युद्ध किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं होता। और जब कई वर्षों तक दो राष्ट्र लड़ते रहें तो तय है कि नुकसान दोनों देशों का ही हो रहा। रूस हर नजरिए से यूक्रेन से सबल है लेकिन फिर भी उसे विजय हासिल नहीं हुई है। इस युद्ध को लेकर मुनेश त्यागी ने एक नजरिया रखा है। दूसरी राय का भी स्वागत है। इस पर बहस होनी चाहिए। संपादक
रूस – यूक्रेन युद्ध के जिम्मेदार हैं दुनिया के साम्राज्यवादी युद्धोन्मादी
मुनेश त्यागी
पिछले तीन साल से ज्यादा समय से चल रहे यूक्रेन रूस युद्ध के परिणाम अब दुनिया के सामने उजागर हो गए हैं। पहले कार्पोरेट जगत की पश्चिमी मीडिया द्वारा दुनिया को गुमराह करके बताया गया था कि रूस ने जानबूझ कर यूक्रेन पर हमला किया है और दुनिया के पश्चिमी देशों नाटो और अमेरिका का इस युद्ध से कुछ लेना देना नहीं है। पहले दुनिया के अधिकांश लोगों ने इस बात पर विश्वास कर लिया था, मगर दुनिया भर के समाजवादी और वामपंथी सोच के अधिकांश लोगों ने इस बात पर विश्वास नहीं किया था।
युद्ध की भयानक स्थिति को देखकर अब सारी दुनिया के अधिकांश लोगों को सही हालात का पता चल गया है। अब दुनिया देख रही है कि पश्चिमी देशों जिसमें अमेरिका, यूरोपीयन यूनियन और मुख्य रूप से जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस और पोलैंड मुख्य रूप से शामिल हैं, का इस युद्ध को आगे बढ़ाने में प्रमुख हाथ रहा है। यूक्रेन द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे अधिकांश हथियार, हवाई जहाज, हथगोले और तमाम युद्ध सामग्री इन पश्चिमी देशों द्वारा ही यूक्रेन की मोहिया कराई गई है। इन हथियारों के बल पर ही यूक्रेन पिछले कुछ समय तक इस युद्ध में ठहरा हुआ था, मगर पिछले सात आठ दिनों से स्थिति पलट गई है और अब रूस की सेना अपने देश को बचाने के लिए, यूक्रेन के हथियार ठिकानों पर भीषण हमले कर रही है।
यह बात भी स्पष्ट होकर दुनिया के सामने आ गई है कि नाटो के अधिकांश छोटे देश इस युद्ध के पक्ष में नहीं है, मगर अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड और पोलैंड का शासक वर्ग और हथियार बनाने वाले युद्धोन्मादी, किसी भी तरह से यूक्रेन की इस लड़ाई को जारी रखना चाहते हैं और वे यूक्रेन को लगातार, प्रशिक्षित सैनिक, युद्ध सामग्री और गुप्त सूचनाएं उपलब्ध करा रहे हैं। इन्हीं सूचनाओं के बल पर यूक्रेन दस दिन पहले रूस के हथियार ठिकानों पर हमला करने में सफल हो गया था।
अन्य कोई उपाय न पाकर रूस की सरकार और सेना को अपने देश की संप्रभुता और अपनी जनता को बचाने के लिए, यूक्रेन पर जोरदार हमले करने पड़े, ताकि रूस की जनता और अपने देश को काफी हद तक सुरक्षित किया जा सके। अब रूस नहीं चाहता कि यूक्रेन भविष्य में युद्ध करने की स्थिति में रहे और वह अंत में हारकर युद्ध विराम का समझौता कर ले। इससे पहले भी रुसी राष्ट्रपति पुतिन द्वारा युद्ध विराम की काफी कोशिशें की गईं। कई देशों में युद्ध विराम वार्ताएं भी की गईं, मगर उसका कोई हल नहीं निकला और हद तो तब पार हो गई, जब तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में वार्ता हो रही थी और यूक्रेन ने वार्ता के दौरान ही रूस की हथियार डिपो पर हमले कर दिए। ऐसे में युद्ध विराम वार्ता का क्या मतलब रह गया था? अब तो रूस के पास अपने देश और जनता को बचाने के लिए, यूक्रेन पर जोरदार भयंकर हमले करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था।
