की संपूर्ण लागत पर आधारित सी2+ 50% फार्मूले के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाए तथा इसे सभी किसानों का कानूनी हक बनाया जाए,
2.विद्युत अधिनियम संशोधन विधेयक सन् 2020 /2021 का ड्राफ्ट वापस लिया जाए,
3.राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उससे जुड़े क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता का प्रबंधन के लिए आयोग अधिनियम 2021 में किसानों को सजा देने के प्रावधान को हटाया जाए,
4.किसान आंदोलन के दौरान जून 2020 से हजारों किसानों के विरुद्ध दर्ज किए गए केसों को तत्काल वापस लिया जाए,
5.लखीमपुर खीरी हत्याकांड के सूत्रधार और सेक्शन 12 (ओ बी) अभियुक्त अजय मिश्रा टेनी जो केंद्रीय सरकार में गृह राज्य मंत्री हैं को बर्खास्त किया जाए, तथा
- किसानमोर्चा के आखिरी मांग यह है कि इस आंदोलन के दौरान लगभग 700 किसानों ने शहादत दी है उनके परिवारों को मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था हो तथा शहीद स्मारक बनाने के लिए टिकरी बॉर्डर पर जमीन दी जाए.”
एमएसपी पर कमेटी का गठन : किसान विरोधी और अर्थहीन कमेटी
एमएसपी पर प्रथम प्रस्तावित कमेटी के गठन के संबंध में 24 मार्च 2022 को कृषि सचिव ,भारत सरकार को संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं –डॉ. दर्शनपाल, हन्नान मोल्ला, जोगिंदर सिंह उगराहां, युद्धवीर सिंह और योगेंद्र यादव ने ईमेल(*संयुक्त किसान मोर्चा* ईमेल:samyuktkisanmorcha@gmail.com) के द्वारा निम्नलिखित विषयों पर स्पष्टीकरण मांगा:
“1.इस कमेटी के टर्मस आफ रेफरेंस(TOR) क्या रहेंगे?
2.इस कमेटी में संयुक्त मोर्चा के अलावा किन और संस्थाओं, व्यक्तियों और पदाधिकारियों को शामिल किया जाएगा?.
3.इस कमेटी का अध्यक्ष कौन होगा और इसकी कार्यप्रणाली क्या होगी ?
4.कमेटी को अपनी रिपोर्ट देने के लिए कितना समय लगेगा?
- क्याकमेटी की सिफारिश सरकार पर बाध्यकारी होगी?”
परंतु सरकार के द्वारा स्पष्टीकरण न दिए जाने के कारण संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा इस प्रस्तावित कमेटी में अपने प्रतिनिधियों का नामांकन करने से इनकार कर दिया था . परिणाम स्वरूप कमेटी का गठन रुक गया. किसान आंदोलन खत्म होने के करीब 8 महीने बाद 12 जुलाई 2022 को भारत सरकार ने MSP पर दूसरी कमेटी के गठन की अधिसूचना जारी कर दी.
29 सदस्यीय एमएसपी समिति-गठन की अधिसूचना: संयुक्त किसान मोर्चा के लिए केवल तीन स्थान:
भारतीय संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई 2022 को आहूत किया गया. इस सत्र से पूर्व भारत सरकार के द्वारा देश की “बदलती जरूरतों” को ध्यान में रखते हुए “फसल पैटर्न को बदलने” और ‘ न्यूनतम समर्थन मूल्य ‘(एमएसपी) को अधिक “प्रभावी और पारदर्शी” बनाने, “शून्य बजट आधारित खेती को बढ़ावा देने” के लिए 12 जुलाई 2022 को भारतीय सरकार ने एमएसपी पर द्वितीय कमेटी के गठन की अधिसूचना जारी की . 29 सदस्यीय एमएसपी कमेटी में सरकार ने अध्यक्ष सहित 26 सदस्यों को नामित किया और संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों के लिए केवल तीन स्थान रखे . किसान आंदोलन समाप्त होने के 8 महीने के पश्चात भारत सरकार के द्वारा संयुक्त मोर्चा से एमएसपी समिति के संबंध में तीन प्रतिनिधि नामित करने का अनुरोध किया.
