किसानों का कष्ट बढ़ा रहा करोड़ों का कर्ज

प्रदीप मिश्रा

 

प्रदीप मिश्र
अन्नदाताओं की माली हालत खराब है। वे बुरी तरह से कर्ज से लदे हैं और इसमें उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम का अंतर नहीं है। देश में 15.5 करोड़ किसानों पर 21 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के हवाले से संसद में रखे गए आंकड़ों से जाहिर है कि सबसे ज्यादा कर्जदार किसान तमिलनाडु में हैं, पंजाब में किसानों ने सबसे अधिक 2,95,562 लाख रुपये कर्ज ले रखा है। इसमें गुजरात दूसरे और हरियाणा तीसरे स्थान पर है तो उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 1,13,287 लाख रुपये है। 1,50,546 लाख रुपये के कृषि कर्ज के साथ उत्तराखंड उत्तर प्रदेश से आगे है। ये आंकड़े सार्वजनिक होने के बीच चंडीगढ़ और लखनऊ में विधानसभा सत्र शुरू होने से ठीक पहले पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने तीन दिन पड़ाव में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की वैधानिक गारंटी देने, किसान आंदोलन में मारे गए किसानों के एक परिजन को नौकरी और परिवार को मुआवजे और गन्ना मूल्य घोषित करने जैसी दर्जनों मांगें उठाई हैं।
पंजाब में गन्ने के रेट बढ़ाने की मांग को लेकर जालंधर में प्रदर्शन से 182 ट्रेनें प्रभावित होने पर किसानों पर मुकदमा दर्ज किया गया है। किसानों ने पराली जलाने वाले पर दर्ज मुकदमे भी हटाने की मांग जोड़ी है। इस संदर्भ में 21 नवंबर को प्रदूषण पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ का कथन महत्वपूर्ण है। पीठ ने पंजाब और दिल्ली सरकार से साफ कहा कि प्रदूषण के लिए किसानों को खलनायक न बनाया जाए। हालांकि यह भी कहा कि पराली जलाने वाले किसानों पर कानूनी कार्रवाई ही नहीं हो, उन्हें एमएसपी के लाभ से भी वंचित कर दिया जाए। फिलहाल,पंजाब में गन्ने के लिए 380 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान जा रहा है। पड़ोसी हरियाणा ने इस साल गन्ने की दर 386 रुपये प्रति क्विंटल घोषित की है। पहले यह 372 रुपये प्रति क्विंटल थी। यही नहीं, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए अगले साल इसे 400 रुपये क्विंटल करने का वादा कर दिया है। इससे पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की मुश्किल बढ़ गई है।
किसानों के तेवर के हिसाब से तीनों राज्य महत्वपूर्ण हैं। पंजाब की 33, हरियाणा की 17 और यूपी की 25 किसान जत्थेबंदियां पड़ाव में शामिल हुईं। इन्हीं जत्थेबंदियों ने 2020 में संसद में पारित तीन कृषि कानूनों की आड़ में की जाने वाली मनचाही घेराबंदी को समय हते समझ लिया था। इसके विरोध में 9 अगस्त 2020 को स्थानीय स्तर पर आंदोलन शुरू किया था। नवंबर के आखिरी सप्ताह में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों ने ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान कर दिया। इसके बाद तो सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर हर किसी की जुबान पर आ गए थे। 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुनानक जयंती पर राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कानून वापस लेने के साथ ही एमएसपी की गारंटी देने के लिए नीति और नियम बनाने की बात कही थी। संयोग कहें या और कुछ दो साल बाद एमएसपी के लिए ही दर्जनों किसान संगठन प्रकाश पर्व पर अपने घरों से दूर पड़ाव डाले हुए थे। संसद में तीनों कृषि कानून रद्द किए जाने पर 378 दिन चला आंदोलन 11 दिसंबर 2021 को खत्म हुआ था। बावजूद इसके एमएसपी बड़ा मुद्दा बना हुआ है।

