साहित्य चिंतन – 25
वैचारिक साहस से आई थी सार्त्र और सिमोन द बुआ की प्रतिबद्ध सहचर्या और मूल्यवत्ता
आनंद प्रकाश
सार्त्र और सिमोन द बुआ का संदर्भ लेकर ‘लिव इन’ के बारे में आगे विचार करें। मसलन, ‘लिव इन’ में यह अनिवार्यतः दिखता है कि समाज से मिलने वाली शक्ति और श्रेष्ठता का दावेदार पुरुष होता है और ‘लिव इन’ के भीतर स्थायित्व, संतुलन और एकसारता की डोर पुरुष के हाथों में होती है। इस नाते ‘लिव इन’ के भीतर नारी की हालत विवाह में उपस्थित हालत से भी बदतर होती है। ऐसे सवालों का सामना ‘लिव इन’ की व्यापक अवधारणा के उभार से काफ़ी पहले सार्त्र और सिमोन द बुआ ने भी किया था और उनके संबंधों में उसे लेकर कठिनाइयां पैदा हुईं थीं।
लेकिन सार्त्र और सिमोन द बुआ जागरूक व्यक्ति थे और अपने वक्त के राजनीतिक-सांस्कृतिक मिशन से जुड़े थे। जिन संरचनात्मक दबावों को वे व्यापक स्तर पर महसूस करते थे उनकी छाया उन्हें निजी संबंधों के बीच भी नज़र आती थी। फिर, साम्राज्यवाद-विरोध की राजनीति का सीधा अथवा परोक्ष संबंध नारीवाद की राजनीति से जुड़ता था।
सार्त्र और सिमोन द बुआ की लंबी मित्रता में दिखने वाली प्रतिबद्ध सहचर्या और मूल्यवत्ता उनके वैचारिक साहस से आई थी। यह सवाल भी था कि उनकी मित्रता का आयाम आत्मनिर्भर व्यक्तियों के एक छत के नीचे रहने का आयाम था। साहित्यकार होने के नाते सार्त्र और सिमोन द बुआ ने उक्त सिद्धांत को गहराई से समझा था। ज़ाहिर है कि वे अगर लेखक-चिंतक न होते तो विवाह से बाहर वैसा संबंध न बना पाते।