द्वितीय कमेटी के गठन पर संयुक्त किसान मोर्चा की प्रतिक्रिया: किसान प्रतिनिधियों को भेजने से इंकार
एमएसपी तथा अन्य विषयों पर संयुक्त किसान मोर्चा की गठित कमेटी के नेताओं —डॉ दर्शन लाल हन्नान मोल्ला जोगिंदर सिंह उगराहां युद्धवीर सिंह ,योगेंद्र यादव ने 19 जुलाई 2022 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि किसान मोर्चा इस कमेटी में कोई भी प्रतिनिधि नामांकित नहीं करेगा. क्योंकि “सरकारी सदस्यों और सरकार के पिठ्टूओं से भरी इस कमेटी के एजेंडा में एमएससी कानून की चर्चा करने की कोई गुंजाइश ही नहीं है.” संयुक्त किसान मोर्चा ने इस कमेटी के गठन पर अधोलिखित आधार पर एतराज किया :
- तीनकृषि कानूनों के समर्थकों तथा किसान आंदोलन के विरोधी लोगों का जमवाड़ा :
संयुक्त किसान मोर्चा ने 19 जुलाई 2022 को एक प्रेस विज्ञप्ति में यह स्पष्टीकरण किया गया कि “इस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल हैं जिन्होंने तीन किसान विरोधी कानून बनाएं .उनके साथ नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद्र भी हैं जो इन तीनों कानूनों के मुख्य पैरोकार रहे. विशेषज्ञ के नाते अर्थशास्त्री हैं जो एमएसपी को कानूनी दर्जा देने के विरुद्ध रहे हैं “
- भारतीयजनता पार्टी के समर्थकों का एक शक्तिशाली समूह :
प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार”कमेटी में संयुक्त मोर्चा के 3 प्रतिनिधि के लिए जगह छोड़ी गई है .लेकिन बाकी स्थानों में किसान नेताओं के नाम पर सरकार ने अपने पांच वफादारों को ठूंस लिया है.जिन सबने खुलकर तीनों किसान विरोधी कानूनों की वकालत की थी. यह सब लोग या तो सीधे भाजपा से जुड़े हुए हैं या उनकी नीति की हिमायत करते हैं. कृष्णा वीर चौधरी भारतीय कृषक समाज से जुड़े हैं और भाजपा के नेता हैं. सैयद पाशा पटेल महाराष्ट्र से भाजपा के एमएलसी रह चुके हैं. प्रमोद कुमार चौधरी आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं. गुणवंत पाटिल शेतकरी संगठन से जुड़े डब्ल्यूटीओ के हिमायती और भारतीय स्वतंत्र पार्टी के जनरल सेक्टरी हैं . गुणी प्रकाश किसान आंदोलन का विरोध करने में अग्रणी रहे हैं.यह पांचों लोग तीनों किसान विरोधी कानूनों के पक्ष में खुलकर बोले थे और अधिकांश किसान आंदोलन के खिलाफ जहर उगलने काम करते रहे हैं.”
इनके अतिरिक्त इस कमेटी में आईसीएआर के महानिदेशक, चार राज्य सरकारों –कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा के कृषि विभाग के अप्पर मुख्य सचिवों को भी शामिल किया गया है.
3. कमेटी के एजेंडा में एमएसपी पर वैधानिक गारंटी न होना:
संयुक्त किसान मोर्चा की विज्ञप्ति के अनुसार “कमेटी के एजेंडा में एमएसपी पर कानून बनाने का जिक्र तक नहीं है.यानी कि यह प्रश्न कमेटी के साथ में रखा ही नहीं जाएगा .एजेंडा में कुछ ऐसे आइटम डाले गए हैं . जिन पर सरकार की कमेटी पहले से बनी हुई है. कृषि विपणन में सुधार के नाम पर एक ऐसा आइटम डाला गया, जिसके जरिए सरकार पिछले दरवाजे से तीनों काले कानूनों को वापस लाने की कोशिश कर सकती है।”
4. संयुक्त किसान मोर्चा को केवल 3 प्रतिनिधि नामित करने का अधिकार:
इस 29 सदस्यीय समिति में संयुक्त किसान मोर्चा को केवल 3 प्रतिनिधि नामित करने का अधिकार है. वह समिति जो कृषि कानूनों के समर्थकों तथा किसान आंदोलन के विरुद्ध हो तथा उसमें तीन सदस्यों की ‘आवाज मेले में तूति के समान होगी. ऐसी समिति में किसानों की आवाज को न तो सुना जाएगा और न ही उनकी बात को माना जाएगा’ ,
5. पंजाब का प्रतिनिधित्व न होना सर्वप्रथम तीन कृषि अध्यादेश लागू होते ही पंजाब में किसान आंदोलन प्रारंभ हो गया था .बड़े अफसोस की बात है कि इसमें पंजाब का कोई प्रतिनिधि नहीं लिया गया जबकि उत्पादन में पंजाब की भूमिका सर्वश्रेष्ठ है तथा आंदोलन की दृष्टि से भी पंजाब का विशेष महत्व है .
