ओह तेरी…हैट्रिक के लिए डीपफेक ट्रिक

प्रदीप मिश्र

व्यंग्य

‘जिसमें अकेले चलने का हौसला होता है। उनके पीछे एक दिन पूरा काफिला होता है। ‘  ‘जो अप्राप्त है, उसे पा लेना कठिन नहीं है…परंतु जो प्राप्त था, उसे खोकर फिर पाना अत्यधिक कठिन है ‘ दोनों ज्ञान मोती भाई को इसी सप्ताह मिले हैं। सोशल मीडिया पर दौड़ रहे इन मैसेज को अपने-अपने हिसाब से पढ़ने वालों के चेहरे खिले हैं। कुछ को गम और कुछ को गिले हैं। किसी ने हाथ बांध लिए तो किसी के होठ सिले हैं। फिर भी आते हैं मुद्दे पर, जिससे अभी कागज काला किया जा सकता है। दिमाग का जाला साफ करने के लिए जुमलों की जरूरत ज्यादा होती है। हैट्रिक के लिए चाहे अपनी आंखें बंद करनी हो या फिर दूसरों की आंखों में धूल या धुआं झोंकना हो, किया जाएगा। 

हिमाचल प्रदेश और बिहार में ‘ …बिकता है बोलो खरीदोगे ‘ नई बात नहीं है। माहौल बनाया जा रहा है। पुराने तरीके में नो चेंज, बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि एक बार और दान दीजिए। ज्यादा से ज्यादा मतदान कीजिए। संदेश यह भी कि अंतरआत्मा फैसला करे या इसका अंदरखात्मा हो गया हो। ईवीएम उसी को जिताएगी, जिसका नाम उसके कान में फूंका गया है। केंचुआ यानी इवेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया संकेतों में असमर्थता जता चुका है कि जो हमें और आप को नहीं पता, उसे हमराह जानते हैं। शहंशाह, बादशाह और शाह जानते हैं। वर्तमान में आपकी अस्मिता, अस्तित्व और आत्मसम्मान यही हैं। इनके पास पद, कद और मद का संगम है। भक्तों को निराश-हताश नहीं होना चाहिए। सरदार, असरदार और खुद्दार सिर्फ यहीं पाए जाते हैं।

मोती भाई ने ही बताया है। बीसवीं सदी में गुमराह करने, बेवकूफ बनाने और असलियत छिपाने की जिस प्रक्रिया को स्वांग कहते थे। 21वीं सदी में इसे स्वैग का नाम दिया गया है। सर्वसमाज इससे अवगत है। फिर हम तो विकासशील से विकसित  होने की ओर हैं। 23 वर्ष में कोई भी संकल्प घिस-घिस कर भी सिद्ध होना सुनिश्चित है। याद रखिए। नौ महीने में एक बच्चे का जितना विकास होता है, नौ साल में इससे कहीं ज्यादा देश का विकास हो गया है। मानमर्दन कभी-कभार करता हूं। अभी ज्ञानवर्धन कर रहा हूं। आप अगर इसे नहीं मानते हैं तो मेरा आपसे मतभेद है। मनभेद है। व्यंग्य मत समझिए, बुरा मत मानिए। आपकी बुद्धि पर तरस आता है और इसके लिए बहुत खेद है। अभी मंद-मंद मत मुस्कराइए जनाब। पूरे नहीं होंगे आपके ख्वाब। जो राजधर्म की बात कहते-कहते चले गए, उन्होंने ही लिखा था-‘ हार नहीं मानूंगा… रार नहीं ठानूंगा’।

