तमाम एनजीओ बने हुए हैं पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के रक्षा कवच

तमाम एनजीओ बने हुए हैं पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के रक्षा कवच

  मुनेश त्यागी

15 अगस्त को लाल किला प्राचीर से दिए गए भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह एक एनजीओ है। इसे सुनकर बहुत लोगों को अचम्भा सा हुआ। हमारे देश में बहुत सारे लोगों का मानना है कि एनजीओ एक स्वतंत्र संस्था होती हैं, इसका किसी सरकार से कोई लेना देना नहीं है। उनकी यह अवधारणा एकदम निराधार है और तथ्यों के विपरीत है। आइए जानते हैं एनजीओ का पूरा इतिहास और उसकी समाजवाद विरोधी कारस्तानियां।

1920 के दशक में समाजवाद और साम्यवाद के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए एनजीओ यानी non-governmental organisation यानी गैर सरकारी संगठन को अमेरिकी पूंजीपति रॉकफेलर ने सबसे पहले बनाया था। इस संगठन को एनजीओ का नाम, जनता और दुनिया को गुमराह करने के लिए जानबूझ कर और एक साजिश के तहत जनता को गुमराह करने के लिए दिया गया था।

सारे के सारे एनजीओ दुनिया के बड़े बड़े पूंजीपतियों द्वारा बनाए हैं जैसे फोर्ड फाउंडेशन, बिलगेट्स फाउंडेशन, pepsi-cola फाउंडेशन, आदि आदि। एनजीओ दुनियाभर में पूंजीपतियों ने बना रखे हैं। भारत के बड़े एकाधिकारी पूंजीपति भी इस एनजीओ की दौड़ से बाहर नहीं हैं, टाटा फाउंडेशन, बिरला फाउंडेशन, रिलायंस फाउंडेशन आदि हजारों एनजीओ भारत में भी काम कर रहे हैं।

दिखाने के लिए एनजीओ को गैर राजनीतिक संगठन बताया जाता है, मगर दुनिया भर में इनकी गतिविधियां और कामों को देख कर यह निश्चित है कि पूंजीवादी दुनिया से त्रस्त परेशान लोग, छात्र, नौजवान, बेरोजगार, वामपंथ और समाजवाद की ओर न चले जाएं और संकटग्रस्त पूंजीवादी दुनिया को पलटने के संघर्ष और अभियान में शामिल ना लग जाएं और समाजवादी विचारों को अपनाकर समाजवादी व्यवस्था के निर्माण के अभियान में ना लग जाए, अतः लोगों को वहां जाने से रोकने के लिए, पूंजीपतियों ने एनजीओ का छल-कपट भरा रास्ता अपनाया था ताकि इस समस्याग्रस्त तबके को एनजीओ के जाल में फंसा कर, अपने शोषक और विश्वहडपी भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।

दुनिया के जितने भी एनजीओ हैं, ये सारे के सारे एकाधिकारी पूंजीपतियों ने बना रखे हैं। इनकी सारी नीतियां, इनका संचालन और इनका समस्त खर्चा, इन पूंजीपतियों द्वारा ही उठाया जाता है। इन तमाम एनजीओ की सारी राजनीति और कार्यक्रमों की पूरी रूपरेखा इन पूंजीपतियों और उनके द्वारा संरक्षित लोगों द्वारा तैयार की जाती है। इन्हीं नीतियों के अनुसार ये एनजीओ के लोग काम करते हैं। ये तमाम एनजीओ अपना स्वतंत्र एजेंडा तैयार नहीं कर सकते, इनकी अपनी कोई स्वतंत्र औकात नहीं है। इनको पूंजीपतियों द्वारा तैयार किए गए एजेंडे पर ही चलना पड़ता है।

एनजीओ का मुख्य कार्य है कि संकटग्रस्त और समस्याग्रस्त नौजवानों को समाजवादी व्यवस्था बनाने और सोच की ओर जाने से रोका जाए, समाजवाद और वामपंथ के उभार को रोका जाए और उस जनसमर्थक क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ने से रोका जाए। दुनिया के सारे एनजीओ इसी कार्य नीति के अनुसार काम करते हैं।

हमने व्यवहार में देखा है कि रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त लोग समाजवादी व्यवस्था की ओर जाने की बजाए, इन एनजीओ के जाल में फंस जाते हैं जिन्हें क्रांति करनी चाहिए और क्रांतिकारी आंदोलन को दिशा, विस्तार और गति देकर आगे बढ़ाना चाहिए था, वे अपनी पेट पूजा के लिए जाने अंजाने क्रांति के विरोध में, पूंजीवाद की हिफाजत और सुरक्षा में लग जाते हैं।

ये एनजीओ वैज्ञानिक समाजवाद के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर उभरे हैं। ये तमाम एनजीओ संकटग्रस्त पूंजीवाद के बुझते दियों की लौ को बचा लेना चाहते हैं। ये समाजवाद की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा बन गए हैं, इन्होंने समाजवाद की ओर बढ़ते जन सैलाब को रोक दिया है, उन्हें गुमराह कर दिया है। ये तमाम एनजीओ आज समाजवाद और साम्यवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के रास्ते में सबसे बड़े रोड़ा बनकर सामने आ गए हैं।