6. किसानों की महत्वपूर्ण मांगों के संबंध में स्पष्टीकरण न होना: सरकार के द्वारा ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिक गारंटी’ प्रदान न करना तथा “लखीमपुर खीरी हत्याकांड’’के अपराधियों को सजा,बिजली बिल के संशोधन इत्यादि विषयों पर यथोचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया
7.न्यूनतम समर्थन मूल्य कमेटी: अनौचित्य बातों को जोड़ना
न्यूनतम समर्थन मूल्य कमेटी जिसका मुख्य कार्य न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण करना है उसके साथ अनेक ऐसी बातें जोड़ दी गई जिनका कोई औचित्य नहीं है . उदाहरण के तौर पर ‘’शून्य बजट आधारित खेती” को बढ़ावा देना, ‘फसल पैटर्न’ को बदलना’,’ कृषि का विविधीकरण,’ “प्राकृतिक खेती’’ इत्यादि. प्राकृतिक खेती इस बात पर बल देती है कि रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग न किया जाए. प्राकृतिक खेती की अवधारणा की चर्चा भारत की वित्त मंत्री श्रीमती सीतारमण ने सन् 2017, सन् 2020 व सन् 2021के बज़टीय भाषणों में बार-बार की थी. प्राकृतिक खेती के कृषि उत्पादनों व खाद्य सुरक्षा पर पड़नें वाले गहन कुप्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन किए बिना व संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व को विश्वास में लिए बिना इसको जोड़ना पूणर्तया अनुचित था.
प्राकृतिक खेती : कृषि उत्पादनों व खाद्य सुरक्षा पर गहन कुप्रभाव
हमारे सामने प्राकृतिक खेती के कृषि उत्पादनों व खाद्य सुरक्षा पर पड़नें वाले गहन कुप्रभावों के संबंध में श्रीलंका का बड़ा महत्वपूर्ण उदाहरण है .श्रीलंका के सन् 2021 में सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर प्रतिबंध के कारण 100% जैविक कृषि में बदलाव के विनाशकारी परिणाम हुए, जिससे कृषि उत्पादन में, विशेष रूप से चावल उत्पादन (20%) और चाय के उत्पादन (18%) में उल्लेखनीय गिरावट आई . इसके परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि, गंभीर आर्थिक संकट, किसानों की आय में भारी गिरावट, भुखमरी, लंकाई लोगों में खाद्य असुरक्षा का भय उत्पन्न होना इत्यादि मुख्य प्रभाव पड़े . आर्थिक संकट -साथ राजनीतिक भी उत्पन्न हो गया. डॉ वीरेंद्र लाठर ( पूर्व प्रधान वैज्ञानिक भारतीय अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली) के अनुसार “किसानों की जीवन रेखा एमएसपी की गारंटी कानून की मांग के साथ बेमेल जीरो बजट इत्यादि के विषय जोड़ दिए गए हैं, जो कि सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करते हैं .ज्ञात रहे कृषि वैज्ञानिकों की राष्ट्रीय संस्था पहले ही बेतुकी जीरो बजट, प्राकृतिक खेती को किसान विरोधी और देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा घोषित कर चुकी है . अब दुनिया जानती है कि श्रीलंका के मौजूदा संकट के लिए प्राकृतिक खेती से उत्पन्न हुई असुरक्षा कारण बनी,क्योंकि वहां सरकार ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के मूर्खतापूर्ण जुनून को रसायनिक खाद आदि के आयात पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा रखा है.”
भारत सरकार को श्रीलंका की तबाही से सबक सीखना चाहिए और प्राकृतिक खेती,जीरो बजट खेती तथा विविधीकरण इत्यादि भारत की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल देगी.आज 80 करोड़ से अधिक जनसंख्या को फ्री राशन दिया जा रहा है. यदि कृषि उत्पादन घट गया तो वही हालात पैदा होने का खतरा है जो 20 सदी में हुए थे. कृषि के पिछड़ेपन के कारण भारत में गरीबी और भुखमरी का साम्राज्य हो गया.विदेशों से खाद्यान्न को आयात किया जाने लगा. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने अपनी पुस्तक (“भारत की अर्थ नीति:गांधीवादी रूप रेखा ,1978″) में लिखा कि सन् 1965 सन् 1967 के अंतराल में अमेरिकी सरकार के द्वारा पीएल 480 के अंतर्गत 45,76,000 मीट्रिक टन गेहूं भारत को उपहार के रूप में दी गई . कनाडा सरकार के द्वारा भारत को 2,25,000 मीट्रिक टन गेहूं उपहार के रूप में दी गई जिसकी कीमत 35.8 करोड रुपए थी.
