हरियाणाः जूझते जुझारू लोग – 21
रामनाथ धीमानः हमेशा अन्याय के विरोध में खड़ा होने वाला नेता
सत्यपाल सिवाच
कर्मचारी संगठनों में वैसे तो एक से एक बेहतरीन नेता हुए, लेकिन मैंने एक ऐसे व्यक्ति को भी देखा जो हमेशा अन्याय के विरोध में खड़ा होता था और सिर्फ विरोध ही नहीं करता था बल्कि उसके लिए लड़ भी जाता था। यही नहीं जो बात गलत लगती उसे गलत कहने के लिए वह बेबाकी से अपनी बात रखते थे।
जी हां, मैं रामनाथ धीमान की बात कर रहा हूं। रामनाथ धीमान से मेरी मुलाकात सन् 1981 में हुई थी जब वे चण्डीगढ़ में आमरण अनशन पर डटे थे। यह आन्दोलन “अस्थायी एवं बेरोजगार अध्यापक संघ” के बैनर तले किया जा रहा था। यह संगठन बनाने वाले चंद जागरूक और लड़ाका शिक्षकों में रामनाथ धीमान भी शामिल थे। मैं लगभग साल भर बाद इनसे मिला था।
वे एक ऐसे योद्धा हैं जिनके तेवर 73 वर्ष की आयु में भी वैसे ही हैं जैसे युवावस्था में थे। न्याय के लिए संघर्ष, गलत बात का बेबाक ढंग से विरोध – यह उनके व्यक्तित्व के साथ गुंथा हुआ है। भय से जैसे वे परिचित ही नहीं हैं। लड़ाई में उतरते हैं तो खुद को झोंक देते हैं।
रामनाथ धीमान का जन्म 2 मई 1952 को नारायणगढ़ जिला अम्बाला में हुआ। शिक्षा पूरी करने के बाद वे 3 फरवरी 1978 को अस्थायी आधार पर प्राथमिक शिक्षक नियुक्त हुए। लगातार संघर्षों के परिणामस्वरूप 16 सितंबर 1982 से सन् 1984 में नियमित हुए।
उन्होंने सेवा में आने के थोड़े समय बाद ही अस्थायी शिक्षकों के आन्दोलन में शिरकत करनी शुरू कर दी थी। वे 1 जून 1981 से 13 जून 1981 तक आमरण अनशन पर रहे। बाद में हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ के साथ जुड़ गए। जिसमें वे खण्ड, जिला व राज्य स्तर पर पदाधिकारी रहे। वे वरिष्ठ उपाध्यक्ष और संगठन सचिव जैसे अहम् पदों पर रहे। सर्वकर्मचारी संघ में वे राज्य स्तर के पदाधिकारी बने। सेवानिवृत्त होने पर रिटायर्ड कर्मचारी संघ में निरंतर सक्रिय हैं।
जब पंजाब में आतंकवाद फैला हुआ था उस समय हमें नारायणगढ़ इलाके में पुलिस की ब्लैकमेलिंग के खिलाफ लड़ना पड़ा था। हमारे संगठन के एक साथी को पुलिस ने आतंकवादियों से संपर्क होने के नाम पर तंग किया था। मुझे अच्छी तरह याद है कि उस लड़ाई में धीमान जी, सतीश सेठी जी, बलदेव सिंह आदि दर्जनों कार्यकर्ताओं के अलावा कुरुक्षेत्र से ओमसिंह और यमुनानगर से कुलबीर सिंह राठी ने इंस्पेक्टर की हेकड़ी निकालने में साहसिक भूमिका निभाई थी। 1987 की हड़ताल में उन्हें चार्जशीट किया गया था। सन् 1993 की हड़ताल में सप्ताह तक जेल में रहे और बर्खास्त कर दिए गए। 31 मई 2010 को वे मुख्य शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए।
धीमान जी जीवनसंगिनी श्रीमती लीला देवी भी शिक्षक रही हैं। एक बेटा व एक बेटी हैं। दोनों विवाहित हैं। सौजन्यः ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच
