मनजीत मानवी की ग़ज़ल
जब जब शाख पे कोयल बोले, हयात नई हो जाती है
थके थके से जीवन की, हर बात नई हो जाती है
सोए सोए जज़्बातों को, फिर यौवन मिल जाता है
दिन भी सच्चा लगता है, और रात नई हो जाती है
सावन में ज्यों बचपन का, कोई बिछड़ा साथी आन मिले
पतझड़ मे कुम्हलाई कोई, शाख हरी हो जाती है
भूले बिसरे सब गीतों की, दिल पे दस्तक सुनती है
बेशक बोल पुराने हों, इश्तियाक नई हो जाती है
रहे सलामत तेरी बोली, शजर और शाखाएँ भी
सुन के तेरे दर्द का अफ़्सूं , आस नई हो जाती है !!
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