हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-57
महीपाल चमरोड़ी- सदैव अग्रणी मोर्चे के नायक
सत्यपाल सिवाच
संभवतः 1983-84 की बात है। मैं लाडवा रामकुंडी बस स्टैंड पर अस्थायी एवं बेरोजगार अध्यापक संघ के पोस्टर चिपका रहा था। तभी महीपाल जी मेरे पास आकर पढ़ने लगे। बातों-बातों में परिचय हुआ तो पता चला कि वे भी शिक्षक हैं और चमरोड़ी गांव के रहने वाले हैं। उनकी पोस्टिंग पेहवा साइड में थी। वे सहज ही मेरे साथ लाडवा मंडी तक पोस्टर लगवाने के लिए तैयार हो गए। वह आकस्मिक मुलाकात दीर्घकालीन सांगठनिक और पारिवारिक मुलाकात साबित हुई।
महीपाल का जन्म 13.08.1958 में कुरुक्षेत्र जिले के खण्ड रादौर के चमरोड़ी गांव में श्री इन्द्रराज और श्रीमती सरबती के यहाँ हुआ। वे दो भाई और चार बहनें हैं। वे बी.एससी. बी.एड. करके पहले अस्थायी रूप से विज्ञान अध्यापक नियुक्त हो गए। बाद में 24 अगस्त 1983 को सीधी भर्ती में उनका नियमित आधार पर चयन हो गया। उन्होंने बाद में एम.ए. अंग्रेजी भी उत्तीर्ण की। दिनांक 31 अगस्त 2016 को हेडमास्टर पद से सेवानिवृत्त हो गए।
जब अस्थायी एवं बेरोजगार अध्यापक संघ की इकाई गठित हुई तो वे कुरुक्षेत्र जिले के सहसचिव चुने गए। बाद में वे यमुनानगर के जिले के सचिव पद पर रहे। उन्हें अध्यापक संघ में राज्य स्तर पर भी प्रेस सचिव और संगठन सचिव चुना गया। वे सर्वकर्मचारी संघ में यमुनानगर जिले के सचिव और प्रधान पदों पर भी चुने जाते रहे। सेवानिवृत्ति के बाद वे अखिल भारतीय किसान सभा में सक्रिय हैं। वे जिला सचिव के साथ साथ राज्य में भी पदाधिकारी हैं। उनके गांव की इकाई किसानों के बीच काफी सक्रिय है।
अध्यापक संघ, सर्वकर्मचारी संघ और किसी भी अन्य जनवादी संगठन का आन्दोलन चला तो रादौर खण्ड और यमुनानगर जिले में और राज्य स्तर पर वे लगातार सक्रिय रहे। आन्दोलन के दौरान उन्हें कई बार पुलिस हिरासत में रखा गया। सन् 1987 से 2016 में सेवानिवृत्ति तक सभी हड़तालों और संघर्षों में अगली कतारों में रहे। सन् 1992 में नांगल चौधरी से चण्डीगढ़ तक चले पैदल जत्थे में वे और बलजिंद्र सिंह बैनर थामे लाडवा से चण्डीगढ़ तक अग्रणी भूमिका में रहे। इस यात्रा का नेतृत्व ऋषिकांत शर्मा कर रहे थे। अलग अलग मौकों पर तीस दिन से अधिक जेलों में रहे। इनमें अम्बाला, बुड़ेल और पहलवान आन्दोलन में दिल्ली जेल भी शामिल हैं। सन् 1993 में उन्हें सेवा से बर्खास्त किया गया था। दिल्ली में चले महिला पहलवानों के आन्दोलन में भी उन्होंने सक्रिय रूप से सहयोग किया।
महीपाल बहुत शान्त और सहज ढंग से सक्रिय रहते हैं। वे सदैव अग्रणी मोर्चे के नायक हैं। वे सेवाकाल के प्रारंभिक वर्षों में ही वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हो गए थे। वे अपने विनम्र एवं सहयोगपूर्ण व्यवहार, तार्किक और ठोस बात के कारण कर्मचारियों व शिक्षकों में ही नहीं, बल्कि इलाके में ही सम्मानित व्यक्ति की तरह देखे जाते हैं।
उनकी पत्नी और छोटा भाई यशपाल भी जनवादी आन्दोलन में सक्रिय हैं। उनकी बेटी नेहा अपने घर दो बच्चों के साथ परिवार में रह रही है। बेटा निश्चय एमएससी एग्रीकल्चर के फाइनल में है। LPU फगवाड़ा में पढ़ रहा है। भरे-पूरे परिवार की चार पीढ़ियां एक साथ में बैठकर खाना खाती हैं। बहुत सुखी और लोकतांत्रिक परिवार कह सकते हैं। सौजन्य – ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक – सत्यपाल सिवाच
