मिहाई एमिनेस्कु रोमानिया के प्रसिद्ध कवि, उपन्यासकार और पत्रकार थे, जिन्हें राष्ट्रीय कवि माना जाता है। उनका जन्म 1850 में हुआ था। उन्होंने प्रेम, प्रकृति और दर्शन पर आधारित काव्य रचना की।1889 में उनका निधन हुआ।- दीपक वोहरा
तुम क्यों नहीं आईं?
मिहाई एमिनेस्कु
देखो, अब तो पंछी उड़ गए हैं,
अखरोट के पत्ते झरने लगे हैं,
अंगूर की बेलें सुन्न हैं बर्फीली हवाओं से,
तुम क्यों नहीं आईं, तुम क्यों नहीं आईं?
आओ फिर से समा जाओ मेरी बाहों में,
ताकि मैं तुम्हें भरपूर निहार सकूँ,
अपना सिर प्यार से टिका सकूँ
तुम्हारे सीने पर, तुम्हारे सीने पर!
याद है तुम्हें वो दिन
जब हम घाटियों और वादियों में घूमते थे?
मैंने चूम लिया था तुम्हें प्यार से फूलों में
कितनी बार, कितनी ही बार?
इस दुनिया में और भी हसीनाएं हैं
जिनकी आँखें तारे सी चमकती हैं,
पर उनकी खूबसूरती जैसी भी हो,
वे तुम जैसी नहीं, तुम जैसी नहीं हैं!
क्योंकि तुम ही मेरी आत्मा में चमकती हो,
सितारों की रोशनी से भी नर्म,
उगते सूरज से भी रोशन,
मेरी महबूबा, मेरी जान!
अब पतझड़ को भी बहुत दिन हो गए हैं
पत्ते शाखों से झड़ गए हैं,
और खेत सुनसान हैं, पंछी मौन
तुम क्यों नहीं आईं, तुम क्यों नहीं आई?