ऋत्विक घटक का साक्षात्कारः भाग 5
‘तिताश’ फिल्म जीवन स्मृतियों के प्रति एक श्रद्धांजलि जैसी है
मनुष्य का सांस्कृतिक मन नष्ट हो गया है
ऋत्विक घटक
फिल्म का नाम है ‘जुक्ति, तक्को ओ गप्पो’, अगर कहानी न हो तो लोगों को फिल्म अच्छी नहीं लगती है, इसीलिए इसमें एक गप्प दे रहा हूं, असल में यह है युक्ति और तर्क, यह पूरी तरह राजनीतिक फिल्म है। युक्ति, तर्क के बाद सिद्धांत का जो प्रश्न है वह सिद्धांत कौन है? उसे दर्शकों के ऊपर छोड़ दिया है या नहीं, इसे आप लोग देखेंगे, मैं इन सब बातों के बीच में नहीं हूं। मुख्य मुद्दा यह है कि राजनीतिक, आर्थिक पृष्ठभूमि उसे समय जैसी थी, वह जिस प्रकार शहर के व्यक्ति को आघात पहुंचा रही थी। इस फिल्म में सिर्फ शहर का ही मनुष्य नहीं है, मैं इसमें निर्माण बांग्ला में भी गया हूं, यह सब मैंने अपनी अनभिज्ञता से देखा है। इस दृष्टि से इस फिल्म को कुछ व्यक्तिगत तथा आत्मचरित मूलक कहा जा सकता है। फिर भी आत्मकथात्मक जिस तरह की फिल्मों को कहा जाता है, उस तरह की यह फिल्म नहीं है। जो देखा, जो समझ में आया और जो अनुभव से प्राप्त किया है, उसे कहने की चेष्टा मैंने की है । पहले फिल्म चलने दीजिए फिर तर्क विचार करना अच्छा रहेगा।
‘तिताश’ फिल्म की शूटिंग बहुत पहले शुरू हो गई थी किंतु बात पक्की हुई पहले ‘जुक्ति, तक्को’ की। सरकारी मामला था, फिल्म एफएफसी के रूपयों से बननी थी, इसलिए इसे प्राप्त करने में दो-चार माह लग गए, उसी दरमियान ‘तिताश’ के लोग आ गए मैंने रुपए लेकर उस फिल्म का काम शुरू कर दिया।
इन दोनों बंगालों को मिलाकर बांग्लादेश के बारे में मेरी जो धारणा थी, यह 30 वर्ष पुरानी है, इसे मैं नहीं जानता था। मेरे कैशोर्य और यौवन का पहला दौर पूर्वी बंगाल में ही बीता है। यहां बिताया जीवन, उसकी स्मृतियां, वही नॉस्टेल्जिया, जन्मभूमि प्रेम मुझे उन्मत्त की तरह खींच कर ले गया तिताश को लेकर फिल्म बनाने की ओर। ‘तिताश’ उपन्यास में चित्रित समय 40- 50 वर्ष पुराना है, उसके पहले का जो मेरा जाना पहचाना है, भीषण रूप से परिचित, तिताश उपन्यास की सारी बातें छोड़ भी दी जाएं, उसके महत्त्व को नजरअंदाज कर भी दिया जाए तो भी यह मामला मुझे तीव्र रूप से अपनी ओर खींचता है।
फलस्वरूप ‘तिताश’ फिल्म एक श्रद्धांजलि जैसी है। उन जीवन स्मृतियों के प्रति जिन्हें मैं पीछे छोड़ आया हूं। इस फिल्म में किसी तरह की राजनीतिक किच-किच नहीं है, मेरी अपनी धारणा है। यह उपन्यास महाकाव्यात्मक है, इस फिल्म में मैंने उपन्यास के इसी शिल्प को फिल्माने का प्रयास किया है। मेरे बचपन के दिनों की बहुत सी घटनाएं तिताश के साथ जुड़ी हुई हैं। बहुत कुछ मैंने अपनी आंखों से देखा है, यह जो मैंने कहा है यह 30 वर्ष के बीच में व्यवधान है, एकदम खाली, रिक्त, यह तो ऐसा है जैसे मैं 30 वर्ष पहले के पूर्वी बंगाल में लौट गया हूं।
21 फरवरी को मुझे, सत्यजीत बाबू और कुछ अन्य लोगों को राज्य अतिथि के रूप में ढाका ले जाया गया था। हवाई जहाज़ से हम लोग जा रहे थे। मेरे पास सत्यजीत बाबू बैठे हुए थे, जब हम लोग पद्मा नदी पार कर रहे थे, मैं फफक- फफक कर बुरी तरह रो पड़ा। उस बांग्ला देश को आप लोगों ने नहीं देखा है, वही प्रचुर समृद्धि और सौंदर्य से भरा जीवन, वह सुंदर जीवन, मैं मानो उस जीवन पथ पर चला जा रहा हूं। इस जीवन के बीच में… आज भी मानो सब कुछ वैसा का वैसा ही है, घड़ी के कांटे मानो स्पीच में चल ही न हो। इसी भोलेपन से भरी मूर्खता, इसी से शिशु सुलभ मन को लेकर तिताश फिल्म है।
फिल्म बनाते-बनाते यह महसूस किया कि उस अतीत का अब वहां छींटा भी नहीं रहा है, रह भी नहीं सकता था। इतिहास भयंकर रूप से निष्ठुर होता है। पहले का अब कुछ भी नहीं है। सब विलीन हो गया है। इस फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने से लेकर आधी शूटिंग तक मैं मनुष्य के संपर्क में प्रायः नहीं आया। ढाका में तो मैं रहता नहीं था। यहां से ढाका को छूकर लौट जाता था, ब्राह्मण वाडिया नहीं तो कुमिल्ला, नहीं तो अस्थिघाट, पावना, नारायणगंज, वैद्यों का बाजार इन्हीं सब स्थानों पर।
क्योंकि फिल्म तो गांव गंज और नदी को लेकर थी इसलिए समय-समय पर गांव में रहना पड़ा, ढाका में एक दिन आराम कर चला जाता था, किसी से भेंट नहीं करता था, किसी से घुलता- मिलता नहीं था, उन लोगों की क्या राजनीति चल रही है अथवा नहीं चल रही है उसे और ताक कर भी नहीं देखता था, यहां तक कि अखबार पढ़ना भी सदा नहीं होता था इसलिए आधी फिल्म बनाने तक, आजकल बांग्लादेश का जो चेहरा है उसे पूरी तरह कटा हुआ था, यानी अपने आपको सबसे काटकर रखा हुआ था । उसके बाद ढाका जाकर कई दिन रहा, फिल्म को सेट करने के लिए। तब धीरे-धीरे यह देखा की सारी चीज़ें समाप्त हो चुकी हैं, अब वे किसी दिन लौटकर नहीं आएंगी, मेरे लिए यह अत्यंत दुखद चीज़ थी, किंतु दुख करने से क्या होगा, बेटा मर जाने पर लोग शोक करते हैं, दुख मनाते हैं किंतु यह तो न टालने वाली घटना होती है। क्रमशः