चित्र – विजय शंकर पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार
बात बेबात
राजनीति का सार समझा दिया
विजय शंकर पांडेय
बिहार की राजनीति में इन दिनों जीतन राम मांझी “ईमानदारी के व्यावहारिक कोच” बनकर उभरे हैं। उनका मानना है कि अगर लोकतंत्र में आदर्शवाद महंगा पड़ रहा हो, तो कमीशन में थोड़ी कटौती कर ली जाए। 10% न मिले तो 5% पर ही संतोष कर लो—आख़िर समझौता भी तो एक राजनीतिक मूल्य है!
मांझी जी ने साफ कर दिया कि हर सांसद-विधायक कमीशन लेता है, फर्क बस इतना है कि कुछ लोग लेते हुए शर्माते हैं और कुछ गर्व से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लेते हैं। फंड जुटाना जरूरी है, क्योंकि चुनाव लोकतंत्र का त्योहार है और त्योहार बिना चंदे के अधूरा।
शराबबंदी पर भी उनका दृष्टिकोण बड़ा मानवीय है—पूरी तरह रोक क्यों, “थोड़ी पीने” की छूट दे दीजिए। आखिर आदमी है, मशीन नहीं! कानून अगर ज्यादा सख्त होगा तो भ्रष्टाचार को आराम कहां मिलेगा?
और फिर वो ऐतिहासिक बयान—कलक्टर से कहकर हारते हुए उम्मीदवार को 2700 वोटों से जिता देना। यह कोई चुनाव नहीं, प्रशासनिक जुगाड़ था। EVM नहीं, EVJM—इलेक्शन विद जीतन मैनेजमेंट।
मांझी जी ने राजनीति का सार समझा दिया है—यह सेवा नहीं, सर्विस चार्ज है। और बिहार में यह चार्ज अब खुलेआम रेट लिस्ट के साथ उपलब्ध है।

लेखक – विजय शंकर पांडेय