दूसरी ओर, जब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और सी. सुब्रमण्यम ने ‘जय किसान, जय जवान’ के नारे के साथ हरित क्रांति की शुरुआत की, तो अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन के प्रशासन ने भारत को खाद्यान्न निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. शंकर अय्यर के अनुसार, “यह एक संकट के मद्देनजर हुआ – 1965 में, अमेरिका में लिंडन बी. जॉनसन प्रशासन ने भारत को खाद्यान्न शिपमेंट पर प्रतिबंध लगा दिया, और ‘शिप-टू-माउथ’ अर्थव्यवस्था शब्द गढ़ा.”
>Shankkar Aiyar,India: A History of the Nation’s Passage through Crisis and Change,2012)
परिणाम स्वरूप संयुक्त किसान मोर्चा ने गंभीर चिंतन के पश्चात यह निर्णय लिया कि “ किसान विरोधी और अर्थहीन कमेटी” में संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि भेजने का “कोई औचित्य नहीं है”. संयुक्त किसान मोर्चा ने इस समिति के गठन को “विश्वासघात” माना तथा इस कमेटी में कोई भी “प्रतिनिधि नामांकित नहीं” करने का फैसला लिया. अन्य शब्दों में संयुक्त किसान मोर्चा ने कमेटी में किसान प्रतिनिधियों को भेजने से इंकार कर दिया
सरकार द्वारा गठित कमेटी कोई “रामबाण” संस्था नहीं है. वास्तव में एक ओर पूंजीपति ,उद्योगपति व कार्पोरेट्स अपने उत्पाद “मैक्सिमम रिटेल प्राइस”( एमआरपी )पर बेचते हैं ,सरकार को इस पर कोई एतराज नहीं है. जबकि किसान कोई चांद की मांग नहीं कर रहे हैं.अपितु वह केवल अपने उत्पादों पर “मैक्सिमम रिटेल प्राइस”( एमआरपी ) की अपेक्षा “न्यूनतम समर्थन मूल्य”(एमएसपी) को “वैधानिक दर्जा “ देने की की मांग कर रहे हैं ताकि उनके भी अच्छे दिन आ जाएं. यहां यह बताना जरूरी है कि किसानों को सी2+50% फार्मूले के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलने के कारण उनके आर्थिक हालात ठीक नहीं है.
एमएसपी का निर्धारण : किसान की वास्तविक लागत के बीच का अंतर- विवाद का कारण
एमएसपी का निर्धारण कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिश के आधार पर सरकार के द्वारा किया जाता है.वर्तमान में एमएसपी निर्धारण के अधोलिखित तीन फार्मूले हैं:
1.ए2 लागत- इस फार्मूले के अंतर्गत न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण उर्वरक,कीटनाशक,किराए पर (ठेके पर) ली गई जमीन ,मजदूरी,मशीनरी,ईंधन पर किए गए खर्च के आधार पर किया जाता है.
- ए2+एफएल लागत:
इस फार्मूले में आयोग ए2 लागत –(उर्वरक,कीटनाशक,किराए पर (ठेके पर) ली गई जमीन ,मजदूरी,मशीनरी,ईंधन पर किए गए खर्च ) में -परिवार के सदस्यों द्वारा खेत पर किए गए श्रम (फैमिली लेबर) के मूल्य का योग किया जाता है.
- सी2 लागत: इस फार्मूले के अंतर्गत ए2+एफएल के अलावा, किसान की अपनी जमीन का किराया और जैसे ट्रैक्टर, सिंचाई उपकरण व ब्याज भी जोड़ा जाता है
राष्ट्रीय किसान आयोग(स्वामीनाथन आयोग 2006) की संस्तुति के अनुसार एमएसपी का निर्धारण करते समय किसान की व्यापक लागतC2 में 50 प्रतिशत अधिक जोड़ा जाना चाहिए.
यद्यपि सरकारों के द्वारा यह दावा किया जाता है कि किसानों को एमएसपी दिया जा रहा है.परंतु वास्तव में यह एमएसपी को देशभर की औसत लागत से 1.5 गुणा रख निर्धारित किया जाता है. तथा यह लागत सरकार ए2+एफएल के आधार पर करती है. स्वामीनाथन आयोग (2006)की संस्तुति सी2+50% लागत के आधार पर आज तक किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया गया.परिणाम स्वरूप किसानों और सरकार के मध्य यही विवाद का प्रमुख कारण है.
