जागरूकता
जंगल की आग
कुलभूषण उपमन्यु
जंगल धरती के फेफड़े हैं. जिन्दा रहने के लिए तीन सबसे पहली जरूरतों, सांस् लेने के लिए शुद्ध हवा, पानी और भोजन उपलब्ध करवाने में जंगलों की मुख्य भूमिका है. जंगलों में पेड़ कार्बनडाईआक्साइड खा कर शुद्ध ऑक्सीजन छोड़ कर हमारे लिए प्राण वायु का प्रबंध करते हैं,
बारिश लाने से लेकर बारिश के पानी को अपनी जड़ों में समेट कर मिट्टी के अन्दर भूजल भंडारण करते हैं. मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने में पत्तियों की खाद दे कर योगदान करते हैं. जंगली कंद मूल फल दे कर वैकल्पिक भोजन व्यवस्था करते हैं. और जलवायु नियंत्रण करके पृथ्वी को रहने योग्य बनाए रखते हैं. अर्थात जंगलों के बिना मनुष्य जाति का जिन्दा रहना संभव नहीं है,
हालांकि मनुष्य के न रहने पर भी जंगल की सेहत पर कोई बुरा असर नहीं होगा, बल्कि जंगल और अच्छा पनपेगा क्योंकि इस समय जंगलों के विनाश में मनुष्य समाज की ही भूमिका सबसे ज्यादा है.
जंगलों में आग लगने के कारण मुख्यत: निम्न हैं:
कृषी बागवानी का अंधाधुन्द प्रसार, व्यापारिक स्वार्थ, जंगल और घासनी में टकराव- घास के क्षेत्र बनाए रखने के लिए आग से वृक्षों के उगने को रोकना पुराना तरीका रहा है, और एकल प्रजाति के चीड़ आदि रोपण. चीड़ की पत्तियां ज्वलनशील होती हैं जिनमें बिरोजे के अंश होते हैं इसलिए जल्दी आग पकड़ लेती हैं.
इसलिए मिश्रित प्रजातियों के मिश्रित वन तैयार किये जाने चाहिए जो आजीविका के भी बेहतर आधार हो सकते हैं. साथ ही उनमें आग लगने की संभावना भी कम रहती है. जंगलों में अनुपयोगी विदेशी खरपतवार उन्मूलन करके घास उत्पादन को बढ़ाना चाहिए ताकि चारागाह विस्तार की जरूरत ही कम हो जाए.
ऐसे निहित स्वार्थों पर सख्त रोक लगनी चाहिए जो आग लगा कर पेड़ सूख जाने पर व्यापार के लिए पेड़ प्राप्त करने के चक्कर में रहते हैं. वन आधारित आजीविका में वृद्धि के प्रयास करने चाहिए जिससे स्थानीय लोग स्वयं आग न लगाने और न लगने देने में सक्रिय हो सकते हैं.
स्थानीय समाज को वनों में आग नियंत्रण के लिए भागीदार बनाए जाने की जरूरत है. जिसके लिए सामाजिक वानिकी, और ग्राम वन विकास का काम किया जाना चाहिए. लोग जुड़ेंगे तो वनों का महत्व भी समझेंगे. वर्तमान वन अधिकार कानून इस दिशा में बढने के लिए पर्याप्त कानूनी आधार प्रदान करता है.
किन्तु सरकारें और वन विभाग इस क़ानून के क्रियान्वयन में आनाकानी वाला रुख ही अपनाए हुए है. इस कानून को योजनाबद्ध तरीके से लागू करने की जरूरत है. विशेषकर सामुदायिक अधिकारों और वन संरक्षण एवं संवर्धन से जुड़े प्रावधानों को बे झिजक लागू किया जाना चाहिए.
वनों की आग को नियंत्रित करने के तरीके भी अभी तक पिछली शताब्दी वाले ही बने हुए हैं. झाड़ियों से पीट कर आग बुझाने का जमाना लद चुका है. आज का आदमी तकनीकी सहायता के बिना काम करने का आदि नहीं रहा है न ही वह पहले जैसा कठिन श्रम करने का आदि रहा है.
इसलिए आधुनिक उपकरण और मशीनी सहयोग प्रदान करना जरूरी है. गत वर्षों में जिसके अभाव में वनों में आग बुझाते हुए कई वन कर्मियों की दुखद मौत भी हो चुकी है. वर्तमान में सादे और उन्नत दोनों तरह के उपकरण आग बुझाने वाले वन सेवकों और उनके स्थानीय सहयोगियों को दिए जाने चाहिए. जिसमें आग को पीट कर बुझाने के लिए एक टिकाऊ झाडू, झागदार स्प्रे, और स्प्रे करने के लिए उच्च दबाव वाला पंप, झाग बनाने के लिए पानी में डिटर्जेंट मिलाया जाता है.
इससे थोड़े पानी से ज्यादा प्रभाव हो सकता है. दस्ताने, अग्निरोधी बूट, फस्ट एड बॉक्स, और आग बुझाने वाले कार्बन डाईआक्साइड वाले सुधरे यंत्र, दिए जाने चाहिए. मिस्ट तकनीक के बारे में भी सोचा जाना चाहिए. इसमें पानी को धुंध में बदल कर प्रयोग किया जाता है.
इससे बहुत कम पानी भी ज्यादा सक्षम बन जाता है. जिन जगहों पर छोटे वाहन जा सकते हैं वहां ऑफ रोड फोर बाय फोर वाहन होने चाहिए जिनसे पर्याप्त मात्रा में भारी दबाव से स्प्रे किया जा सकता है.
पर्वतीय क्षेत्रों में ज्यादातर पेयजल योजनाएं जंगलों से हो कर गुजरती हैं उनमें जंगलों के बीच हाईडरेंट पॉइंट रखे जाने चाहिए ताकि आग लगने पर आसपास के जंगल को बचाया जा सके. केवल पाइप ले जाना होगा. इस तरह नवाचारी तरीके अपनाने होंगे. वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के सामने एक चुनौती और है, कि थोडा दूर से आग पर प्रभावी प्रहार कैसे किया जाए. जैसे टियर गैस शैल दूर से फायर किये जाते हैं.
क्या आग बुझाने वाले शैल विकसित किये जा सकते हैं जो दूर से फायर करके आग वाले क्षेत्र में फैंके जा सकें और उनमें मौजूद रसायन आग बुझाने का काम करे. आम समाज को स्कूलों, महिला मंडलों, पंचायतों, युवक मंडलों आदि के माध्यम से जागरूक करते रहना भी वनों को आग से बचाने के लिए एक जरूरी गतिविधि मानी जानी चाहिए जिसे हर साल किया जाना चाहिए.
ज्यादातर आग गर्मियों में लगती है किन्तु अभी से तैयारी करेंगे तभी सफल नियंत्रण कर सकेंगे. सरकारों को भी इसके लिए जरूरी बजट उपलब्ध करवाना और जरूरी सुधार नियम बनाना भी एक जरूरी पक्ष है जिसकी पहल सरकार को करनी चाहिए.
