विजेता दहिया गुल्फ़ाम की कविता ‘भेड़िया’

भेड़ / Sheep*

भेड़ किताबें नहीं पढ़ती 

वे कविता नहीं लिखती 

भेड़ भीड़ का हिस्सा है

वे एकांत में नहीं रहती 

The sheep don’t read books

They don’t write poetry

The sheep are part of the herd

They don’t live in solitude.

कला या विज्ञान में डूब जायें 

ऐसा उनमें दिमाग़ नहीं 

समाज को बदलने का सोचें 

ऐसी उनमें आग नहीं 

They don’t immerse themselves in art or science

Such wisdom is not in them

They don’t think of changing society, 

Such fire is not in them.

भेड़ चलती हैं एक ढर्रे पर 

वे ख़ुद से कुछ सोचती नहीं 

जीवन में हो ऊँचा मक़सद 

वे ऐसा कुछ खोजती नहीं 

The sheep walk on a fixed path

They have no ability to think themselves 

They have no higher purpose in life

They don’t discover anything.

पूरी ज़िंदगी है टाइमपास 

वे अनमनी सी फिरती हैं 

वे कभी कुछ रचती नहीं 

वे हर समय बस चरती हैं 

Their entire life is just a time-pass

They wander aimlessly

They never create anything 

They just graze all the time.

विजेता दहिया गुल्फ़ाम  लेखक, कवि, एक्टर और फिल्म मेकर हैं।

अनुवाद दीपक वोहरा