गेट एंड फारगेट को दिनचर्या मानने वाले मोती भाई की टेंशन का कभी-कभी एक्सटेंशन हो जाता है। फिर भी उन्हें इंटरटेनमेंट डिपार्टमेंट, कार्पोरेट्स एंड ब्यूरोक्रेट्स ऑफ इंडिया और इंफ्ल्यूएंसर टेक्निक पर आत्मविश्वास से भी अधिक विश्वास है। तीसरे निजाम का आरंभ होते ही ये सभी नए ढंग से काम करेंगे तो दिमाग में चढ़ेंगे। थ्री प्वाइंट प्रोग्राम के तहत इन तीनों ने शानदार काम किया है। सबका दाम लिया है। बाधा डालने वालों को जेल भेजा जा रहा है। सभी प्रावधान पहले से थे। हमने नहले पे दहला बनाया है। यही कारण है कि पार्टी को बिन मांगे 300 करोड़ से ज्यादा का चंदा मिल गया है। कौन कहता है कि चंदा लेना गंदा है। उन्हें नहीं मालूम कि अभाव की जिंदगी स्वभाव से नहीं बदलती। इसके लिए प्रभाव और दबाव की आवश्यकता होती है। इसलिए हमने नारा दे दिया है। वारा न्यारा आपको करना है।  सिर्फ एक ही बंदा काफी है…।

अच्छी तरह जानता हूं कि आप लोग फर्श से अर्श पर पहुंचने वाले व्यक्ति के बारे में विचार-विमर्श करते हैं। परामर्श करते हैं। इसे सहर्ष जारी रखिए। इसे जीवन दर्शन बनाने का प्रयास करिए। प्रतिदिन अभ्यास करिए। हम पर पूर्ण विश्वास कीजिए। सायास कीजिए या अनायास कीजिए। एक और मौका दें। गारंटी है कि तीसरी बार क्रिकेट का विश्वकप आपके करकमलों में शोभायमान होगा। तब तक हालात ऐसे हो जाएंगे कि न तो कोई चुनौती होगी और न ही कोई पनौती होगी। साथ ही समझ लीजिए। नैतिक कुछ नहीं होता। राजनैतिक होता है। हम आपसे जो बातें करते हैं। करने के लिए बेचैन रहते हैं। अपना एजेंडा पक्का है। न विधि, न विधान और न ही संविधान का प्रावधान।  पिछड़ जाएंगे तो बिछड़ जाएंगे। परिश्रम, प्रशंसा और प्रतिज्ञा से कुछ नहीं होता। प्रपंच करने और प्रलोभन देने पड़ते हैं। विद्वान कहते हैं कि प्रपंच पुनीत हो तो प्रारब्ध परिवर्तित हो जाता है। इनका प्रयोग कर आप भी परिवर्तन की ओर प्रस्थान करने में  समर्थ होंगे।

मन की गांठें खोल लीजिए। समाचार पत्रों में प्रायः वाएं  (लेफ्ट)  प्रकाशित होने वाले संपादकीय पृष्ठ पर विचार पक्ष को दाहिने (राइट) पेज कराया जाएगा। टीवी चैनल राइट हो गए हैं तो सब कुछ राइट ही होना चाहिए। न्यूजपेपर इससे अलग नहीं रखे जाएंगे। माई डियर, प्लीज अंडरस्टैंड। नो लेफ्ट, नो सेंटर, नो लाइट, नो फाइट। सिचुएशन इज वेरी-वेरी टाइट। सो, ओनली एंड ओनली राइट। स्टाप ओरली, रिटन इन ब्लैक एंड व्हाइट। यह इसलिए क्योंकि हम तब तक अल्पकालीन थे। हमारे दिमाग मलीन थे। दिमाग खुले और दीर्घकालीन हो गए। जल्द ही समकालीन को पीछे कर दीर्घकालीन स्वरूप प्राप्त करने की उत्कंठा है। इसलिए आपसे वादा है कि अगली बार हर काम ज्यादा करने का इरादा है। पहले हुई भूल को तूल मत दीजिए। बीती बातों पर धूल डालिए। ये आपका श्रद्धाभाव होगा कि आप अपने मन की बगिया की धूल-मिट्टी में कैसा फूल खिलाएंगे।

आखिर में एक बात और। जोश में होश खो दे उसे बेहोश नहीं मदहोश कहते हैं। मतदान करने से पहले तक आपको- ‘ यार हमारी बात सुनो। ऐसा एक इंसान चुनो, जिसने पाप ना किया हो, जो पापी ना हो…’ गाना और गुनगुनाना चाहिए। अपना इरादा तो ‘…वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा’  से ज्यादा कुछ नहीं है।