कविता
भूख
-मंजुल भारद्वाज
वक़्त का क्या
वो बदलता रहता है
फ़ितरत का क्या
बदलती रहती है
दुनिया का क्या
रंग बदलती रहती है
मौसम का क्या
पल पल बदलता है
नहीं बदलती है
भूख !
भूख कभी अकेली नहीं होती
उसके साथ होते हैं
अन्याय,शोषण
असमानता,भेद
धर्म,वर्ण
लालच,झूठ
और सत्ता !
सत्ता कभी नहीं बदलती
सिर्फ़ सत्ताधीश बदल जाते हैं !
सत्ता का मानस नहीं बदलता
सिर्फ़ नियमावली बदल जाती है !
सत्ता कभी
सत्य के साथ नहीं होती
क्योंकि सत्ता
साम,दाम,दंड,भेद से
संचालित होती है !
सत्य शाश्वत होता है
सत्य परिपूर्ण होता है !
सत्ता अपूर्ण होती है
सत्ता का साथीदार होता है
झूठ !
सत्मेव जयते
दिल बहलाव का
जुमला है !
जो हार जीत से परे हो
वही सत्य है !
हाँ
सत्ता हारती रहती है
सत्ता जीतती रहती है !
सत्ता कभी सत्य के सामने नहीं टिकती
भस्म हो जाती है
इसलिए सत्ता को सत्य से परे रखा जाता है !
सत्ता को झूठ,पाखंड,फ़रेब,भ्रम के
ताबूत में रखा जाता है !
ताबूत को ढोती है भूख
बुतों को ज़िन्दा रखती है भूख !
बुत मर जाते हैं
पर भूख नहीं मरती
भूख नहीं बदलती!