यहां यह बताना जरूरी है कि किसानों को सी2+50% फार्मूले के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलने के कारण उनके आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं.बिहार में सन् 2006 में मंडियां समाप्त कर दी गई थी. यही कारण है कि सन् 2020 के आंकडों के अनुसार बिहार में ₹45,317 किसानों की औसतन आय प्रतिवर्ष है और यह देश में सबसे न्यूनतम है. इसके बिल्कुल विपरीत पंजाब में ₹2,30,905 प्रति वर्ष किसान की औसतन आय होने के कारण भारत में सर्वाधिक है. ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आमदनी में अंतर केवल ग्रामीण किसानों के मध्य विभिन्न राज्यों में ही नहीं है अपितु यह अंतर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी है. ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय, 40,925 रुपये है जो शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय की अपेक्षा आधी से भी कम है. औद्योगिक और कृषि प्रधान राज्यों के बीच प्रति व्यक्ति आय में और भी अधिक अंतर है ग्रामीण क्षेत्र में आय का अंतर व कमी किसानों की दशा, , दुर्दशा,परेशानी , व रोष का मूल कारण है.
किसान विरोधी और नकारात्मक कृषि नीति -‘ए मल्टी बिलियन डॉलर ऑपर्च्यूनिटी’ की रिपोर्ट (सितंबर 2021) – किसानों को सजा :
ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनामिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट( ओ ई सी डी) की रिपोर्ट के अनुसार सन् 2000 से सन् 2016-17 के बीच उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलने के कारण भारतीय किसानों को 45 लाख करोड रुपए का नुकसान हुआ है .एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारतीय किसानों को यह नुकसान ₹8000 से ₹10,000 प्रति एकड़ प्रति वर्ष है.इसका मूल कारण यह है कि पिछले बीस वर्षों (सन् 2000 से सन् 2020) से भाजपा नीत एनडीए सरकार तथा कांग्रेस नीत यूपीए सरकार और पुन: भाजपा नीत एनडीए सरकारों के द्वारा जो कृषि नीति अपनाई गई वह “किसान विरोधी” और “नकारात्मक” है .उपभोक्ताओं को प्रसन्न करने तथा उनके हितों की सुरक्षा करने के लिए किसानों के उत्पादों का मूल्य उस तरीके से नहीं बढ़ाया गया जिस तरीके से कृषि में लगने वाले निवेशों – बिजली, पानी , डीजल ,पैट्रोल, खाद, यूरिया, पेस्टिसाइड ,मजदूरी तथा अन्य उपकरणों के दामों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. कृषि उत्पादों की कीमत कम रखकर उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए “किसानों को सजा” दी जा रही है .
संयुक्त राष्ट्र की तीन एजेंसियों–खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) , संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की ‘ए मल्टी बिलियन डॉलर ऑपर्च्यूनिटी’ की रिपोर्ट (सितंबर 2021) के अनुसार “पिछले बीस सालों से भारत में कृषि की नीतियां इस तरह की रही हैं, जिससे खाद्य पदार्थों के दाम न बढ़ाकर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जा सके। इसका खामियाजा किसानों को सजा के तौर पर झेलना पड़ता है ’ इस तथ्य की पुष्टि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन द्वारा ‘कृषि नीतियों की निगरानी और विकास 2020’ की रिपोर्ट में भी की गई है .रिपोर्ट के अनुसार भारत में खाद्य पदार्थों की कीमतें कम रखने की सजा किसानों को भुगतनी पड़ती है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (2020) की रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि भारतीय किसानों के लिए ‘उत्पादक समर्थन आकलन’5.7% नकारात्मक है. परिणाम स्वरूप सन् 2019 में भारतीय किसानों को 23 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है.
न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी: खर्च लगभग 2लाख करोड़
हमारा यह सुनिश्चित अभिमत है कि सरकार के द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दे देनी चाहिए.क्योंकि इससे केंद्रीय तथा राज्य सरकारों का लगभग दो लाख करोड रुपए वार्षिक खर्च होंगे .यह कोई नुकसान नहीं है क्योंकि इसके बदले में सरकारों के फसल के भंडार भरेंगे. वर्तमान समय में क्लाइमेट च्रक के कारण गेहूं का उत्पादन कम हो रहा है ऐसी स्थिति में भुखमरी को दूर करने के लिए यह अति आवश्यक है .संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं को विश्वास में लेकर सरकार को नीति का निर्माण करना चाहिए ताकि न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दी जा सके.