इन एनजीओ के जाल में फंसकर, ये सारे परेशान नौजवान लोग, कोल्हू का बैल बन गए हैं। अब ये सारे नौजवान लोग, जाने अनजाने समाज के क्रांतिकारी रूपांतरण को रोक रहे हैं। ये क्रांति की दिशा और गति को रोकने का काम कर रहे हैं क्योंकि अधिकांश नौजवान लोग, समाज के क्रांतिकारी रूपांतरण में न लगकर, इन एनजीओ के जाल में फंस गए हैं और अपने पेट और दूसरी सुविधाओं के चक्कर में, दुनियाभर के लाखों करोड़ों लोग, पूंजीवाद के हित रक्षक बन गए हैं।

हो सकता है कि इन एनजीओ ने कुछ लाख, करोड़ लोगों को रोजगार दे दिये हों, कुछ गिने-चुने लोगों के जीवन में सुख सुविधाएं आ गई हों, मगर तमाम के तमाम एनजीओ संकटग्रस्त और समस्याग्रस्त सड़े हुए पूंजीवाद को ढहने से बचा रहे हैं। ये तमाम गैर सरकारी संगठन क्रांति और दुनिया के क्रांतिकारी परिवर्तन को रोक कर खड़े हो गए हैं, जनता को इनसे सावधान रहना होगा, इनकी जन विरोधी और क्रांति विरोधी हकीकत और हरकतों को जानना, समझना और पहचानना होगा और इनसे दूर रहना होगा।

थोड़े काल के लिए जनता को भरमाने के लिए ये एनजीओ लोकलुभावन कदम उठा कर जनता को गुमराह कर सकते हैं, उसे क्रांति के असली रास्ते से हटा सकते हैं, मगर अंतिम रूप से इनका मुख्य काम समाज के क्रांतिकारी परिवर्तन को रोकना और पूंजीवादी साम्राज्यवाद व्यवस्था को बरकरार रखना है। सारे के सारे एनजीओ साम्राज्यवादी एजेंट की भूमिका अदा करते हैं।

इन्हें जनता की बुनियादी समस्याओं,,, शोषण, अन्याय, भेदभाव, बढ़ती असमानता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई पर कभी भी वार्ता करते और इनका आमूलचूल खात्मा करने की बात करते हुए नहीं देखा होगा। पूंजीवादी व्यवस्था और शोषण व लूट के खिलाफ आवाज उठाते नही देखा गया है। वर्तमान में ये पूंजीवादी साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के सबसे बड़े रक्षा कवच का काम कर हैं और साम्राज्यवाद के वाहक और प्रहरी बन गए हैं। यह भी देखा गया है कि ये एनजीओ के लोग कई बार भोले भाले और नये वामपंथी कार्यकर्ताओं को गुमराह करते हैं, उन्हें इनाम, तमगे और शील्ड भी दिलवा देते हैं और अंत में उन्हें वामपंथी पार्टियों से अलग-थलग कर उन्हें एनजीओ का पिछलग्गू बना देते हैं।

आजकल एनजीओ में काम कर रहे लोग, क्रांति के रुझान के नौजवानों और लोगों को भटका कर और गुमराह कर, एनजीओ में जाने और उनको ज्वाइन करने के लिए दिन-रात प्रयत्नशील है। ये लोग समय के अनुसार समाजवाद और क्रांति का भी चोला पहनकर जनता को धोखा देते हैं और दे रहे हैं, कई बार तो यह भी देखा गया है कि जो लोग कम्युनिस्ट पार्टियों से किन्ही मुद्दों को लेकर आपस में विवाद ग्रस्त हो जाते हैं, तो ये एनजीओ के लोग उन लोगों के पास जाते हैं और उन्हें एनजीओ में खींचने का प्रयास करते हैं। कई बार तो एनजीओ को रजिस्टर्ड करवाने के पैसे भी ये एनजीओ के लोग ही दे देते हैं। इन लोगों का बस एक ही मकसद है कि किसी भी तरह से नौजवान क्रांतिकारियों को वामपंथी संगठनों से अलग-थलग किया जाए और वामपंथी पार्टियों और उसके जन संगठनों को बढ़ने से, विस्तार करने से रोका जाए। आज जनता को इनसे बहुत-बहुत सावधान होने की जरूरत है।

थोड़े काल के लिए ये एनजीओ जनता को बहकाने, भरमाने के लिए लोकलुभावन नारे और कदम भी उठा कर जनता को गुमराह कर सकते हैं। कई बार ये एनजीओ के लोग तरह-तरह के रंग बदलकर, कई वामपंथी संगठनों की गतिविधियों में भाग लेते हैं और वहां पर लच्छेदार क्रांतिकारी भाषण देते हैं, मगर अंतिम रूप से इनका मुख्य काम, समाज के क्रांतिकारी परिवर्तन को रोकना, उनके कार्यकर्ताओं में आपसी विवाद पैदा करना, उनमें आपसी झगड़े और मनमुटाव तक करवा देना और साम्राजवादी व्यवस्था को बरकरार रखना है, ये एनजीओ के लोग पूरी तरह से साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के एजेंट हैं, उन्हीं के लोग हैं, उन्हीं का काम कर रहे हैं, उन्हीं के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। इनका जनता की समस्याओं से दुख दर्द से कुछ लेना देना नहीं है। तमाम के तमाम एनजीओ पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के रक्षा कवच बन गए हैं। तमाम वामपंथी पार्टियों और उनके जन संगठनों को एनजीओ के कार्यकलापों को लेकर विस्तार से और गंभीरता से विचार विमर्श करने की जरूरत है।

मुनेश त्यागी