अभी 23 फसलों पर ही एमएसपी
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) सिफारिशों पर केंद्र सरकार अभी 23 फसलों पर ही एमएसपी दे रही है। किसान संगठन चाहते हैं कि हर फसल का एमएसपी तय किया जाए ताकि किसान को पारिवारिक श्रम के साथ-साथ फसल के लिए किए गए बीज, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई आदि पर खर्च किए गए पैसे से ज्यादा आय हो सके। 1966-67 में पहली बार कनक और जीरी का एमएसपी घोषित किया गया था। उसी समय देश में हरित क्रांति की शुरुआत हुई थी। 2014 और 2015 में लगातार दो बार सूखे के कारण किसानों को सबसे अधिक नुकसान हुआ। इसके बाद किसानों पर कर्ज और कस गया। एनसीआरबी के अनुसार इसी कारण 2014 और 2020 के बीच सबसे ज्यादा किसानों ने खुदकुशी की। 2014 में 5,600 किसानों ने आत्महत्या की थी तो 2020 में यह संख्या 5,500 थी। देश की जीडीपीमें कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 14 फीसदी से ज्यादा है। नाबार्ड की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 10.07 करोड़ परिवार खेती पर निर्भर हैं। यह कुल परिवारों का 48 फीसदी है। 2016-17 के आंकड़ों के अनुसार कृषि आधारित परिवारों में उत्तर प्रदेश में यह औसत छह, पंजाब में 5.2 और हरियाणा में 5.3 है।

किसानों को लेकर सरकारों की संवेदनशीलता सवालों में
केंद्र और राज्य सरकारों की किसानों के प्रति संवेदनशीलता सवालों में है। 2021 में आरटीआई से खुलासा हुआ था कि एक अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2021 तक नरेंद्र मोदी सरकार ने 11 लाख करोड़ से अधिक के कर्ज माफ किए थे। इनमें 5.55 लाख करोड़ रुपये केवल 15 लोगों का था। अगस्त 2023 में संसद में बताया गया कि 2014-15 के बाद के नौ वित्तीय वर्षों में केंद्र सरकार ने 14.56 लाख करोड़ रुपये के ऋण माफ किए हैं। इनमें बड़े उद्योगपतियों के लिए बट्टेखाते में डाले गए कर्ज की राशि 7.41 लाख करोड़ रुपये थी। इससे पहले 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह की सरकार ने 2.22 लाख करोड़ से अधिक के ही कर्ज माफ किए थे। राज्य लोकलुभावन घोषणाएं पूरी करने के लिए खर्च बढ़ने पर कर्ज लेते हैं। बाद में उनकी आय का बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में खर्च हो जाता है। तथ्य यह भी कि इस राशि में किसानों को सुविधाओं पर किया जाने वाला खर्च बहुत कम है। पंजाब ने अपनी जीडीपी का 53.3 प्रतिशत कर्ज ले रखा है। रिजर्व बैंक के अनुसार किसी भी राज्य का कर्ज उसकी जीडीपी के 30 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।

एमएसपी न मिलने से 2000 से 2017 तक 45 लाख करोड़ का नुकसान
आर्थिक सहयोग विकास संगठन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट बताती है कि 2000 से 2017 के बीच किसानों को फसल का उचित मूल्य न मिल पाने से 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। हर राज्य के लिए अलग एमएसपी तय करने की जरूरत है। इसी साल जून की एक रिपार्ट से पता चलता है कि पंजाब में जीरी की लागत प्रति क्विंटल 864 रुपये है, जबकि महाराष्ट्र में 2,389। ऐसे में 2,183 रुपये की एमएसपी किसी भी राज्य के लिए उचित नहीं है। उत्तर प्रदेश में मक्का की लागत 1,582 रुपये प्रति क्विंटल आती है, वहीं राजस्थान में यह 2,048 रुपये हो जाती है। इसी तरह यूपी में कनक की लागत 1,129 रुपये पड़ती है तो पंजाब में यह 786 रुपये और कर्नाटक में 1,898 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच जाती है। एमएसपी की वर्तमान व्यवस्था में खामियां खोज कर इसे अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए गठित 26 सदस्यीय समिति 16 महीने बाद भी बैठकें ही कर रही है।

तीन राज्यों से शुरू 2020-21 का किसान आंदोलन दुनिया के इतिहास का हिस्सा जरूर बन गया है लेकिन किसानों की बदहाली का किस्सा नहीं बदला है। अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इन्हीं राज्यों के किसान एक बार फिर आंदोलन का मन बना रहे हैं। ऐसे में जब तक राज्य और केंद्र की सरकारें अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में संजीदा नहीं होंगी, किसानों के सम्मान और स्वाभिमान का संकट समाप्त नहीं होगा।