- वर्ष 2021 में 1.3 करोड़ लड़कियों और 14 लाख लड़कों की शादी 18 साल से पहले हुई
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय केराष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षणों पर आधारित शोध से मिली जानकारी
चंडीगढ़। भारत में अब भी बड़ी संख्या में बाल विवाह किया जा रहा है। वैसे तो पिछले सालों में यह संख्या घटी है, लेकिन फिर भी यह आंकड़ा परेशान करने वाला है। 1993 में जहां लड़कियों के बीच बाल विवाह 49 फीसदी था तो वह घटकर 2021 में 22 प्रतिशत रह गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षणों पर आधारित अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2021 में 1.3 करोड़ लड़कियों और 14 लाख लड़कों की शादी 18 साल से कम उम्र में हुई जिसे बाल विवाह कहा जा सकता है।
द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक यह अध्ययन पिछले तीन दशक में देश में बाल विवाह के पैटर्न पर आधारित है। इसे दूसरे रूप में कहें तो भारत में पांच लड़कियों में से एक और छह लड़कों में से एक की शादी अभी भी कानूनी रूप से कम उम्र में की जा रही है। जब कि कम उम्र में शादी करने पर सजा का प्रावधान है।
राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षणों पर आधारित अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2021 में 15.49 प्रतिशत लड़कों का बाल विवाह कर दिया गया। हालांकि, लड़कों में बाल विवाह की व्यापकता – यानी 18 साल से पहले शादी 2021 में लगभग 2 प्रतिशत थी, जो 1993 में 7 प्रतिशत से कम थी।
अध्ययन में कहा गया है कि अनुमानित जनसंख्या के आधार पर जब आकलन किया गया, तो पता चला कि वर्ष 2021 में, भारत में 1.3 करोड़ से अधिक लड़कियों और 14 लाख लड़कों ने 18 साल की उम्र से पहले शादी कर ली।
गौरतलब है कि 2006 में पारित बाल विवाह निषेध अधिनियम ने पुरुषों के लिए विवाह की कानूनी उम्र 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष निर्धारित की। उल्लंघन की सजा में दो साल तक की कैद शामिल है।
लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में शनिवार को प्रकाशित निष्कर्ष ऐसे समय में आए हैं जब एक संसदीय पैनल पुरुषों के बराबर महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाकर 21 साल करने के विधेयक की जांच कर रहा है। यह अध्ययन का नेतृत्व हार्वर्ड विश्वविद्यालय में जनसंख्या स्वास्थ्य और भूगोल के प्रोफेसर सुब्रमण्यम ने किया है। इसके सह-लेखक प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य शमिका रवि और सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता ज्वेल गौसमैन, रॉकली किम और अखिल कुमार हैं।
द टेलीग्राफ के रिपोर्टर डीएस मुडर ने जब इस मामले में प्रो. सुब्रमण्यम से बात की तो उन्होंने कहा कि लड़कियों के लिए कानूनी उम्र बढ़ाने का अच्छा कारण हो सकता है, लेकिन इसे 21 साल तक बढ़ाने के प्रस्ताव पर 18 साल से कम उम्र में भी इतनी बड़ी संख्या में शादी होने के कारणों पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संवेदनशील और संदर्भ-विशिष्ट रोकथाम पर नीतियों और जागरूकता अभियानों के साथ अनुपालन कैसे सुनिश्चित किया जाए, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
इस पर कई एक्टिविस्ट ने तर्क दिया है कि यदि महिलाओं के लिए कट-ऑफ उम्र बढ़ाकर 21 वर्ष कर दी जाती है, तो कुछ परिवार जो 18 वर्ष तक इंतजार करने के लिए तैयार हो सकते हैं, वे अपनी बेटियों की शादी पहले भी करना शुरू कर सकते हैं, यह सोचकर कि अब वयस्क होने तक इंतजार करना उनके लिए संभव नहीं है।
बाल विवाह के प्रचलन में राष्ट्रव्यापी गिरावट के बावजूद, शोधकर्ताओं ने 2006 और 2016 के बीच बड़ी गिरावट के बाद एक “ठहराव” का पता लगाया है। उनके विश्लेषण ने बंगाल, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को लड़कियों या लड़कों में बाल विवाह के उच्च प्रसार वाले राज्यों के रूप में पहचाना है।
2021 में 18 वर्ष से कम उम्र में शादी करने वाली 1.3 करोड़ लड़कियों में से 16 प्रतिशत बिहार की थीं, इसके बाद बंगाल (15 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (12 प्रतिशत), और महाराष्ट्र (8 प्रतिशत) का स्थान था।
2021 में 18 वर्ष से कम उम्र में शादी करने वाले 14 लाख लड़कों में से 29 प्रतिशत गुजरात से थे, इसके बाद बिहार (16 प्रतिशत), बंगाल (12 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (8 प्रतिशत) थे।
सुब्रमण्यन और उनके सहयोगियों ने कहा कि उन कारकों की पहचान करने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है जो बाल विवाह में राज्य-स्तरीय और जिला-स्तरीय विविधताओं और इसके चालकों को समझा सकते हैं।