यात्रा वृत्तांत
हजारों सालों से वियतनाम में हैं शिव … कई हाथों वाले नर्तक शिव
संजय श्रीवास्तव
होई एन में सुबह 9 बजे टैक्सी आ चुकी थी. वियतनाम जितनी रेंटल टैक्सी और एप बेस्ड कैब चलती हैं. सब बहुत शानदार और अच्छी कंडीशन वाली होती हैं. नई और बेहतर. साफसुथरी. दो जगहों पर जब हमने कैब में कुछ छोटा मोटा सामान गलती से छोड़ा तो ड्राइवर वापस करने के लिए दौड़ा आया. हमें उस दिन तीन जगहों पर जाना था. करीब 200 किलोमीटर का सफर – गांवों से, सड़कों से, समुद्र और नदियों के बगल से, ऊपर ऊंची पहाड़ियों पर. ना कहीं कोई गंदगी, ना स्लम, ना कच्चे मकान, ना झोंपड़ पट्टी, ना ट्रैफिक की चिलप्पों, ना कुत्ते और ना आवारा पशु … साफ सुथरी सड़क.
ये मध्य वियतनाम का इलाका था. पहले वाटर कोकोनट ट्रिप में डोंगी की सवारी, फिर ऊंची पहाड़ी पर मारबेल माउंटेन एंड लेडी बुद्धा के दर्शन. आखिर पड़ाव में वो जगह जहां भगवान शिव अब भी बिराजते हैं एक नहीं कई शिव लिंगों के साथ- हजारों सालों बाद भी, चंपा हिंदू राजाओं के साम्राज्य उजड़ने के बाद भी.
उस दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी. आखिरी मंजिल थी माई सन यूनेस्को हैरिटेज. इससे ज्यादा इस जगह के बारे में और कुछ नहीं मालूम था. बस इतना कि ये कोई भव्य प्राचीन ऐतिहासिक परिसर है, जिसे यूनेस्को ने अपनी लिस्ट में रखा है. हमें क्या मालूम था कि वहां तो शिव विराजे हुए हैं. साथ गणेश, विष्णु, ब्रह्मा और हिंदू संस्कृति की अपार धरोहरें.
माई सन वियतनामी शब्द है. “माई” मतलब सुंदर और “सन” का अर्थ है पर्वत. “माई सन” यानि “सुंदर पर्वत”, ना कि “मेरा बेटा”. वियतनाम में हर जगह के टिकट बहुत महंगे हैं. यहां का टिकट के दाम था डेढ़ लाख डांग. यानि तीन लोगों के लिए साढ़े चार लाख डांग. भारतीय मुद्रा के हिसाब से करीब दो हजार रुपए.
माई सन हैरिटेज में आधा रास्ता बस से तय होता है. चारों ओर खूबसूरत नेचर. पीछे पहाड़ियों का वलय. बीच से बहती हुई. पानी का बरसना जारी था. करीब 500 मीटर के बाद हमें खंडहरनुमा प्राचीन अवशेष नजर आने लगे. अंदाज नहीं था कि ये सारे अवशेष हिंदू संस्कृति और भगवान शिव से जुड़ते हैं. मैं अवशेषों के बीच घूम रहा था. ये काफी हद तक बनावट से दक्षिण भारतीय हिंदू मंदिरों जैसे लग रहे थे. वैसा ही स्थापत्य, दक्षिण भारत के मंदिरों सरीखे कंगूरे, स्तंभों की वैसी शिल्पकारी. वैसे ही प्रतीक. वैसी खंडित प्रतिमाएं.
तभी एक छोटे मंदिर प्रकोष्ठ से आवाज आई, वियतनामी गाइड यूरोपीय पर्यटकों को वहां मौजूद एक मूर्ति के बारे में डांसिंग शिवा विद वूमन डांसर्स जैसे टर्म का उल्लेख कर रहा था. मैने तुरंत पलटकर पूछ लिया, आर यू टेलिंग अबाउट लार्ड शिवा. जवाब में उसने सिर हिलाया. फिर तो सब कुछ मानो साफ हो गया कि ये सारे अवशेष हिंदू मंदिरों के ही हैं. पहले कहीं पढ़ भी रखा था कि वियतनाम में शुरुआती साम्राज्य हिंदू राजाओं का था.