>डॉ.रामजीलाल,एमएसपी पर कानून का निर्माण:फसल को सुरक्षित रखने का मूल मंत्र ,जग मार्ग (चंड़ीगढ़,कुरूक्षेत्र संस्करण),7 मार्च2021 2021,पृ. 6)
> DR.Ramjilal,https://samajweekly.com/legal-guarantee-of-minimum-support-price-c2+50% /)
न्यूनतम समर्थन मूल्य के वैधानिक रूप के विरुद्ध यह तर्क दिया जाता है कि इस पर खर्च होने वाला 2लाख करोड़ कहां से आएगें.? भारत की केंद्रीय कांग्रेस पार्टी नीत यूपीए तथा भाजपा नीत एनडीए सरकारों ने कॉर्पोरेट को सुविधाएं और छूट प्रदान करें अरबों रुपए का लाभ पहुंचाया है. परंतु उन्होंने कभी इस बात के विरुद्ध ज़बान तक नहीं खोली कि वह पैसा कहां से आया.?
कॉर्पोरेटप्रस्त सरकारें :कॉर्पोरेट को सुविधाएं -लूट, छूट , एनपीए, खराब ऋण , बट्टा खाता,बैलेंस शीट साफ और मुंडन संस्कार
भारत की केंद्रीय सरकार ने कॉर्पोरेट को सुविधाएं और छूट प्रदान करें खरबों रुपए का लाभ पहुंचाया है .एक रिपोर्ट के अनुसार कॉर्पोरेट को सन्2005-सन् 2006 से सन्2015- सन्2016 तक ₹ 42, 08347 करोड़ इनकम टैक्स ,एक्साइज ड्यूटी और कस्टमड्यूटी में छूट दी गई.सन्2005- सन् 2006 के मुकाबले सन्2015 सन् 2016. यह छूट 140.59 प्रतिशत थी. इस छूट को सब “सब्सिडी” का नाम नहीं दिया गया जबकि गरीबों, बेरोजगारों तथा स्वास्थ्य पर जो“सब्सिडी” दीजाती है उसे “वेस्टफुल सब्सिडी” (रेवड़ी) के नाम से पुकारा जाता है.सन् 2016 तक कॉर्पोरेट घरानों को जो छूट दी गई है उससे मनरेगा का कार्यक्रम 109 बरस तक चल सकता है. सन्2005-सन्2006 से सन्2015-सन्2016 तक सोना,डायमंड तथा जेवरात पर 4.6 ट्रिलियन डॉलर की छूट दी गई है.यह राशि सन् 2015-16 बजट में कृषि और कृषक कल्याण के लिए निर्धारित राशि से13गुणा अधिक है.
कॉर्पोरेट जगत को सुविधाओं के मामले में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यूपीए तथा भाजपा नीत एनडीए सरकारें किसान विरोधी तथा कॉर्पोरेट प्रस्त हैं. परंतु भाजपा नीत एनडीए सरकार बहुत अधिक कॉर्पोरेट प्रस्त है. केवल यही नहीं अपितु जो पैसा एनपीए करके बैंकों का “मुंडन संस्कार” (हेयर कटिंग) किया गया और “विलफुल डिफॉल्टर्स” को लाभ पहुंचाया गया. इसका किसान विरोधी लोग वर्णन नहीं करते.
