धीर-गंभीर-शूरवीर कर्मचारी नेता – जयप्रकाश शास्त्री

हरियाणा: जूझते जुझारू लोग-  22

धीर-गंभीर-शूरवीर कर्मचारी नेता – जयप्रकाश शास्त्री

सत्यपाल सिवाच

 

जीन्द जिले की नरवाना तहसील के भाणा ब्राह्मणान गाँव में एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे, पले, बढ़े, पढ़े जयप्रकाश एक दिन कर्मचारी व जनवादी आन्दोलन का जाना-माना चेहरा बन जाएंगे, शायद तब किसी के दिमाग में यह बात नहीं आई होगी। वे मेरे परिवार के सदस्य और छोटे भाई व अंतरंग मित्र की तरह हैं। वे ऊपर से दिखने में नेता टाइप नहीं लगते लेकिन जब भी कोई उनसे पाँच-सात मिनट बात कर लेता है तो पता चलता है कि एक शान्त, समुद्र से गहरे, अथाह जलराशि में मानवता और न्याय की प्राप्ति के लिए एक प्रचंड तूफान जमा है। वे धैर्यवान हैं, विनम्र हैं लेकिन उतने ही स्पष्ट और डटकर लड़ने वाले योद्धा हैं।

जनवरी 1960 में जन्म , पिता श्री रामस्वरूप, माता का साढ़े चार साल की आयु में निधन , दो बहन व दो भाई, वे तीसरे नंबर पर, माता के अल्पायु में निधन होने पर परिवार भारी परेशानी की स्थिति में ,एक ओर बच्चे छोटे , दूसरी ओर पिता पर पालन पोषण , खेती बाड़ी पशुओं की देखरेख का भार। स्कूल की पढ़ाई से दो साल पहले पशु चराने का काम किया, सात साल की आयु में पढ़ाई शुरू की, दो बार दो-दो क्लास एक साल में पास करते हुए, आठ साल में मैट्रिक परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की। आठवीं में छात्रवृत्ति प्राप्त की। मैट्रिक के बाद शास्त्री की पढ़ाई जुलाना व कुरूक्षेत्र से तीन वर्षों में कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से चौथे स्थान पर रहते हुए उत्तीर्ण की। चण्डीगढ़ से ओ.टी. करने के दो महीने बाद साढ़े उन्नीस साल की आयु में संस्कृत शिक्षक के तौर पर, छह माह आधार पर चमरोडी़ स्कूल, खंड रादौर में प्रथम नियुक्ति हुई ।

दो-ढ़ाई वर्ष के बाद रादौर में सत्यपाल सिवाच से संपर्क हुआ। उनके संपर्क से ‘अस्थाई एवं बेरोजगार अध्यापक संघ’ में नियमित करने व सेवा शर्तों में सुधार के लिए कुछ सक्रियता बढ़ी। सन्1984 में ग्रीष्मावकाश में संगठन ने नियमितीकरण की मांग को लेकर ऋषिकान्त शर्मा व सत्यपाल सिवाच की अगुवाई में जीन्द से आदमपुर मंडी तक का सात-दिवसीय पैदल मार्च किया, इसमें पूरे समय शिरकत की तथा आदमपुर पहुंचने से पहले ही सातवें दिन, अग्रोहा में रात को विश्राम करते हुए, सैंकड़ों की संख्या में शिक्षकों को हिरासत में लिया गया व पुलिस ने बसों में भरकर उन्हें तोशाम (भिवानी) से आगे छोड़ दिया व आदमपुर में चौधरी भजनलाल की सरकार ने उनको इकट्ठा नहीं होने दिया था। लेकिन इस आंदोलन का सरकार पर दबाव तो बना, तभी मुख्यमंत्री ने शिष्टमंडल को चंडीगढ़ बुलाया? 16 सितम्बर 1982 से दो वर्ष के कार्यकाल वाले शिक्षकों को नियमित करने का फैसला लिया गया, मैं और मेरे काफी साथी इस नीति के तहत रैग्युलर हुए थे।

