हरियाणाः जूझते जुझारू लोग- 23
अमृतलाल चोपड़ा – धीर- गंभीर कर्मचारी नेता ही नहीं बेहतरीन हॉकी कोच भी
सत्यपाल सिवाच
मैं सन् 1980 में शिक्षक नियुक्त हुआ तो मेरी मुलाकात करनाल के बल्ला निवासी रामकिशन मान से हुई। मेरी जिज्ञासा को देखकर उन्होंने मुझे बताया कि अध्यापक संघ में काम करना चाहते हो तो मास्टर सोहनलाल, शेर सिंह और अमृतलाल चोपड़ा से मिलो। उनकी बातों से प्रेरित होकर में दो दिन बाद नरवाना पहुंच गया। बताए गए पते पर पहुंचने पर पता चला कि अमृतलाल जी खिलाड़ी बच्चों के साथ बाहर गए हैं और रात तक वापस लौटेंगे।
अगले दिन उनसे मुलाकात हो सकी। उस समय भी वे स्कूल के मैदान में हॉकी टीम के छात्रों की प्रैक्टिस करवाते हुए मिले। खैर, खेल का ब्रेक होने पर उनसे परिचय हुआ तो बहुत आत्मीय और प्रेरणा देने वाले लहजे में बात की। मैं कुछ ही पल में उनसे इस तरह खुल गया मानो वर्षों के परिचित हों। उन्होंने पुराने जमाने के संघर्षों की चर्चा करते हुए सोहनलाल के अलावा शेरसिंह और कामरेड पृथ्वीसिंह गोरखपुरिया से मिलने की सलाह दी। जब मैंने कहा कि मैं कामरेड पृथ्वी सिंह को जानता हूँ तो बेहद खुश हुए। उनकी पहल पर ही मेरा परिचय अन्य प्रगतिशील शिक्षकों के साथ हुआ।
सभी पुराने साथी अमृतलाल और सरदार अमोलक सिंह को बहुत दबंग, मजबूत और त्यागी कार्यकर्ता के रूप में जानते थे। अमृत लाल चोपड़ा का जन्म 16. अगस्त .1945 को जीन्द जिले के नरवाना गांव की चोपड़ा पत्ती में एक किसान परिवार में हुआ था। मैट्रिक और सी.पी.एड. करने के बाद पहले वे पंजाब में पी.टी.आई.पद पर नियुक्त हुए और बाद में 01मई 1968 को हरियाणा शिक्षा विभाग में स्थायी आधार पर शिक्षक हो गए। वे 31 अगस्त 2003 को सेवानिवृत्त हुए।
अमृत लाल जी हॉकी के बहुत अच्छे खिलाड़ी और कोच थे। जिस भी विद्यालय में रहे वहां हॉकी की अच्छी टीम तैयार की। उनके विद्यालय की टीम अपवाद को छोड़कर दर्जनों साल राज्य तक पहुंचती रही। अच्छे खिलाड़ी के नाते उनका संपर्क पूरे राज्य में पी.टी.आई. शिक्षकों के साथ हो गया था। उन्हें खेल के साथ यूनियन में आने के लिए भी प्रेरित करते थे। वे सुबह-शाम स्कूल के मैदान में ही मिलते थे।
स्वभाव से न्यायप्रिय और संघर्षशील होने के कारण वे नौकरी में आते ही यूनियन से जुड़ गए थे। अमृत लाल चोपड़ा को सन् 1969 में ब्लॉक, 1971 में उपमंडल और 1973 में जिला स्तर पर यूनियन में चुन लिया गया था। जब बंसीलाल ने अध्यापकों की बदलियां कीं तो उन्हें सफीदों क्षेत्र में काम करना पड़ा। यहाँ रहते हुए भी यूनियन में जुड़े रहे। इसी बीच वे छात्र नेता से वामपंथी नेता बने कामरेड पृथ्वीसिंह गोरखपुरिया के संपर्क में आए। वे 1973, 1980, 1986-87, 1993 और बाद के संघर्षों में अग्रणी पंक्ति में रहे।
