नेपाल को सांप्रदायिक और साम्राज्यवादी शिकंजे से बचाना जरूरी
मुनेश त्यागी
नेपाल का जेन-जी आंदोलन सरकार विरोधी और एक हिंसक आंदोलन में बदल गया है और अब परिस्थितियां बता रही हैं कि वह जनवादी और गणतंत्र व्यवस्था को तोड़कर सांप्रदायिक, राजशाही और साम्राज्यवादी ताकतों के जाल में फंस गया है। नेपाल के आंदोलन में संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, सरकारी इमारत में आगजनी और तोड़फोड़ की गई है। पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी को जिंदा जला दिया गया। पूर्व प्रधानमंत्री देऊबा की पत्नी को पीटा गया और वित्त मंत्री को दौड़ा-दौड़ा कर पिटाई की गई।
प्रधानमंत्री केपी शर्मा को ओली को जान बचाकर देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। कई शीर्ष नेताओं के घरों में आगजनी और तोड़फोड़ की गई कई बैंकों में लूट पाठ और तोड़फोड़ की गई। वैसे तो आंदोलन के कारण आर्थिक नाकामयाबियां, भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद बताए गए और बहाना बनाया गया कि 26 सोशल मीडिया चैनलों पर सरकार ने पाबंदी लगा दी। दबाव बढ़ता देखकर सरकार ने इस पाबंदी को हटा लिया था।
माना की जन समस्याओं के लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार थीं, सरकार समय रहते जनता की परेशानियों को दूर नहीं कर पाई। सरकार अपनी परेशानियों, कमियों और नाकामियों को जनता को नहीं बता पाई। उसने समय रहते समस्याओं को जनता के सामने क्यों नहीं रखा? और जनता को अपने साथ क्यों नहीं लिया? इसका कोई जवाब सरकार के पास नहीं है।
यहीं पर एक अहम सवाल उठता है कि उग्र आंदोलनकारियों ने सरकार के सामने अपनी समस्याएं रखकर उसे चुनौती क्यों नहीं दी? एक शांतिपूर्ण छात्र आंदोलन को हिंसक आंदोलन और हत्यारे आंदोलन में क्यों तब्दील कर दिया गया? यदि किसी घर में बच्चों को अपने माता-पिता से शिकायतें हैं तो क्या माता-पिता को मार कर पीट कर, उनकी हत्या करके, पूरे घर को जला दिया जाएगा? किसी भी परिवार, समाज या संगठन की ऐसी मानसिकता कतई भी मान्य नहीं हो सकती।
इन उग्र आंदोलनकारियों ने देश और दुनिया को आज तक नहीं बताया कि वे जनवादी गणतंत्र के स्थान पर कौन सा संविधान और शासन व्यवस्था लाना चाहते हैं? परेशान जनता के लिए उनका न्यूनतम कार्यक्रम क्या है? इन शांति प्रिय आंदोलनकारी छात्रों के बीच में ये हत्यारे, आगजनी करने वाले उग्र आंदोलनकारी कहां से आ गए? इस सवाल का जवाब आज तक नहीं दिया गया है। अब बातें और हकीकत छन छन कर सामने आ रही हैं कि इस आंदोलन के पीछे अमेरिका का “डीप स्टेट” और उसकी तमाम एनजीओ संस्थाएं काम कर रही हैं।
अमेरिका के एक छत्र राज को चीन चुनौती दे रहा है। नेपाल के कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की नजदीकियां चीन के साथ बढ़ती जा रही थीं। अमेरिकी साम्राज्यवाद नेपाल को चीन के साथ जाते नहीं देखना चाहता है, अतः उसने जनता की परेशानियां का बहाना बनाकर, उग्रवादियों को छात्रों के आंदोलन में घुसा कर, नेपाल में बदमनी, हिंसा, हत्या और आगजनी का माहौल तैयार कर दिया। नेपाल की चुनी हुई सरकार का सत्ता पलट करने के लिए उसने अपने तमाम एनजीओ संगठनों और कार्यकर्ताओं को मैदान में उतार कर नेपाल की चुनी हुई सरकार को सत्ता से हटा दिया और अपने “डीप स्टेट” के माध्यम से नेपाल की सत्ता पर कब्जा कर लिया। यही काम उसने बांग्लादेश में किया था। नेपाल में भी उसने ऐसा ही कर दिया है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
आज के बदले हुए हालात को देखते हुए, अब यह नेपाल की जनता, किसानों, मजदूरों और वहां की तमाम जनवादी, धर्मनिरपेक्ष, गणतांत्रिक और वामपंथी ताकतों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी हो गई है कि वे एकजुट हों और अपनी गलतियों को मानें, सुधारें। यहीं पर बेहद जरूरी हो गया है कि वे तमाम जनता को, अपने कार्यकर्ताओं को बदले हुए हालात में, फिर से शिक्षित करें , संगठित करें और उसे नई परिस्थितियों में फिर से संघर्ष के मैदान में उतारें और अपनी जनता की एकता को बढ़ावा देकर, नेपाल में जनवादी, धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी व्यवस्था को फिर से मजबूत करें और नेपाल को साम्राज्यवादी, राजशाही और सांप्रदायिक ताकतों के शिकंजे में फंसने से बचाएं। यही आज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी और सबसे बड़ी जरूरत है।