मंजुल भारद्वाज की कविता- कभी सहेली कभी पहेली

कविता

कभी सहेली कभी पहेली

-मंजुल भारद्वाज

ज़िंदगी तुम मुझे हर रोज़

अजनबी की तरह मिलती हो

कभी सुलझी कभी उलझी

कभी मुलायम कभी सख्त

कभी खुशहाल कभी उदास

तुम्हें मैं हर रोज़ पहली बार मिलता हूं

तुम कभी सहेली हो जाती हो

कभी पहेली

तुम्हें बुझते बुझते

मैं तुम्हें हर बार नया महसूस करता हूं

तुम्हारा सुहावना स्पर्श

मुझे खिला जाता है

तुम्हारी गरमी तपा जाती है

हर बार एक नयी याद

बही खाते में जमा हो जाती है

ज़िंदगी तुम मुझे जी रही हो

या मैं तुम्हें

तुम मुझे चला रही हो

या मैं तुम्हें

ये कभी कहीं ना मिलने वाला क्षितिज हो जाता है

कभी सांसों में चलती प्राणवायु सा

तेरी प्यास है मुझे

तेरी आस हूं मैं

ज़िंदगी तू कभी मुसीबतों का पहाड़ है

विरह का रेगिस्तान है

कभी उफनता समंदर

कभी धधकता ज्वालामुखी

कभी वक़्त के दामन में

फूलों का गुलदस्ता

ज़िंदगी अटूट अग्नि सा

मैं जलता रहूंगा

तेरा हर ख्वाब रोशन करता रहूंगा

ज़िंदगी तू बहुत हसीन है

ज़िंदगी तू बहुत खूबसूरत है !

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