महेश कटारे का गीत- किसान महिला का राखी गीत

किसान महिला का राखी गीत

 महेश कटारे सुगम

 

बहिना ने राखी के कच्चे धागे भेज दिए

पाती में लिख दिया की बीरन आ न पाऊंगी

 

गुड़िया का स्कूल ,

ललन की ज़िम्मेदारी है

सासू माँ को गठुआ

और दिल की बीमारी है

पीहर में इस बार मल्हारें गा न पाऊंगी …………….१

 

उर्दा बोये थे खेतों में

मौसम मार गया

खाद बीज जो भी डाला था

सब बेकार गया

सूखे मन सावन की खुशियां मना न पाऊंगी ……….२

 

गहने गिरवी रखे

दूसरा बीज नया लाये

तब जाकर खेतों में

फिर से बौनी कर पाए

नंगे हाथ ,गला सबको दिखला न पाऊंगी …………………३

 

मन से टूट चुके वे

रहना साथ ज़रूरी है

ढाढस उन्हें बँधाना

खुश रखना मज़बूरी है

उन्हें अकेला छोड़ फर्ज मैं निभा न पाऊंगी …………….४

 

भेंट क्वारें माँ को

भौजी को दुलार कहना

गुड़िया ,लल्लन को फूफा का

खूब प्यार कहना

बाकी बातें मैं चिठिया में बता न पाऊंगी ………………….५

गीत और फोटो बादल सरोज की फेसबुक वॉल से साभार