संविधान विरोधी और न्याय विरोधी है बुलडोजरी न्याय 

 

मुनेश त्याग

 

कई सरकारों द्वारा अपनाई गई तथाकथित बुलडोजर न्याय की नीति को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणियों से धराशाई कर दिया है। भाजपा सरकारों द्वारा उत्तर प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश में चलाई जा रही तथाकथित बुलडोजर न्याय की मुहिम द्वारा अनेको घरों को धराशाई कर दिया गया है। इन सरकारों की इस बुल्डोजर न्याय की मनमानी नीति के खिलाफ जमायत उलेमा हिंद ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की और उसमें मांग कि बीजेपी सरकारों द्वारा कुछ राज्यों में चलाई जा रही तथाकथित बुलडोजर न्याय की नीति पर रोक लगाई जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान जो टिप्पणियां की हैं वे बेहद अहम हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणियों में कहा है कि बुलडोजर न्याय के नाम पर किसी का मकान या दुकान नहीं ढहाई जा सकती। किसी भी आरोपी का मकान नहीं गिराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि ऐसी कार्रवाई कैसे की जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक भी कहा है कि आरोपी या दोषी होने पर भी किसी का मकान नहीं ढहाया जा सकता है।

तथाकथित बुलडोजर न्याय की यह मनमानी मुहिम 2017 से जारी है। इस गैरकानूनी मुहिम के तहत बहुत सारे मकानों को इन प्रदेशों की सरकारों द्वारा गिराया जा चुका है। कई मामलों में देखा गया है की मकान को ढहाने से पहले कानूनी बचाव का पर्याप्त मौका नहीं दिया जाता और बिना समुचित बचाव का अवसर दिए ही मकान या दुकान को ढहा दिया जाता है। कई बार देखा गया है कि सांप्रदायिक भीड़ के कहने पर मकान को ढहा दिया जाता है। एक मामले में तो यह भी देखा गया है कि एक मकान मालिक के किराएदार द्वारा अपराध करने पर उसके मकान को ही ढहा दिया गया। यह कैसे हो सकता है?

सरकार का कहना है कि वह भूमाफिया, बलात्कारियों, दंगाईयों और अपराधियों के मकान ढाह रही है। यहीं पर सवाल उठता है कि वह संवैधानिक और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना किसी मकान या दुकान को कैसे ढाह सकती है? क्या सरकार न्यायपालिका बन गई है कि जो सरकार ही खुद तय करेगी और वही मकान को ढहा देगी?

अगर सरकार की इस बुलडोजर आतंकवाद की कार्यवाही को सही मान लिया जाए तो फिर इस देश में कानून के राज, अदालतों, जजों, वकीलों और पुलिस की क्या जरूरत रह जाएगी? सरकार के मन में जैसा आ रहा है वैसे ही काम कर रही है। यहीं पर यह भी देखा गया है कि बुलडोजर न्याय के नाम पर अधिकांश घर मुसलमानों के ढाए गए हैं। यहीं पर सवाल उठता है कि इन प्रदेशों में बलात्कार, हत्याओं, दंगों के अपराधों की जो घटनाएं की गई है, क्या उन सारे भूमाफियाओं, बलात्कारियों, दंगाइयों और अपराधियों के घर सरकार द्वारा ढहाये गए हैं? या वह केवल “पिक एंड चूस” करके केवल मुसलमानों के ही घर ढाह रही है? क्या सरकार के पास ऐसी कोई सूची है कि उसने तमाम माफियाओं के घर ढाह दिये हैं और उनके द्वारा कब्जाई गई जमीनों को उनसे वापस ले लिया है?

सरकार की इन गतिविधियों से साफ जाहिर है की सरकार का कानून के शासन और संविधान में कोई विश्वास नहीं है। वह साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण द्वारा नफरत की मुहिम को जारी रखने के लिए ऐसा कर रही है ताकि समाज के एक साम्प्रदायिक हिस्से को खुश किया जा सके और दूसरे हिस्से को निशाना बनाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों ने बुलडोजरी न्याय के मुखौटे को हटा दिया है। उसने दिखा दिया है कि बुलडोजरवादियों का कानून के शासन, संविधानिक प्रतिबद्धताओं और न्यायिक प्रक्रिया में कोई विश्वास नहीं है। वह सब कुछ मनमाने और निरंकुश तरीके से करना चाहती है।

सरकार अधिकांश मकानों को पिक एंड चूज करके मनमानी कार्यवाही द्वारा ढाह रही है। सरकार की इन गैर संवैधानिक और गैरकानूनी गतिविधियों को उचित नहीं ठहराया जा सकता। हमारे देश में संविधान और कानून का शासन है। कानून कहता है कि किसी भी अपराधी को कानून द्वारा दोषी ठहराए जाने तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की है कि किसी भी आरोपी का मकान नहीं ढहाया जा सकता। ऐसी कार्रवाई कैसे की जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया है कि दोषी होने पर भी किसी का मकान नहीं गिराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की है कि किसी भी अपराधी के मकान को बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाये नहीं ढहाया जा सकता। इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणियों द्वारा बुलडोजर मुखौटे को हटा दिया है और बुल्डोजरी न्याय की मुहिम को रोक दिया है।