अमृत लाल सेवानिवृत्ति तक लगातार संघर्षों बने रहे। उन्हें कई बार निलंबित किया गया; स्थानांतरित किया गया और 1993 में बर्खास्त किया गया। तीन बार में 54 दिन जेल में रहे। 1973 में एक महीना, 1987 में 12 दिन बुड़ैल जेल में और 1989 में रोडवेज आन्दोलन में 12 दिन जीन्द जेल में रहे।
धैर्य, संयम और सूझबूझ से काम लेने भी वे दक्ष थे। जब अध्यापक संघ भवन ट्रस्ट के विवाद के चलते विभाजित हो गया तो सोनीपत जिले गोहाना क्षेत्र के स्कूलों को दौरा करते हुए उन्हें और सत्यप्रकाश को दूसरे पक्ष के समर्थकों ने घेर लिया और वापस चले जाने या नतीजे भुगतने की धमकी दी। अमृतलाल जी ने उन्हें समझाया कि वह रास्ता अध्यापक को शोभा नहीं देता। सिर ही फुड़वाना या फोड़ना हुआ तो आपके नेता रामपाल दहिया के पास खरखौदा स्कूल में चलते हैं। वे सहमत हो गए। सभी खरखौदा आ गए। वे लोग रामपाल के ही आदमी थे। सारी बात रखीं तो रामपाल जी ने उनकी ओर से गलती मानी और भविष्य में प्रचार में बाधा न डालने का भरोसा दिया।
उनके अदम्य साहस और निडरता से सभी प्रभावित हो जाते थे। सन् 1993 में सर्वकर्मचारी संघ के जिला प्रधान थे तो पुलिस ने प्रदर्शन को रोक कर कार्रवाई करने की चेतावनी दी। चोपड़ा जी आगे बढ़कर एस.पी. को ललकारते हुए कुर्ते के बटन खोलकर कहा कि हिम्मत है तो मारो गोली। छाती में खाएंगे, पीठ पर नहीं। माहौल गरमा गया। स्थिति को भांपकर जुलूस को आगे बढ़ने दिया गया।
वे बहुत अच्छे संगठनकर्ता और प्रेरणादायक व्यक्ति रहे। धौलाकुआं चोपड़ा पत्ती वर्षों तक यूनियन का केन्द्र रहा। सन् 1985 में यूनियन शुद्धिकरण अभियान में भी वे शेरसिंह के निकटतम सहयोगी रहे। वे अध्यापक संघ में राज्य उपाध्यक्ष और संगठन सचिव रहे। बाद में मेरा स्थानांतरण भी यमुनानगर से जीन्द हो गया था। उनकी उपस्थिति कम होने लगी थी। एक दिन मैं उन्हें नरवाना जाकर मिला और अपनी चिंता जताई तो बोले – “सत्यपाल भाई, तीसरी पीढ़ी आने पर पता चलता है कि पोते-पोतियों के साथ समय बिताना कितना दिलचस्प होता है। मैं अब अधिक समय नहीं दे पाऊंगा किन्तु जरूरत पड़ने पर साथ रहूंगा।
लगभग साल भर बाद वे कुछ पुराने फोटोग्राफस् , अखबारों की कतरनों और दस्तावेजों के साथ मेरे पास जीन्द कार्यालय में आए- “इन्हें तुम रख लो, वरना ये बाद में ढूंढे नहीं मिलेंगे। अगली पीढ़ी को देकर जाना।” मेरा अहसास गहरा हो गया कि रिकॉर्ड सहेजकर रखना कितना महत्वपूर्ण होता है। मैंने सचेत प्रयास भी जारी रखा है। 3 जनवरी 2025 को दिल का दौरा पड़ने से अमृत लाल जी दुनिया को विदा कह गए। जिसके बारे में समय पर पता न चलने का बहुत खेद है। अभी हाल में हिसार जाकर उनके बेटे रणदेव सिंह से घर मुलाकात हुई तो बहुत सुकून महसूस किया। सौजन्य: ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक -सत्यपाल सिवाच
