कविता
कविता का जन्म
ओमसिंह अशफ़ाक
फ़सल सी उगती है कविता
झेलती मार पाले और सूखे की
बह जाती है कभी बाढ़ में यकदम
जैसे गई फ़सल पकी-पकाई
चली आती है कभी खिंची
कोयले की तरह खान से
लथपथ मिट्टी और कीचड़ से
करती हुई दिमाग को पसीना-पसीना
कभी लेती है जन्म ऐसे
जैसे हुई हो नार्मल डिलीवरी घर में
और देखती है
नवजात शिशु को
बड़े चाव से
सद्य-प्रसूता मां,
लेटा हुआ बगल में।
(इसी दौर में संग्रह से)