इस युद्ध में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की पूरी तरह से पोल खुल गई है। वे सिर्फ नाटो देशों और अमेरिका का मोहरा बनकर रह गए हैं। यूक्रेन की वर्तमान दर्दनाक स्थिति के लिए, वे खुद ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। कानूनी रूप से अब वे यूक्रेन के राष्ट्रपति भी नहीं रह गए हैं। वे जानबूझ कर राष्ट्रपति के चुनाव को टाल रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि जनता उन्हें राष्ट्रपति के चुनाव में फिर से चुनने नहीं जा रही है और वे भविष्य में यूक्रेन के राष्ट्रपति नहीं बन पाएंगे। अब उनमें किसी प्रकार की नैतिक मर्यादा नही बची है और उनमें मानवीय मूल्यों का भयंकर अभाव दिखाई दे रहा है। अभी पिछले दिनों आपसी वार्ता के बाद 6000 मृत यूक्रेनी सैनिकों को रूस से यूक्रेन भेजा जाना था जिन्हें यूक्रेन के राष्ट्रपति ने यूक्रेन में लाने से मना कर दिया है क्योंकि उन्हें यूक्रेन में लाने के बाद अरबों रुपए मुआवजा देना पड़ता, अतः इन मृत सैनिकों को यूक्रेन में लाने की अनुमति नहीं दी गई। इससे ज्यादा गैर इंसानियत और क्या हो सकती है?
यहीं पर प्रमुख सवाल उठता है कि आखिर अमेरिका और नाटो के लुटेरे युद्धोन्मादी देश, रूस पर क्यों हमला करना चाहते हैं? वे रूस के साथ शांति से क्यों नहीं रह सकते, जबकि रूस का कभी भी इरादा नहीं रहा कि वह यूक्रेन या किसी यूरोपियन देश पर हमला करे। इसका सीधा-सीधा कारण है कि रूस धरती के क्षेत्रफल का छठा हिस्सा है, दुनिया का सबसे बड़ा देश है। वहां पर बहुमूल्य खनिज पदार्थ, पानी, बिजली, सोना, गैस, पेट्रोल, डीजल बहुत बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। आज रूस दुनिया का सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक और निर्यातक देश है। इसी कारण दुनिया के समस्त साम्राज्यवादी लुटेरे, रूस पर कब्जा करना चाहते हैं, ताकि वहां के प्राकृतिक संसाधनों को लूटा जा सके और उसके खंड-खंड करके, उसके टुकड़े करके, उसे गुलाम बनाया जा सके।
इसी के साथ-साथ क्योंकि रूस ने साम्राज्यवादी अमेरिका और नाटो के वैश्विक प्रभुत्व को खत्म करने के लिए कुछ शांतिप्रिय देशों का एक गठबंधन “ब्रिक्स” बनाया है जिसमें रूस, चीन, नॉर्थ कोरिया, वियतनाम, भारत, दक्षिणी अफ्रीका, ब्राजील क्यूबा और बहुत सारे देश शामिल हो गए हैं। उन्होंने पश्चिमी लुटेरे साम्राज्यवादियों की प्रभुत्वकारी नीतियों को नकार दिया है और बहुत सारे देशों को उनके खिलाफ एकजुट कर लिया है। इससे भी अमेरिका और नाटो के देशों में बेचैनी पैदा हो गई है, इसीलिए अब बहाने बनाकर, रूस पर हमले किए जा रहे हैं ताकि ब्रिक्स को तोड़ा जा सकें और उसके बाद चीन को चारों तरफ से घेर कर समाजवादी व्यवस्था को खत्म किया जा सके।
अब यूक्रेन युद्ध के पीछे का सच देखने लायक है जिसमें अब जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, पोलैंड और कई देश मिलकर खुले तौर पर यूक्रेन को सैनिक मदद कर रहे हैं, हथियार दे रहे हैं, हवाई जहाज और गुप्त सूचनाएं उपलब्ध करा रहे हैं। अब तो ये खुलकर रूस के सामने आ गए हैं और रूस के खिलाफ मोर्चा बनाने की स्थिति में पहुंच गए हैं। अगले कुछ दिनों में किसी भी क्षण, सीधे-सीधे नाटो के ये देश, रूस पर हमला कर सकते हैं जिससे इस युद्ध की स्थिति और भयंकर हो जाएगी और यह तीसरे विश्व युद्ध शुरू होने का कारण बन सकती है।
इस विवाद की सच्चाई को जानना बहुत जरूरी है। अमेरिका या नाटो कोई भी देश इस युद्ध में कोई शांति समझौता नहीं होने देना चाहते। 25 वर्षों से रूस नाटो से मांग कर रहा है कि नाटो पूर्व की तरफ ना बढ़े, मगर वह नहीं माना और उसने यूएसएसआर के यूरोप के पूर्वी देश अपने में मिला लिए। जब 1991 में यूएसएसआर खत्म हो गया तो फिर नाटो की क्या जरूरत रह गई थी? पश्चिमी साम्राज्यवादी, नवउपनिवेशवादी और नवफासिस्ट सोच के देश यूएसएसआर यानी कम्युनिस्ट रूस को एक खतरा मानते थे। क्या वह खतरा अब मौजूद है?
