प्रभाकर माचवे ने कहा था – एम.एन. राय  भारतीय राजनीति के ’कैसेंड्रा’ थे!

एम एन राय

प्रभाकर माचवे ने कहा था- एम.एन. राय भारतीय राजनीति के ’कैसेंड्रा’ थे!

सुधीर विद्यार्थी

इन दिनों मैं एम.एन. राय की ओर से अपनी पत्नी एलिन के नाम जेल से लिखे पत्रों को पढ़ रहा हूं। इस बीच मुझे डॉ. प्रभाकर माचवे का ’दिनमान’ 20-26 अप्रैल, 1986 में प्रकाशित आलेख ’कहां गए वे लोग’ एकाएक याद आ गया जिसमें उन्होंने देहरादून स्थित राय के उपेक्षित आवास 13, मोहिनी रोड के लिए चिंता व्यक्त करते हुए उन्हें भारतीय राजनीति का ’कैसेंड्रा’ कहा था। माचवे जी ने एक बार अपने भाषण में बताया था कि कैसेंड्रा एक यूनानी देवी थी जो, जो कुछ कहती थी, सब सच निकलता था, पर उस पर कोई विश्वास नहीं करता था, जब वह कहती थी। राय का कहा और उनकी भविष्य दृष्टि भी कुछ ऐसी ही थी, जिस पर कोई उस समय भरोसा नहीं करता था, जब वे कहते या बोलते थे लेकिन उनके निष्कर्ष समय व्यतीत होने पर खरे उतरते थे।

प्रभाकर माचवे

सुधीर विद्यार्थी

हम जानते हैं कि राय का लेखन अंग्रेजी में है जिसका हिन्दी में बहुत कम अनुवाद हुआ है। यह भी कारण था कि हिन्दी भाषी प्रायः उनके राजनीतिक दर्शन और चिंतन से अपरिचित बने रहे। हिन्दी के साहित्यकारों में निरंकार देव सेवक, अज्ञेय और माचवे जी ही राय से प्रभावित थे। जस्टिस तारकुंडे तो राय के लिए काफी काम करते रहे पर उनका किया भी कतिपय बुद्धिजीवियों तक ही सीमित बना रहा। यह उनकी सीमाएं थीं। सेवक जी ने मुझसे स्वयं स्वीकार किया था कि राय के अंग्रेजी में लिखे को हिन्दी में लाए जाने की उनकी जिम्मेदारी थी जिसे वे पूरा नहीं कर पाए। राय के जन्मशताब्दी वर्ष (1986) में माचवे जी की चिंता थी कि देहरादून का ’इंडियन रेनेसांस इंस्टीट्यूट’ बचाया जाए और मोहिनी रोड स्थित उनके आवास का वह समृद्ध पुस्तकालय भी संरक्षित किया जाना चाहिए जहां विश्व क्रांति और दुनिया भर के इतिहास की बेजोड़ पुस्तकें रखी थीं। यद्यपि राय की बहुत-सी मूल्यवान पुस्तकें और महत्वपूर्ण कागज़-पत्र नेहरू लाइब्रेरी, तीन मूर्ति भवन जा चुके थे, फिर भी जो वहां शेष था वह नष्ट होने जा रहा था। माचवे जी को उस समय लगता था कि राय के साथी एक-एक कर चले गए, न शौकत उस्मानी रहे, न गोवर्धन पारीख, वी.बी. कर्णिक, न वाडिया न ए.बी. शाह, तर्कतीर्थ लक्ष्मणशास्त्री जोशी 85 के हैं। सन 61 में यहीं राय की पत्नी एलिन का भी निर्मम खून हुआ। तो अब वहां कौन आयेगा ?

1990 में मैंने देहरादून के राय भवन में जाकर वहां परिसर में बनीं राय और एलिन की समाधियां देखीं और वह पुस्तकालय भी जिसमें शांत भाव से बैठे अनेक छात्र और शोधकर्ता अध्ययन कर रहे थे। उस दिन राय के साथी और सहयोगी एस.एन. पुरी से मेरी भेंट नहीं हो सकी, पर बाद को उन्होंने मुझे पत्र लिखा था। राय कम्युनिज्म से हटकर रैडिकल ह्यूमनिज्म तक आए इसलिए वे आजीवन वाममार्गियों के निशाने पर रहे। गए तो वे कांग्रेस में भी थे, पर वहां टिक नहीं सके। उन्होंने बाद को अपनी पार्टी भी बनाई जिसने चुनाव में भी हिस्सेदारी की। सेवक जी एक बार उस दल से चुनाव लड़े थे और हारे।

राय देहरादून 1937 में आ गए थे। बीमार पड़े तो राजेन्द्र प्रसाद और नेहरू ने उन्हें आर्थिक सहायता दी। 1954 में उनकी मृत्यु हो गई। मुझे नहीं पता कि शताब्दी वर्ष में उन पर एकाधिक बनने वाले वृत्त-चित्रों का क्या हुआ। हां, डाक टिकट तो जारी हुआ था। माचवे जी बताते थे कि ’रीजन, रोमैंटिसिज्म एंड रिवोल्यूशन’ (दो खंड) तो लेखक-चिंतक राय का स्थायी स्मारक होगा, पर वह मेरे देखने में नहीं आया।

हिन्दी में विचार की दुनिया राय से प्रायः मुंह फेरे रही। वाग्देवी प्रकाशन से उनकी हिन्दी में दो अनुवादित पुस्तकें छपी थीं। विनोद शाही ने उन्हें याद करते हुए ’कथादेश’ में ’लेनिन, एम.एन. राय और हम’ शीर्षक से एक लेख भी लिखा, लेकिन उस सन्नाटे को तोड़ा नहीं जा सका। राय 1920 में लेनिन से हाथ मिलाने वाले पहले भारतीय थे। ताशकंद में उन्होंने ही कम्युनिस्ट पार्टी बनाई थी, जबकि भारत में 1925 में पहली कम्युनिस्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजक सत्यभक्त थे।

मेरी चिंता है कि देहरादून में राय के ऐतिहासिक आवास 13, मोहिनी रोड स्थित उस ’ह्यूमनिस्ट हाउस’ का क्या होगा, जो एक समय भारतीय राजनीति का जाना-माना पता होने के साथ ही अपने समय में बौद्धिक-विमर्श का बड़ा केंद्र था।

 

One thought on “प्रभाकर माचवे ने कहा था – एम.एन. राय  भारतीय राजनीति के ’कैसेंड्रा’ थे!

  1. एम एन राय की त्रासदी रही कि उनके नाम पर कोई वोट बैंक नहीं बना जैसे महात्मा गांधी,डाक्टर आंबेडकर,काफी हद तक शहीद भगत सिंह भी।
    अगर उनके नाम पर कोई वोट बैंक बनता तो वे भी गांधी,आंबेडकर,भगत सिंह की तरह जनता के बीच अमर होते।उनका लिखा साहित्य बेजोड़ है जो वोट बैंक के चलते अमर हो गए उनसे भी बड़ा , अंतर्राष्ट्रीय स्तर का।आज उनका लिखा लिखा भी धीरे धीरे न छपने से विलुप्त हो रहा है।बौद्धिक वर्ग,भले ही उनसे असहमत हो उन्हें आगे आगे एम एन राय के साहित्य,उनके भारत ही नहीं विश्व अन्य देशों में किए कार्यों,आजादी की लड़ाई में उनके योगदान आदि को संभालना चाहिए

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