हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-14
रघुबीर सिंह फौगाटः कर्मचारी यूनियन से लेकर समाज सेवा तक में निभाई जिम्मेदारी
सत्यपाल सिवाच
रघुबीर सिंह फौगाट का नाम लेते ही एक ऐसा व्यक्तित्व सामने आ जाता है जो हर मोर्चे पर जनता के हित में जूझता रहा। नौकरी करते समय कर्मचारी यूनियन में बढ़ चढ़कर भागीदारी, रिटायरमेंट के बाद ग्रामीण समाज को आगे लाने के लिए प्रयास। चाहे वह गांव की समस्याएं हों या बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल खोलने और चलाने का मामला, रघुबीर सिंह फौगाट ने हर मोर्चे को फतेह किया। उनकी लोकप्रियता को इससे समझा जा सकता है कि गांव का हर व्यक्ति उनको बाबूजी के संबोधन से पुकारता था।
रघुबीर सिंह फौगाट का जन्म गाँव रावलधी में एक किसान परिवार में 1934 में हुआ। इन्होंने 1951 में मैट्रिक पास की। गाँव रावलधी में बहुत पुराना मिडिल स्कूल था जहाँ आस पास के 9-10 गाँवों के बच्चे पढ़ने आते थे। मिडिल स्कूल के बाद हाई स्कूल दादरी में था। पैदल आना-जाना होता था तो उस जमाने में दसवीं तक पढ़ाई काफी मानी जाती थी। मैट्रिक करते ही रघुबीर सिंह की सिंचाई विभाग में क्लर्क की नौकरी लग गई। पहली पोस्टिंग पंजाब के पटियाला में हुई। हरियाणा बनने (1966) तक इनकी पोस्टिंग पंजाब में ही रही। उन दिनों यातायात का मुख्य साधन रेलगाड़ी ही था।
गांव में उन्हें लोग बाबू जी कहकर पुकारते थे। उस समय संयुक्त परिवार होते थे। बाबू जी के पिता जी चार भाइयों में सबसे छोटे थे और चारों भाइयों के परिवार एक ही घर में रहते थे। 30-35 परिवार जनों का भोजन एक ही चूल्हे पर बनता था तो स्वाभाविक था कि मेल-जोल से रहने की ट्रेनिंग बचपन से ही मिल जाती थी।
बाबू जी ने सामूहिक जीवन की ट्रैनिंग को अपने सर्विस काल में काफी बढ़ाया और परिणामस्वरूप कर्मचारियों की समस्याओं को हल करने में गहरी रुचि ली। परिणामस्वरूप कर्मचारी संगठन के सक्रिय व अग्रणी व्यक्ति बन गये। वे सिंचाई, जनस्वास्थ्य और बी.एंड आर. लिपिक वर्ग एसोसियशनस् की तालमेल कमेटी के अध्यक्ष बनाए गए थे। चौ. बंसीलाल के समय में कर्मचारी विरोधी नीतियों के विरोध में चंडीगढ़ से भिवानी तक मार्च निकाला गया। उस मार्च का नेतृत्व बाबू रघवीर सिंह ने सफलतापूर्वक किया। जब सर्वकर्मचारी संघ बना तो उन्हें एक्शन कमेटी का सदस्य बनाया गया था। अन्य विभागों के लिपिक वर्ग में भी उनका अच्छा प्रभाव था। 1987 में बाबू जी सुपरिटेंडेंट पद से रिटायर हुये।
सामाजिक कार्यो में रुचि कम नहीं हुई और गाँव की समस्याओं को हल करने में सक्रिय भागीदारी करते रहे। पंचायती आदमी थे। गांव-गुहांड में आपसी विवादों को आसानी हल करने में मदद करते। सन् 1987-92 तक उन्होंने भाई होशियार सिंह के समय सरपंच का खुद काम संभाला। गांव में पीने के पानी की लाइन बिछवाई; और मंदिर में मरम्मत व कमरों का निर्माण कराया। व्यक्तिगत जीवन बहुत ही सरल व सादा था, चाय तक नहीं पीते थे। गांव के बच्चों को अच्छे संस्कार मिले, इस योजना को लेकर गांव में 1989-90 में स्कूल की स्थापना की। बाबू जी की मृत्यु (मार्च-2003) तक स्कूल ठीक चलता रहा बाद में सफल नेतृत्व के अभाव में स्कूल का कार्य धीमा होता गया। वे गरीब बच्चों से फीस नहीं लेते थे। बच्चों की समस्याओं को समझने के लिए उनके घर पहुंच जाते।
बाबू रघुबीर सिंह एक सामाजिक व्यक्ति थे। गाँव में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जो उन्हें पसंद न करता हो किसी से बैर-भाव की बात हो बहुत दूर की स्थिति थी। मनुष्य जीवन की सफलता का सबसे बड़ा पैमाना है कि व्यक्ति में मानवता की मात्रा कितनी है। इस महत्वपूर्ण पैमाने पर बाबू जी खरे उतर रहे थे। इस प्रकार बाबू जी एक सफल इन्सान और अनुकरणीय कर्मचारी नेता थे। उनकी पाँच बेटियां हैं। उनमें दो पोस्ट ग्रेजुएट और तीन ग्रेजुएट हैं। ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता सदैव बनी रहेगी और बाबू जी जैसे व्यक्तियों को सदैव याद किया जायेगा। सौजन्य ओम सिंह अशफ़ाक
लेखक- सत्यपाल सिवाच