आज यह लड़ाई रूस और यूक्रेन के बीच नहीं, आज यह लड़ाई साम्राज्यवाद, नवउपनिवेशवाद और नवफासीवादियों और रूस के अस्तित्व के बीच की लड़ाई हो गई है। संक्षेप में आज यह लड़ाई साम्राज्यवाद और रूस के अस्तित्व के बीच की लड़ाई है। रूस ने कभी भी यूक्रेन या यूरोप के किसी भी देश को कब्जाने की बात नहीं कही। वह तो यूक्रेन की जनता के 3/4 रूसी बोलने वालों को यूक्रेनी फासीवादियों से बचाने के लिए मजबूर है। आज नाटो और अमेरिका दुनिया की शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गए हैं। रूस और यूक्रेन अप्रैल 2022 में आपसी शांति के लिए तैयार हो गए थे, मगर शांति के दुश्मन इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने किसी भी शांति की मनाही कर दी। यूरोपीय यूनियन के अधिकांश देश आज भी शांति और युद्ध समाप्ति के लिए तैयार नहीं है। अब यह युद्ध यूक्रेन और रूस के बीच नहीं रह गया है। अब यह लड़ाई साम्राज्यवाद, नव उपनिवेशवाद और नव फासीवाद के बीच वैश्विक युद्ध में बदल गयी है। इसीलिए चीन, उत्तरी कोरिया, वियतनाम, लाओस, क्यूबा, वेनेजुएला, निकारागुआ, ईरान और कई अफ्रीकी देश, रूस के समर्थन में खुलकर खड़े हुए हैं।
इस प्रकार हम देख रहे हैं कि दुनिया के साम्राज्यवादी युद्धोन्मादी देश, दुनिया में शांति बनाए रखना नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि दुनिया में कहीं ना कहीं युद्ध होते रहें, ताकि उनके हथियार बिकते रहें और दुनिया में उनका प्रभुत्व कायम रहे। पहले इसी प्रकार के युद्ध इराक, लीबिया, अफगानिस्तान और सीरिया में हो चुके हैं। अब यही काम इजरायल को हथियार देकर फिलिस्तीन का विनाश किया जा रहा है। यहां पर पचास हजार से ज्यादा बच्चों और महिलाओं की हत्या की जा चुकी है और अब यही काम यूक्रेन और रूस युद्ध में किया जा रहा है। यूक्रेन और रूस युद्ध के लिए सबसे ज्यादा नाटो और अमेरिका जिम्मेदार हैं। यह अलग बात है कि रुस अपनी मजबूत सामरिक स्थिति को अभी तक बेहतर बनाए हुए हैं और उसने नाटो और अमेरिका के वैश्विक प्रभुत्वकारी युद्धोन्मादी मनसूबों को पूरा नहीं होने दिया है। यह लेखक के अपने विचार हैं, इससे प्रतिबिम्ब मीडिया की सहमति जरूरी नहीं है।
लेखक मुनेश त्यागी