औरत विरोधी अपराधों की आंधी
मुनेश त्यागी
पिछले काफी समय से अखबारों के माध्यम से पढ़ने को मिल रहा है कि जैसे हमारे देश में औरत विरोधी अपराधों की आंधी आई हुई है। इसे देखकर जनता में डर बैठ गया है कि हमारे समाज में औरतें, बच्चियां, छात्राएं, बहुएं और बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। इस बारे में 30 अक्टूबर 2024 से लेकर 5 जून 2025 तक एक अध्ययन किया गया और टाइम्स आफ इंडिया में रिपोर्ट किए गए 96 केसिस का अध्ययन किया गया।
इसे देखकर जग जाहिर हो रहा है कि जैसे पूरे देश में और खासकर उत्तर प्रदेश में औरतों के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध हो रहे हैं। औरतों के खिलाफ हो रहे अपराधों में बलात्कार, हत्याएं, ऑनर किलिंग, गर्भपात, पिटाई, गैंगरेप, अपहरण, दहेज, धोखाधड़ी से बलात्कार, सताना, जालना, सेक्सुअल हैरेसमेंट और बलात्कार के प्रयास जैसे अपराध शामिल हैं। इनमें सबसे ज्यादा बलात्कार यानी दुष्कर्म की घटनाएं हैं।
औरतों के खिलाफ किए जा रहे अपराधियों को जानकर जैसे होश उड़ गए हैं। औरतों के खिलाफ अपराध करने वालों में डॉक्टर, राजनेता, पिता, वॉचमैन, नाना, मौसा, पार्टी अध्यक्ष, सेवादार, कोचिंग सेंटर का मालिक, पड़ोसी, प्रोफेसर, लेबर ठेकेदार, सिपाही, पति, सौतेला बाप, बाइक पर लिफ्ट देने वाले, कार में लिफ्ट देने वाले, ठेकेदार, शिक्षक, सैनिक, चाचा, छात्र, डिप्टी जेलर, दांतों के डॉक्टर, ट्रेनर, फूफा, चचेरा भाई, प्रधान और उसके साथी, जूडो कोच, मदरसे का क्लर्क, छात्र, गैंग्स्टर्स और शराबी लोग, आदि शामिल हैं ।
इन अपराधों में सबसे ज्यादा जिन्हें शिकार बनाया गया है, उनका विवरण इस प्रकार है। इन लगातार हो रहे अपराधों का शिकार होने वालों में बच्चियां, बेटियां, छात्राएं, नानी, सौतेली बेटियां, पत्नियां, बहुएं, मजदूरिनें, और भतीजियां आदि शामिल हैं। जैसे कोई रिश्ता छोड़ा ही नहीं गया है। औरत विरोधी अपराध की इस सुनामी में जैसे किसी को नहीं बख्शा गया है और अपराधियों द्वारा इन अपराधों को बिना किसी खौफ और लोक लिहाज के किया जा रहा है।
इसमें जवान औरतों और बूढ़ी औरतों के साथ-साथ वे बच्चियां भी शामिल हैं जिनकी उम्र एक दिन से लेकर, बीस साल की अबोध बच्चियां भी शामिल हैं। उनका विवरण इस प्रकार है… उनमें 1 दिवसीय बच्ची, 7 माह की बच्ची, 18 महीने की बच्ची, 2 साल, 3 साल, 4 साल, 5 साल, 6 साल, 7 साल, 8 साल, 9 साल, 12 साल, 13 साल, 14 साल ,15 साल, 16 साल, 17 साल, 18 साल, 19 साल और 20 साल की बच्चियां तक शामिल हैं।
यहां पर बेहद अफसोसजनक और परेशान करने वाला सवाल उठता है कि आजादी के 78 साल बाद भी ये परिस्थितियों क्यों बनी हुई है? भारतीय समाज में औरत को देवी का दर्जा दिया गया है। भारत का संविधान सबको आजादी और समानता का अधिकार देता है, फिर भी औरतों से यह आजादी, सुरक्षा और समानता का अधिकार क्यों छीना जा रहा है? इन अधिकारों को छीनने वालों के खिलाफ समय से क्या सख्त कार्रवाई की जा रही है? हजारों साल से चली आ रही यह औरत विरोधी मानसिकता और सोच आज भी क्यों बनी हुई है? औरत विरोधी इस पितृसत्तात्मक सोच को आज तक भी क्यों नहीं बदला गया? औरत को आज भी आदमी के बराबर क्यों नहीं समझा जा रहा है? वह आज भी “इस्तेमाल करो और फेंको” की मानसिकता का शिकार क्यों बनी हुई है?