एनपीए के आंकड़े चौकाने आने वाले हैं. सन् 2008- सन् 2014 से सन् 2014- सन्2020 तक आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि सन् 2014- सन् 2015 से सन् 2019- सन् 2020 तक पीएसबी का नया सकल एनपीए लगभग 18.28 लाख करोड़ रुपये रहा, जो यूपीए शासन में सन् 2008-09 से सन् 2013-14 तक लगभग 5 लाख करोड़ रुपये था… पीएसबी ने पिछले छह वर्षों में 6,83,388 करोड़ रुपये के “खराब ऋण” को “बट्टे खाते “में डाल दिया, जो सन् 2008 से सन् 2014 की अवधि में किए गए 32,109 करोड़ रुपये से भारी वृद्धि है। बैलेंस शीट को साफ करने के लिए बैंक अपने अभ्यास के हिस्से के रूप में चार साल से अधिक पुराने एनपीए को बट्टे खाते में डाल देते हैं। आरटीआई कार्यकर्ता प्रफुल्ल शारदा की आरटीआई द्वारा मांगी गई सूचना के अनुसार मोदी सरकार ने 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2021 तक बैंकों के 11,19,482 करोड़ रुपए ‘राइट ऑफ’किए हैं . आरटीआई में यह भी खुलासा किया गया है कि सन् 2004 से सन् 2014 तक केंद्र की यूपीए सरकार के द्वारा 2.22 लाख करोड रुपए के लोन माफ किए गए थे .दूसरे शब्दों में मोदी सरकार के द्वारा बैंक लोन 5 गुना अधिक’राइट ऑफ, किए गए हैं. प्रफुल्ल शारदा को मिली सूचना के अनुसार कोरोना काल के 15 महीनों में भाजपा नीत केंद्र सरकार ने 2,45,456 रूपये के “लोन माफ” किये हैं. सरकारी बैंकों ने,56,681करोड़ रूपये के ‘लोन राइट ऑफ’ किए. जबकि निजी बैंकों ने 80,883 करोड़ रूपये,फौरन बैंकों ने 3826 करोड़ रूपये , एनबीएफसी ने 1216 करोड़ रूपये के ‘लोन माफ. किये है तथा शेड्यूल कॉमर्स बैंक ने 2859 करोड़ रूपये’राइट ऑफ’ किए हैं.
इसके अतिरिक्त उद्योगपतियों को अनेक प्रकार की छूट दी गई है. द न्यू इंडिया एक्सप्रेस( हैदराबाद: 17 जुलाई 2022) की रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय सरकार के आदेशानुसार राज्य सरकारों तथा ऊर्जा उत्पादक कंपनियों को अदानी ग्रुप से कम से कम 20,000 टन कोयला खरीदना ही है. यह आदेश केंद्रीय सरकार पर भी लागू है.अदानी द्वारा आयातित कोयले की कीमत घरेलू कोयले की कीमत से लगभग 10 गुना अधिक है. घरेलू कोयले की कीमत ₹1700 से लेकर ₹2000 प्रति टन है. अदानी द्वारा आयातित कोयले की कीमत लैंडिंग सहित ₹20,000 प्रति टन है. अदानी द्वारा 2.416 मिलियन टन कोयला आयातित किया है.इस कोयले की कीमत लैंडिंग सहित(एफओआऱ)₹4303 करोड़ है.
13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना कीस्वीकृति भारतीय कैबिनेट के द्वारा दे दी गई . फसल बीमा का समस्त कार्य 18 इंश्योरेंस कंपनी को सौंपा गया. सन्2016 – सन् 2017 से सन्2021 सन् 2022 तक पांच वर्षों के अंतराल में इन कंपनियों के द्वारा 40,000 करोड रुपए का मुनाफा हुआ उधर दूसरी ओर किसान मुआवजे के लिए के लिए धरने- प्रदर्शन करते रहे. इतनी मोटी रकम कारपोरेट की जेब में डाल दी गई. इनके अतिरिक्त जो सुविधाएं कारपोरेट ,उद्योगपतियों तथा पूंजीपतियों को दी गई है यदि इन की रकम को जोड़ा जाए तो वह खरबों रूपए हो जाएगी.परंतु किसान व कृषि विरोधियों को आंखों में मोतियाबिंद के कारण यह नजर नहीं आता. वस्तुत: यह रकम एमएसपी को वैधानिक बनाने के बाद जो खर्च लगभग ₹2,00,000 करोड रुपए का होगा उस से कई गुना अधिक है.
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) :किसानों का नैसर्गिक अधिकार :
यदि यही स्थिति जारी रहती है व किसान हितैषी नीतियां नहीं बनती तथा किसानों को उनके उत्पाद का स्वामीनाथन रिपोर्ट (2006) के द्वारा सुझाए गए सी2 +50% फार्मूले के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया जाता तो किसानों के कभी भी अच्छे दिन नहीं आएंगे और लूट तथा शोषण जारी रहेंगे.भारतीय किसानों को इस बात को पूर्णतया समझना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए निरंतर जागरूक ही नहीं अपितु आंदोलित भी होना चाहिए ताकि सरकार की नीतियों में बदलाव करवा कर किसान हितैषी नीतियों का निर्माण करवाया जा सके।
(डॉ रामजीलाल,’ एमएसपी के संबंध में कानून का निर्माण किया जाए’,( चंडीगढ़ तथा कुरुक्षेत्र संस्करण). 21 अक्टूबर 2020 ,पृ.6)
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी )प्राप्त करना किसानों का नैसर्गिक अधिकार (Natural Right) है. न्यूनतम समर्थन मूल्य का आंकलन सी2+ 50% फार्मूले के आधार पर किया जाए तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिक गारंटी होना अनिवार्य है. संयुक्त किसान मोर्चा समन्वय समिति के सदस्य दर्शन पाल ने एक बयान में यह बतायाकि किसान आंदोलन सन् 2020 सन् 2021 के दौरान सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के बीच में बातचीत के 11 दौर चले. बातचीत के समय न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैधानिक जामा पहनाने की बात को बार-बार दोहराया गया. समर्थन मूल्य की मांग किसान स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर कर रहे हैं.