इस परिसर में अब जगह जगह नजर आ रहे शिव लिंग, विष्णु और गणेश की खंडित मूर्तियां. जो बता रही थीं कि ये मंदिर परिसर किससे ताल्लुक रखता है. ये देखना रोमांचक था कि जिस वियतनाम में हम घूम रहे हैं, वो कभी भारतीय हिंदू राजाओं के साम्राज्य पर खड़ा हुआ है. वियतनाम का इतिहास बताता है कि वियतनाम में चौथी से 13 सदी तक हिंदू राजाओं ने राज किया. इसे चंपा साम्राज्य कहा जाता था.
चंपा साम्राज्य की स्थापना 192 ईस्वी के लगभग राजा भद्रवर्मन ने की थी. इन्हें चंपा राजा कहा जाता है. चंपा राजाओं ने भारतीय संस्कृति से गहरा प्रभाव ग्रहण किया. ये राजा खुद को भद्रवर्मन, हरिवर्मन, व विक्रमवर्मन जैसे संस्कृत नामों से पुकारते थे. संस्कृत यहां की भाषा थी. उन्होंने भारत के देवताओं, विशेषकर भगवान शिव, विष्णु और कृष्ण की पूजा को राज्यधर्म का रूप दिया.
माई सन के ज्यादातर मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं, जिन्हें भद्रेश्वर, अर्थात् “राजा का देवता,” कहा जाता था. यह परंपरा तमिलनाडु के दक्षिण भारतीय शैव मंदिरों और आंध्र प्रदेश की वास्तुकला से प्रेरित थी. मंदिरों में शिवलिंग, नंदी, और त्रिमूर्ति मूर्तियां मिलीं, जो ये जाहिर करती हैं कि वियतनाम में करीब दस सदी पहले तक हिंदू धर्म था और उसके धार्मिक रीतिरिवाज. पहाड़ों के बीच बसे माई सन के शिव मंदिरों को इस तरह बनाया गया था कि सुबह की पहली किरणें पूर्व की ओर खुले मंदिर द्वारों से होकर शिवलिंग पर पड़ें.
माई सन की खुदाई में मिली अनेक संस्कृत अभिलेख पट्टिकाएं ये बताती हैं कि चंपा राजाओं ने संस्कृत को धार्मिक और प्रशासनिक भाषा के रूप में अपनाया. इन अभिलेखों में हिंदू पूजा विधि, राजाओं की दानशीलता, और देवताओं के नामों का उल्लेख है – जैसे “महेश्वर”, “नारायण”, “लक्ष्मी”. 10वीं से 19वीं शताब्दी के बीच चंपा पर वियतनामी साम्राज्य देई वियत ने धीरे-धीरे नियंत्रण कर लिया, जिससे चंपा जातीय समूह और उनकी सांस्कृतिक पहचान हाशिये पर चली गई.
यूनेस्को ने 1999 में इसे हैरिटेज टैग दिया. इस जगह को कई युद्धों में भारी नुकसान हुआ. खासकर वियतनाम युद्ध (1955–1975) के दौरान अमेरिकी बमबारी से मंदिर परिसर के अंदर के कई मंदिर नष्ट हो गए. इस पूरे एरिया में अमेरिकी वायुसेना ने काफी बम गिराए थे, लिहाजा उन बम अवशेषों के निपटान का काम अब भी जारी है. भारत की आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने वियतनाम के साथ मिलकर यहां के कई मंदिर समूहों के संरक्षण का काम पूरा किया. आर्थिक सहायता भी दी.
इतिहास बताता है कि दक्षिण भारत से भारतीय राजाओं ने अपना साम्राज्य दक्षिण पूर्व एशिया में दूर दूर तक फैलाया. संयोग की बात है कि 14वीं सदी तक आते आते ज्यादातर देशों में हिंदू प्रभाव खत्म हुआ, उसकी जगह बौद्ध या मुस्लिम धर्म ने ले ली. थाईलैंड, कंबोडिया, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, श्रीलंका और मालदीव सभी की यही कहानी है. फेसबुक वॉल से साभार
लेखक- संजय श्रीवास्तव