… तो अगली बार जब सपना देखो

… तो अगली बार जब सपने देखो

विजय शंकर पांडेय

सपने पूरे करने हैं?

किताब मत खोलो, टीवी खोलो।

डिग्री से काम नहीं चलेगा,

फेयरनेस क्रीम से चमको, वही है असली इंट्री टिकट।

शैम्पू से झाग उठेगा,

बाल हिलाओ तो नौकरी झट से लगेगी।

साबुन से नहाते ही किस्मत खुल जाएगी,

पड़ोसी तक कहेगा — “भविष्य उज्ज्वल है भाई।”

हेयर ऑयल लगाओ,

तेल से हेलिकॉप्टर की उड़ान मिलेगी।

न्यूट्रीशन ड्रिंक पी लो,

ड्रिंक नहीं, सीधा ड्रीम पी रहे हो।

चॉकलेट खाओ और हर इंटरव्यू में मुस्कराओ,

क्योंकि इंटरव्यूवर को भी “स्वीटनेस” पसंद है।

औषधीय मलहम?

वो तो सीधा इंश्योरेंस है, हर दर्द गायब, हर जॉब पास।

सैनिटरी पैड का ऐड कहता है —

“अब तो लड़कियाँ चाँद से भी आगे हैं”

तो पढ़ाई छोड़ो, पंख जोड़ो।

हाँ, सपना किसी की किताब में नहीं,

हर ऐड की स्क्रिप्ट में लिखा है।

किस्मत की चाबी है ब्रांडेड ट्यूब,

और मोटिवेशनल कोट्स से

ज़्यादा असरदार है टीवी रिमोट।

तो अगली बार जब सपना देखो,

कॉपी पेन मत पकड़ो,

शॉपिंग कार्ट पकड़ो।