दरअसल
ओमप्रकाश तिवारी
उत्सव मनाने की कोई वाजिब वजह नहीं होती है
न ही कोई मापदंड है
न ही कोई तरीका
सीमा भी कोई तय नहीं है
उसी तरह
जैसे कि मूर्खता की
किसी भी सीमा तक जाकर
किसी भी तरीके से
उत्सव मनाया जा सकता है
जैसे कि तीन तलाक पर
कानून बनाकर
दुष्कर्मी को फांसी की सजा देने वाला कानून बनाकर
सूचना के अधिकार कानून को कमजोर करने वाला बिल पारित कर कर
लोकपाल न नियुक्त कर
नियुक्त कर भी दिए तो उसे कोई अधिकार और संसाधन न देकर
रोजगार की गारंटी देने वाले कानून को खत्म करके
कामगारों और कर्मचारियों के शोषण वाला कानून बनाकर
आदिवासियों को उनके जंगल और जमीन से बेदखल करकर
किसानों की जमीनें विकास और सड़क बनाने के नाम पर छीन कर
बेरोजगारी की तादाद बढ़ाकर लाखों युवाओं को सस्ते में श्रम बेचने के लिए विवश करकर
आप उत्सव मना सकते हैं
क्योंकि आप ऐसा कर सकते हैं
कारपोरेट को फायदा पहुंचाने और अपनी सत्ता कायम रखने के लिए आप कुछ भी कर सकते हैं
आपके पास राष्ट्रवादी नाम का भावुकता वाला हथियार है
आपके पास चाटूकारों की फौज है जो किसी भी सीमा तक जा सकती है..
जो आपके हर गलत काम को सही बताकर गाल बजाती रहेगी
जनता उत्सव मनाती रहेगी
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