भारत में युवा और वृद्ध लोग मध्यम आयु वर्ग के लोगों की तुलना में अधिक ‘समृद्ध’
अमेरिका के हार्वर्ड और जर्मनी के ब्रेमेन विश्वविद्यालय सहित कई संस्थानों के सर्वे का नतीजा
नयी दिल्ली। भारत में युवा और वृद्ध लोग मध्यम आयु वर्ग के लोगों की तुलना में ज्यादा समृद्ध हैं। 22 देशों में दो लाख से ज्यादा लोगों पर किए गए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।
अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय और जर्मनी के ब्रेमेन विश्वविद्यालय सहित कई संस्थानों के शोधकर्ताओं द्वारा की गयी ‘ग्लोबल फ्लोरिशिंग स्टडी’ का उद्देश्य एक व्यक्ति और समुदाय के कल्याण को नियंत्रित करने वाले कारकों को समझना है।
समृद्धि को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें किसी व्यक्ति के जीवन के सभी पहलू उत्तम होते हैं।
अध्ययन के पहले चरण में छह महाद्वीपों में फैले 22 देशों के 202,898 लोगों से पूछे गये सवालों के जवाबों का विश्लेषण किया गया।
निष्कर्ष ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित किए गए। लेखकों के मुताबिक, “अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, स्वीडन और अमेरिका सहित कई देशों में उम्र के साथ समृद्धि में वृद्धि होती है लेकिन सभी में नहीं। शोधकर्ताओं के अनुसार भारत, मिस्र, केन्या और जापान में समृद्धि का चलन कुछ हद तक यू-आकार का है।”
यू-आकार से मतलब युवा और वृद्धों की तुलना में मध्यम आयु वर्ग का कम समृद्ध होना है।
पूछे गये प्रश्नों में लोगों से खुशी, स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति और रिश्तों के साथ-साथ जनसांख्यिकीय, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक कारकों और बचपन के अनुभव शामिल था।
दुनिया भर में पुरुषों और महिलाओं ने लगभग समान जवाब दिये हालांकि कुछ देशों में अधिक अंतर पाया गया। ब्राजील में पुरुषों ने महिलाओं की तुलना में अधिक समृद्ध होने की बात कही जबकि जापान में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक समृद्ध होने का दावा किया।
इसके अलावा अधिकांश देशों में, विवाहित लोगों ने अविवाहित लोगों की तुलना में अधिक समृद्ध होने की बात कही। भारत और तंजानिया में हालांकि विवाहित लोगों ने अविवाहित लोगों की तुलना में कम समृद्ध होने का दावा किया।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि नौकरीपेशा लोगों ने बेरोजगार लोगों की तुलना में अधिक समृद्ध होने की बात कही।
अध्ययन के मुताबिक, भारत, जापान, इजराइल और पोलैंड जैसे देशों में नौकरीपेशा लोगों की तुलना में स्वरोजगार, सेवानिवृत्त और छात्र खुद को अधिक संतुष्ट पाते हैं।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि दुनिया भर के युवा ‘पहले की तरह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं’।
उन्होंने बताया कि उम्र के साथ समृद्धि के चलन में देश-वार अंतर के बावजूद, समग्र वैश्विक चलन परेशान करने वाला है’।