यहीं पर कई सवाल उठाते हैं जैसे क्या अवैध बने सभी घरों और दुकानों को ढाह दिया गया है? सरकार ने अवैध घर बनाने वालों और अवैध कब्जा करने वालों पर क्या कार्रवाई की है? बुलडोजर को राजनीतिक हथियार क्यों बनाया जा रहा है? क्या सरकार ने अवैध निर्माण करने वालों की कोई सूची बनाई है? कानून की वैधानिक प्रक्रिया अपनाये बगैर किसी का मकान नहीं ढहाया जा सकता। सरकार की बुलडोजर नीति से साफ जाहिर है कि सरकार का इरादा अवैध और गैरकानूनी है। यह बुलडोजर न्याय का कैसा कांसेप्ट है कि आरोपी का मकान ढहाया जा रहा है। यह कानूनी प्रक्रिया का मजाक है, जीवन के अधिकार का हनन है। क्या सरकार ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की है? उनकी कोई लिस्ट बनाई है? ऐसे कोई तथ्यों की सूची सरकार के पास नहीं है।

इस सारे नजारे को देखकर लगता है कि सरकार की यह कार्रवाई एकदम गैरकानूनी और मनमानी है। यह व्यवस्था और सरकार की पूरी असफलता है। सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों ने लाखों करोड़ों घरों को मनमाने ढंग से ढहाये जाने से बचा लिया है। इसकी टिप्पणियों ने इन राज्य सरकारों द्वारा घर ढहाने की मनमानी हरकतों का संविधान विरोधी चेहरा भी नकाब कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणियां एकदम स्वागत योग्य हैं और देश की जनता को राहत देने वाली हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों ने बेलगाम सत्ता का मुखौटा बने बुलडोजर न्याय की मुहिम को धराशाई कर दिया है।

इसी के साथ-साथ यह भी बहुत जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणियों में कहा है कि वह मकान ढहाने के मामले में एक राष्ट्रीय कार्य नीति अपनाना चाहती है ताकि सरकारों की मनमानी और निरंकुश हरकतों को धाराशाई करके जनता को परेशान होने से बचाया जा सके। इसके लिए उसने सम्बंधित पक्षों और इच्छुक लोगों से सुझाव मांगे हैं। जनता से जुड़े इस ज़रुरी मामले में हमारे कुछ सुझाव हैं जो निम्न प्रकार हैं,,,,

1.अभी तक गैरकानूनी और मनमाने तरीके से ढाए गए सभी मकानों को सरकार द्वारा बनवाया जाएं,

2. गैर कानूनी रूप से मकान बनवाने वाले दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही हो,

3. सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में राष्ट्रीय स्तर पर गिराए गए सभी मकानों की जांच हो,

4. बुलडोजर आतंक फैलाने वाले नेताओं जैसे मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक बनने पर रोक लगाई जाए और उन्हें तुरंत पदों से हटाया जाए,

5. सभी दोषी सरकारी अधिकारियों पर कार्यवाही हो,

6. मकान या दुकान ढहाये जाने की न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार न किया जाए,

7. सरकार मनमाने रूप से पिक और चूज करके मकानों की गैरकानूनी तरीके से कार्यवाही ना करें,

8. सरकार की बुरी, मनमानी और निरंकुश नियत और नीतियों पर प्रभावी रोक लगे,

9. साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की नफरत भरी सरकारी हरकतों पर तुरंत और प्रभावी रोक लगाई जाए,

10. पूरे देश की जनता में न्याय और कानूनी प्रक्रिया के प्रति जागरूकता पैदा की जाए ताकि वह कानूनी प्रक्रियाओं के तहत मकान का और दुकानों का निर्माण करें

इन प्रभावी कदमों को उठाकर ही किसी भी सरकार के बुलडोजरी आतंकवाद पर और अन्याय पर रोक लगाई जा सकती है और देश में कानून और शासन का प्रभावी निजाम कायम किया जा सकता है। सरकारों को सांप्रदायिक जातिवादी निरंकुश और मनमाने तरीके से मकानों और दुकानों के ढाये जाने पर प्रभावी रोक लगाई जा सकती है। तथाकथित बुलडोजर न्याय पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही कारगर, समुचित और समसामयिक टिप्पणियां करके भारत की जनता को राहत की सांस लेने का मौका दिया है। इससे संविधान और कानून के शासन को स्थापित करने में बहुत बल मिलेगा।