एस.पी.सिंह की कविता – अभया

कविता

अभया

एस. पी. सिंह

बेटी,

तू केवल देह नहीं,

तू तो मेरी आत्मा का गीत है,

मेरे हृदय की अनवरत धड़कन,

माँ की ममता का उजास,

पिता के श्रम का विश्वास।

तेरे जन्म के क्षण में

स्वर्ग की सरस्वती उतरी थी,

तेरे पहले रोने में

सृष्टि ने नया राग रचा था।

पर आज—

क्यों आवश्यक हुआ

कि तेरे लिए कोई दिन मनाया जाए?

क्या तेरे होने का उत्सव

सिर्फ एक तिथि पर सीमित है?

तू तो हर सांस में, हर श्वास में

नवीन प्रभात की तरह खिलती है।

परिस्थितियाँ प्रश्न करती हैं—

जब “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”

के नारों की गूँज

सत्ता के गलियारों में खो जाती है,

जब वही लोग जो नारा लगाते हैं

तेरे आँसुओं पर

मौन का वस्त्र ओढ़ लेते हैं।

बेटी,

तू जुल्म के अंधेरों में भी

दीपक-सी जलती है।

तेरी आँखों में अब भी

आसमान की उजली कामना है।

तेरे पाँवों में अब भी

नवयुग के पथ की आहट है।

मैं तुझे पंख देना चाहता हूँ,

ऐसे पंख जो केवल उड़ान न दें

बल्कि तेरे हृदय को निडर कर दें,

तेरी दृष्टि को निर्मल कर दें,

तेरी आत्मा को अभय कर दें।

तू ज्ञान का दीप बने,

साहस का स्तंभ बने,

अपने पिता का गर्व बने,

इस समाज की जागृति बने।

तू केवल बेटी नहीं,

तू है इस युग का साहस,

भविष्य का उषाकाल,

धरती का सबसे कोमल

और सबसे अडिग सत्य।

बेटी,

तेरे हर आँसू को

मैं संकल्प बनाकर पी जाऊँगा।

तेरी हर हँसी को

इस संसार की पूजा बना दूँगा।

तेरे लिए हर दिन,

हर ऋतु,

हर युग—

तेरा पर्व होगा।

क्योंकि तू—

मेरे जीवन का उजाला है,

इस सृष्टि का अमूल्य गीत है,

“अभया” है—

जो डर को नकार कर

स्वतंत्रता की नई गाथा लिखेगी।

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