अमर उजाला की 31 मई 2025 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर तीसरी महिला घरेलू हिंसा की शिकार है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 6-7 महीनों में उत्तर प्रदेश में 70 से ज्यादा बलात्कार की घटनाएं हुई हैं। पूरे देश के पैमाने पर तो यह संख्या और भी भयावह ही होगी। उपरोक्त आंकड़ों के अनुसार औरत विरोधी अपराधों की इस सुनामी का मुख्य कारण हमारे समाज में औरत विरोधी पितृसत्तात्मक सोच का बने रहना है। यहां अभी भी औरत को बराबरी का अधिकार नहीं दिया गया है। उसे आज भी दहेज में ली दी जाने वाली वस्तु समझा जा रहा है। पुत्र न पैदा करने के कारण उसे दोषी ठहराया जा रहा है और उसकी हत्या तक की जा रही है। बलात्कार की घटनाएं बता रही हैं कि बलात्कारियों को कानून का, नैतिकता का और समाज का कोई खौफ नहीं है। समाज और अपराधियों की इस बीमार मानसिकता ने मानवता की सारी हदें पार करती है। औरत की सुरक्षा, औरत के अधिकार, औरत की बराबरी जैसे आधुनिक मूल्यों से जैसे उसे कोई लेना-देना नहीं है और उसके लिए औरत के अधिकारों, सुरक्षा और आजादी के कोई मायने नहीं हैं।
औरत की सुरक्षा, आजादी, बराबरी और अधिकारों के मुद्दे अधिकांश राजनीतिक दलों, लेखकों, कवियों, साहित्यकर्मियों और बुद्धिजीवियों के अचार विचारों, लेखन और राजनीति के मुद्दे नहीं हैं। अधिकांश राजनीतिक दल और अधिकांश साहित्यकार औरतों के मुद्दों को ना तो बहस के लिए उठा रहे हैं, ना ही उन पर सटीक तरीके से लिखा पढ़ा जा रहा है। औरतों पर हो रहे अधिकार तो जैसे उनकी कथनी, करनी, सोच और लेखनी का हिस्सा ही नहीं हैं, इन पर कोई जोरदार बहस भी नहीं हो रही है । समाज ने भी इस मुद्दे को लेकर अपनी बेरुखी अख्तियार की हुई है। वहां पर भी कोई असरदार बहस या संघर्ष मौजूद नहीं है। औरतें जैसे आज भी दोयम दर्जे की नागरिक बनी हुई है। इन्हीं सब कारणों से औरतों के खिलाफ अपराध करने वालों का मनोबल बहुत ऊंचा है, इसीलिए उन्हें औरत विरोधी अपराध करने से कोई डर नहीं लगता है।
औरत विरोधी अपराधों की इस आंधी और सुनामी को रोकने के लिए, अब यह सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि औरत को शिक्षा, बराबरी, सुरक्षा, रोजगार और आजादी मुहैया कराई जाएं, औरत के खिलाफ अपराध करने वालों को तुरंत सख्त से सख्त सजा दी जाए, औरत विरोधी अपराधों को समय से निपटाने के कानूनी प्रावधान निर्धारित किए जाएं और इसके लिए समय सारिणी बनायी जाये। पूरे समाज, कार्यालयों और स्कूल, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों और कार्यालयों में इस मुद्दे पर जोरदार बहस चलाई जाए और और औरत की आजादी, सुरक्षा और बराबरी के अधिकारों के मुद्दों को स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए। भारत की सारी पार्टियां इस मुद्दे को अनिवार्य रूप से अपने राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल करें और इस पर काम करें, तभी जाकर इस औरत विरोधी मानसिकता और अपराधों की आंधी को रोका जा सकता है।