मुनेश त्यागी
जुल्म है
गरीबी है
शोषण है
अन्याय है।
बेबसी है
बेकसी है
लाचारी है
भुखमरी है।
वर्ण वाद है
बेईमानी है
छूआछूत है
जातिवाद है।
भ्रष्टाचार है
धर्मांधता है
श्रद्धांधता है
जादू टोने हैं।
ऊंच नीच हैं
जात पांत है
छोटा बड़ा है
बेरोजगारी है।
गंडे और ताबीज हैं
मंदिर और मस्जिद हैं
अशिक्षा और कुशिक्षा है
अंधविश्वासों की आंधियां हैं।
नंगे, बाबा और फकीर हैं
अपमान और बेइज्जती है
छल फरेब और धोखाधड़ी है
सत्ता पाने की बड़ी हड़बड़ी है।
इतने सब कुछ के बाद भी हम
इंसानों को देवी देवताओं और
भगवानों से और क्या चाहिए?
बहुत कुछ तो दे ही दिया है ना?