भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, सबसे बड़े बलिदानी और वीर बादशाह बहादुर शाह जफर
मुनेश त्यागी
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के महान सेनापति, बादशाह, स्वतंत्रता सेनानी और सबसे बडे बलिदानी बादशाह, बहादुर शाह जफर का जन्म 24 अक्टूबर 1775 को हुआ था। उन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ते हुए ही 7 नवम्बर 1862 को रंगून में अपने शानदार जीवन की अंतिम यात्रा पूरी की थी और वे वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनकी मां का नाम लालबाई और पिता का नाम अकबर शाह द्वितीय था। वे सबसे बड़े बलिदानी, असली वीर और हिंदू मुस्लिम एकता के प्रहरी, रक्षक और हिफाजतकर्ता, भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के हीरो, बहादुर शाह जफर थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा उनके दो बेटों और एक पोते के कत्ल के बाद भी, जब अंग्रेजों ने उनके लहूलुहान सर तश्तरी में रखकर नाश्ते के रूप में बहादुर शाह के सामने पेश किए थे, तब भी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी, वे खौफजदा नही हुए, डरे नही और जेल जाना पसंद किया और वे रंगून की जेल में कैद कर दिए गए।
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के सेनानियों ने, हिंदू मुस्लिम एकता कायम रखने के लिए और भारत को अंग्रेजों की गुलामी के जुए से आजाद कराने के लिए, अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अपना बादशाह और सेनापति चुना और उन्हें भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का सिरमौर बनाया। मुगल काल के आखिरी बादशाह, बहादुर शाह जफर, सूफी स्वभाव के थे, बड़े शायर थे और हिंदू मुस्लिम एकता में सबसे ज्यादा विश्वास रखते थे। बहादुर शाह जफर ने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ सलाह मशवरे के बाद, भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अट्ठारह सौ सत्तावन की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए एक संचालन समिति का गठन किया गया था जिसमें आधे मुसलमान थे और आधे हिंदू थे। इस संचालन समिति के सर्व प्रमुख सेनापति बहादुर शाह जफर थे और उनके सचिव मुकुंद थे, जो एक हिंदू थे। इस प्रकार भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, एक हिंदू मुस्लिम संचालन समिति और बादशाह और सचिव के नेतृत्व में लड़ा गया।
बहादुर शाह जफर ने अपनी समिति के साथ मिलकर उनकी सलाह से, इस पूरे संग्राम को एक तार में पिरोने के लिए, महान स्वतंत्रता सेनानी नाना साहेब का चयन किया गया और उनके प्रमुख सचिव अजीमुल्ला खान थे जिन्होंने क्रांति को सफल बनाने के लिए इंग्लैंड, वजीरिस्तान, रूस आदि देशों का दौरा किया और एक क्रांति की रूपरेखा तैयार की। इस क्रांति के लिए 30 मई अट्ठारह सौ सत्तावन का दिन तय किया गया था क्योंकि यह दिन इतवार था और इतवार के दिन अंग्रेज चर्चों में इकट्ठा होते थे, इसलिए उन पर आक्रमण करने का दिन चुना गया था, मगर मेरठ के सिपाहियों के उतावलापन के कारण 1857 का भारत की आजादी का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, तय तारीख से पहले, 10 मई 1857 को मेरठ से शुरू हो गया।
बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में इस क्रांति से लोगों को जोड़ने के लिए, जमींदार और राजाओं, किसानों, मजदूरों, दूसरे तमाम मेहनतकशों, महिलाओं आदि से संपर्क करने का काम नानासाहेब और अजीमुल्ला खान का था। इस संग्राम में मुख्य रूप से “कमल के फूल” और “रोटियों” का इस्तेमाल किया गया। कमल के फूल का इस्तेमाल शहरों में प्रचार के लिए और रोटियों का देहाती क्षेत्रों में प्रचार करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
इस संग्राम के दूसरे महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अजीजन बाई, बेगम हजरत महल, वीर कुंवर सिंह, पीर अली, तात्या टोपे, मंगल पांडे, मौलाना अहमद शाह आदि थे जिन्होंने क्रांति के संदेश को गांव गांव और शहर शहर फैलाया।