वह बताते हैं कि आंदोलन की सफलता से उत्साहित होकर फिर ‘हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ’ ब्लाक रादौर में सक्रियता बढ़ी , सत्यपाल सिवाच हमारे लगातार प्रेरणा स्त्रोत रहे , पहली बार मई’1986 में संघ के ब्लाक रादौर के सम्मेलन में सचिव की जिम्मेदारी मिली। लेकिन यहां इस पद पर ज्यादा समय तक काम नहीं कर पाया। इस बीच जुलाई माह में कैथल उपमंडल के छौत स्कूल में  तबादला हो गया, इसी वर्ष संघ के शीर्ष नेतृत्व की “अलोकतांत्रिक प्रणाली” से संघ का विभाजन हो गया , विभाजन का मुख्य कारण जींद में अध्यापकों ने अपने तन धन से बनाए गए “अध्यापक भवन” पर अध्यापक संघ के प्रधान रहे श्री सोहनलाल व उनकी मित्र मंडली के काबिज होना भी रहा। कैथल में 1986 में तबादला होने पर मैंने पाया कि वहां अध्यापक संघ के “शेर सिंह गुट” का कोई कार्यकर्ता नहीं था। इस बीच कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के ‘नान टीचिंग स्टाफ’ के आंदोलन के चलते चौधरी बंसीलाल की सरकार के उन पर भारी दमन के कारण कर्मचारी संगठनों ने उन्हें सहयोग दिया, कर्मचारियों में चौथे वेतनमान के न मिलने से भी रोष पनप रहा था, परिणाम स्वरूप ‘सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा’ का गठन दिसम्बर’1986 में करनाल में हुआ, निर्णायक आंदोलन हुआ।

दिल्ली वोट क्लब पर लाखों की संख्या में शिक्षक व कर्मचारी सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा की अगुवाई में जुटे । कैथल उपमंडल के स्कूलों में पांच छह महीनों के अथक प्रयासों से उन्होंने अकेले ही अध्यापकों से कई बार सम्पर्क साधा, जिसका परिणाम यह रहा कि भिवानी रैली, वोट क्लब रैली में हजारों अध्यापकों ने भागीदारी की,  शिक्षक हड़ताल पर भी गए, आखिर समझौता हुआ व चौथे वेतनमान की प्राप्ति हुई । कैथल उपमंडल के दोनों ब्लाकों में अध्यापक संघ को “मान्यता” मिली व दूसरा संगठन हाशिए पर चला गया । सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के बनने व कैथल जिला के गठन होने के पश्चात जयप्रकाश शास्त्री अध्यापक संघ की जिला कमेटी में पांच बार तथा सर्व कर्मचारी संघ के ब्लाक कैथल व फिर जिला कमेटी के सचिव पद पर चार बार भूमिका अदा की। अध्यापक संघ की राज्य कमेटी में दो बार उपमहासचिव व आडिटर, कार्यालय सचिव की जिम्मेदारी का निर्वहन किया, जनवरी’2018 में सेवा निवृत्ति से पहले आखिर तक संघ में उनकी पूरी सक्रियता रही। आंदोलनों के चलते कई बार पुलिस हिरासत,1989 में जेल, विक्टेमाइजेशन व बर्खास्तगी भी हुई1993 में । अर्जित अवकाश भी आंदोलनों में अनेकों बार लिए, जिस कारण रिटायर होने पर केवल 186 अर्जित अवकाश की “लीव-एनकैशमैंट” मिल पाई।

इधर सेवा के चलते पत्राचार माध्यम से बी.ए. की,  संस्कृत व राजनीतिक विज्ञान विषयों में स्नातकोत्तर डिग्रियां हासिल की, संस्कृत अध्यापक के पद पर नियुक्ति के बाद प्राध्यापक, मुख्य अध्यापक व प्रधानाचार्य के पदों पर पदोन्नतियां हुई। किसी लाभ से वंचित नहीं हुआ ।

सेवा निवृत्ति के बाद भी मजदूर संगठन सीटू , रिटायर्ड कर्मचारी संघ हरियाणा , हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति व कर्मचारी संगठनों में सक्रिय भूमिका अदा की जा रही है।

जयप्रकाश शास्त्री के मुताबिक आज के दौर में नई आर्थिक नीतियों व उदारवादी नीतियों के चलते सार्वजनिक क्षेत्र व सरकारी विभागों पर भारी हमले बोले जा रहे है, निजीकरण का बोलबाला है ,पद समाप्त किए जा रहे हैं , जनसेवा के विभागों का बंटाधार किया रहा है , अनेकों प्रकार की कच्ची भर्तियां हो चुकी हैं, वेतन व अन्य सुविधाओं में भारी कटौती थोंपी जा रही हैं, युवाओं का बुरी तरह से शोषण किया जा रहा है। सामाजिक सुरक्षा खत्म की जा रही है, ऐसे में कर्मचारी, मजदूर वर्ग, किसान व सभी मेहनतकश वर्गों को व्यापक एकता कर आंदोलन करने होंगे। सारी समस्याओं का कारण मौजूदा व्यवस्था है, एकता को कमजोर करने को अनेकों हत्थकण्डें अपनाएं जा रहें हैं। शोषण मुक्त समाज के लिए व्यवस्था परिवर्तन के लिए लामबंदी के अनथक प्रयास आज की जरूरत है। सौजन्यः ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच

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