पीड़ा और प्रतिरोध का दस्तावेज़ है ‘बंद दरवाज़े’की कविताएः  डॉ. अशोक भाटिया

पीड़ा और प्रतिरोध का दस्तावेज़ है ‘बंद दरवाज़े’की कविताएः  डॉ. अशोक भाटिया

कुरुक्षेत्र में जयपाल के कविता संग्रह पर समीक्षा गोष्ठी का आयोजन

कुरुक्षेत्र। डॉ. ओमप्रकाश ग्रेवाल अध्ययन संस्थान और जनवादी लेखक संघ, कुरुक्षेत्र इकाई की तरफ़ से संस्थान में एक समीक्षा गोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें हरियाणा के वरिष्ठ कवि जयपाल की काव्य-संग्रह ‘बंद दरवाज़े’ की कविताओं का पाठ किया गया और उन पर चर्चा की गई। गोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अशोक भाटिया ने शिरकत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार और आलोचक ओम सिंह अशफ़ाक और ओमप्रकाश करूणेश ने की।

कार्यक्रम की शुरुआत कवि व गीतकार बलदेव सिंह महरोक के गीतों से हुई। कार्यक्रम में आए सभी लेखकों ने ‘बंद दरवाज़े’ काव्य-संग्रह की कविताओं का पाठ किया। यूनिक पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित ‘बंद दरवाज़े’ काव्य-संग्रह दलित चिन्तन पर केन्द्रित है।

मुख्य वक्ता डॉ. अशोक भाटिया ने अपने वक्तव्य में कहा कि जयपाल का पहला संग्रह दरवाज़ों के बाहर बहुत सोच-समझकर कम शब्दों में सधे हुए ढंग से लिखा गया था और अब बंद दरवाज़े उससे आगे बढ़ी हुई रचनाएँ अपने में संजोए है। उन्होंने कहा दुनिया में घृणा सबसे बड़ी समस्या है और नफ़रत, भेदभाव, संकीर्णताएँ घृणा से पैदा हुई हैं। जातिवाद व्यवस्था में जड़ें जमा चुका है। इसके विरूद्ध लिखना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। जयपाल ने इस चुनौती को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि संग्रह की किसी भी कविता में कोई पूर्ण विराम नहीं है जो कि दलितों की पीड़ा और उत्पीड़न की निरन्तरता को दिखाता है। जयपाल की कविताओं का सौन्दर्य उनकी भीतर है। वे मानते हैं कि किसी बनावटी मुलम्मा चढ़ाने से कविता सुन्दर नहीं बनती। उनकी कविताओं का सौन्दर्यशास्त्र नया है। उनमें दृष्टिकोण की स्पष्टता है। कविताओं में कवि बहुत कुछ अनकहा छोड़ देता है जो कि पाठकों को सोचने को मजबूर करता है।

उन्होंने कहा कि जयपाल की कविताएँ पीड़ा और प्रतिरोध का दस्तावेज हैं। उन्होंने विड़म्बनाओं का इतिहास और मुखिया के नाम शोक-पत्र आदि कविताओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि कवि भयावह और विभत्स इतिहास से परहेज़ नहीं करता। कवि इतिहास को निरन्तरता में देखता है। कविता में इतिहास के सवाल उठाना सबसे महत्वपूर्ण और मुश्किल कार्य होता है। भाटिया ने कहा कि लिखना एक सामाजिक ज़िम्मेदारी है। लिखते हुए रचनाकार को जाति, धर्म से ऊपर उठना पड़ता है। जयपाल इसमें सफल रहे है।

अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए ओम सिंह अशफ़ाक और ओमप्रकाश करुणेश ने कहा कि जयपाल की कविताएँ उत्पीड़ित की प्रतिरोध की आवाज़ हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य समाधान नहीं देता, बेचैन और परेशान करता है, खलबली मचाता है और सवाल खड़े करता है।  जयपाल की कविताएँ मनुष्य को मनुष्य बनाती हैं।   संस्थान के कोषाध्यक्ष व कवि बलदेव सिंह महरोक ने सभी लेखकों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

इस मौक़े पर बृजेश कठिल, हरपाल ग़ाफ़िल, वी.बी अबरोल, रविन्द्र शिल्पी, अभिषेक, अरुण कैहरबा, नरेश दहिया, दीपक वोहरा, दीपक मासूम, विकास साल्याण, गौरव, अनुपम शर्मा, अंजू, यशोदा, योगेश शर्मा, विनोद, लोकेश, सुभाष, दिनेश, उदय, डॉ. एन.के. नागपाल और अन्य साहित्यकार व गणमान्य लोग मौजूद रहे।

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