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति का आगाज मेरठ से हुआ। मेरठ से जाकर, इन क्रांतिकारियों ने दिल्ली के बहादुर शाह जफर को, अपने मुक्ति संग्राम का और क्रांति का नेता और सेनापति चुना। मेरठ में 85 क्रांतिकारी सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों पर मुकदमा चला जिसमें 52 मुसलमान थे और 33 हिंदू थे। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन का हिंदू मुस्लिम एकता का यह सबसे अद्भुत नजारा था। आज जो लोग हिंदू मुस्लिम एकता की नही, उनके झगड़े की बात करते हैं, मेरठ के हिंदू मुस्लिम सैनिकों की यह अद्भुत एकता, उनके मुंह पर यह करारा तमाचा है। हमें इससे सबक लेना चाहिए और आज किसानों मजदूरों की, दूसरी स्वतंत्रता की लड़ाई को आगे बढ़ाना चाहिए जो किसानों मजदूरों और हिंदू मुसलमानों की एकता की बिनाह पर ही कामयाब हो सकती है।
जब क्रांतिवीर बहादुर शाह जफर को अंग्रेज़ अफसर हडसन ने गिरफ्तार किया और उनके सामने उनके दो बेटे बेटे और एक पोते का खून से लथपथ सिर बहादुर शाह जफर के सामने पेश किया तो तब तंज कसते हुए अंग्रेज अफसर हडसन, जो थोड़ी बहुत उर्दू जानता था, ने कहा था…
दमदमे में दम नहीं है, खैर मांगों जान की,
ऐ जफर ठंडी हुई अब, तेग हिंदुस्तान की।
इस पर बहादुर शाह जफर ने बिना डरे, बिना बेखौफ के, गज़ब के हौंसले के साथ, क्रूर हत्यारे और निर्मम हडसन को जवाब दिया था,,,,
गाजियों में बू रहेगी, जब तलक ईमान की,
तख्त लंदन तक चलेगी, तेग हिंदुस्तान की।
और वहीं यह भी कि बहादुर शाह जफर भारत भूमि से, हिंदुस्तान की धरती से कितना प्यार करते थे। बहादुर शाह जफर चाहते थे कि उनकी मौत के बाद उनके शरीर को हिंदुस्तान की प्यारी धरती पर दफनाया जाए। मगर जब उनकी यह आशा और विश्वास धूमिल होता हुआ नजर आया तो उन्होंने तब यह एक शेर पड़ा था और उनकी यह इच्छा, उनके इस शेर में देखी जा सकती है। देखिए बहादुर शाह जफर अपने गजब के ऐतिहासिक और विश्वविख्यात शेर में क्या कहते हैं,,,,,
कितना बदनसीब है जफर,दफ्न के लिए,
दो गज जमीन भी ना मिली कुऐ यार में।
आज अंग्रेजों से अनेकों बार माफी मांगने वाले, गिड़गिड़ा कर, जेल से रिहा होने वाले सावरकर की बात हो रही है जिसे आजादी का सेनानी, राष्ट्रभक्त, देशभक्त आदि क्या क्या बताया जा रहा है मगर 1911 के बाद यह सावरकर लगातार माफी मांगता रहा। पहले अंग्रेजों से 6 बार माफी मांगी और फिर गांधी हत्या के बाद भारतीय सरकार से माफी मांगता रहा। 1911 से लेकर 1947 तक यह आदमी भारत की एकता को तोड़ने के काम करता रहा, हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने के काम करता रहा, झगड़े, फसाद, दंगे, हिंसा, हत्या और नफरत की बात करता रहा। इनके इतने लंबे कामों की फेहरिस्त के बाद इनको किसी भी दशा में भारत का स्वतंत्रता सेनानी या वीर की उपाधि नहीं दी जा सकती।
भारत भूमि के और अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने वाले महान बादशाह और महान स्वतंत्रता सेनानी, बलिदानी और वीर तो बहादुर शाह जफर ही थे जिन्होंने अपना राज छिन जाने के बाद भी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी, अपने लड़कों और पोते के कत्ल के बाद भी माफी नहीं मांगी और किसी प्रकार की रूरियायतन नहीं की और बुजदिली नहीं दिखाई, कोई माफी नही मांगी।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों द्वारा बहादुर शाह जफर को हिमायूं के किले में गिरफ्तार कर लिया गया तो उन्होंने नाश्ते की मांग की। बहादुर शाह जफर द्वारा नाश्ते की मांग करने पर अंग्रेजों ने उनके दो पुत्रों और एक पोते के सर काटकर, ख़ून से लथपथ सिर तश्तरी में रखकर बहादुर शाह जफर के सामने पेश किए, तो इस नजारे को देखकर बहादुर शाह जफर ने कहा था कि “हिंदुस्तान के असली वीर ऐसे ही “खून से सुर्खरू” होकर अपने बादशाह के सामने पेश आते हैं।”
स्वतंत्रता सेनानी और महान बलिदानी बादशाह, बहादुर शाह जफर के इन शब्दों को सुनकर अंग्रेज शर्म से पानी पानी हो गए और वे जीते जी धरती में गड गये। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और सबसे बड़े बलिदानी बादशाह, अंग्रेजों के जुल्म और ज्यादतियों के सामने नहीं झुके और अपने जीवन के अंतिम दिनों तक, स्वतंत्रता संग्राम और अपनी मातृभूमि, भारत माता को आजाद कराने की मांग करते रहे।
मादरे हिंद के ऐसे हिन्दू मुस्लिम एकता के अलम्बरदार, बहादुर और बलिदानी बादशाह, बहादुर शाह जफर पर, हम सभी हिंदुस्तानियों को फक्र और नाज़ है। उनकी देशभक्ति पर हम सभी भारतीयों को गर्व है। हिंदुस्तान के इस महान बलिदानी बादशाह बेटे को, शत-शत नमन वंदन और अभिनंदन। महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी और बलिदानी बहादुर शाह ज़फ़र जिंदाबाद।

लेखक- मुनेश त्यागी
