गीत
चाहत
ओमप्रकाश तिवारी
अब मन लगता नहीं गुलशन में तेरे
फूल कम कांटे ही आए दामन में मेरे
ये सूरज तेरा उजाला मुबारक हो तुझे
अंधेरों में रहने की लंबी आदत है मुझे
चाहतें अनदेखे ख्वाब जैसी होती हैं
बिना ख़ुशबू वाला गुलदस्ता होती हैं
कोमल नाजुक ख़तरनाक भी होती हैं
बात बात पर बदनाम भी ख़ूब होती हैं
चाहतों को सपनों पर बैठा कर घुमाया
जो रहा अपना उसे कभी ना आज़माया
मोती की चाहत न उठने दी कभी मन में
मांगने से दीदावर ना पैदा होता चमन में
चलते हैं अब वहीं चले थे जिस जगह से
सांस घुटती है अब बनावटी खुशबुओं से