Dr.Ramjilal,Legal Guarantee of Minimum Support Price (C2+50%) and the Speed of the Engine of Agricultural Development: An Evaluation
>.डॉ रामजीलाल,’नीति ,नियत एवं इच्छा शक्ति के बिना स्वामीनाथन् रिपोर्ट लागू करना असंभव’, सजग समाज ,(करनाल), वर्ष 9 ,अंक 5 , मई 2015 ,पृ. 8- 12.
>डॉ रामजीलाल,’भारत में किसान आत्महत्या :एक विश्लेषण,’ सजग समाज (करनाल),.वर्ष 9, अंक ,4 अप्रैल 2015 , पृ. 13 -17.
19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा करते समय किसान समिति के गठन आश्वासन देते कहा था कि यह न्यूनतम समर्थन मूल्य सहित किसानों के अन्य मुद्दों पर भी विचार करेगी. भारत सरकार ने 9 दिसंबर 2021 के आश्वासन पत्र में भी समिति गठित करने का जिक्र किया गया था. परंतु सरकार ने समिति का गठन लगभग 8 महीने के पश्चात किया. हमारा सुनिश्चित अभिमत है कि सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिक गारंटी देनी चाहिए .वैधानिक गारंटी किसानों व राष्ट्र के लिए रामबाण सिद्ध होगी. परंतु नवंबर 2021के पश्चात सरकार ने किसानों की मांगों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया. यह सर्वविदित है कि एमएसपी समिति का गठन 12 जुलाई 2022 को किया गया था, तथा इसके कार्यों के लिए 35 लाख रुपए आवंटित किए गए थे। अपनी स्थापना के बाद से 18 महीनों में इस समिति की 35 बार बैठकें हुईं। लेकिन सरकार ने एसकेएम और समिति के बीच हुए पत्राचार, समिति की कार्यवाही और रिपोर्ट को 8 फरवरी 2024 तक सार्वजनिक नहीं किया, आरटीआई कार्यकर्ता को भी उपलब्ध कराना तो दूर की बात है.
परिणाम स्वरूप मांगों की पूर्ति के लिए किसानों ने दोबारा 13 फरवरी 2024 को किसान आंदोलन प्रारंभ किया. जिसे किसान आंदोलन 02 के नाम से पुकारते हैं 13फरवरी 2024 से 20 मार्च 2025 तक –400 दिनों तक किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) और संयुक्त किसान मोर्चा( एसकेएम-गैर- राजनीतिक) के नेतृत्व में पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू बॉर्डर (पटियाला जिला) व हरियाणा सीमा के पास खनौरी बॉर्डर (संगरूरजिला) पर किसानों ने शांतिपूर्ण धरना दिया. पंरतु इसके बाद आमआदमी पार्टी नीत पंजाब सरकार के आदेशानुसार पुलिस ने सख्त कार्रवाई करते हुए बैरिकेड्स, वाहनों और अस्थायी ढांचों को हटा दिया .परिणामस्वरूप आंदोलन का समापन हो गया.
हमारा यह सुनिश्चित अभिमत है कि आंदोलन, हड़ताल ,धरने और प्रदर्शन करना एक स्वस्थ लोकतंत्र की अतुलनीय परंपरा है. भारतीय संविधान के मूल अधिकारों से संबंधित तीसरे अध्याय में भारतीय नागरिकों को संगठन बनाने ,सभा आयोजित करने ,लाम बंद करने व विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता है. आंदोलन चाहे वह किसानों का हो अथवा राजनीतिक दलों का हो यह जीवित राष्ट्र की सबसे बड़ी पहचान होती है. सरकार और जनता को जागरूक करने का आंदोलन एक बहुत बड़ा संकेतक होता है .अंततः जब तक किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं होता तब तक हिंदुस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में किसान आंदोलन चलाते रहेंगे.
डॉ. रामजीलाल
लेखक समाज वैज्ञानिक और पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा, भारत) हैं।