कविता का विषय
रामकिशोर मेहता
कवि का वक्तव्यः जीवन में कभी कभी ऐसा लगता है कि अमुक विषय पर कविता हमारी पकड़ में बस आ ही रही है और वह फिसल जाती और हम कोशिश करने के बाद भी उसे पकड़ नहीं पाते।
दूर , कहीं धुँधला सा
विचारों और निगाहों के
फोकस से बाहर
मृगमरीचिका सा
समानांतर दूरी बनाए हुए
हाँफता, भागता
पकड़ से बाहर
मेरी कविता का विषय।
सावन के अंधे के लिए
फागुनी रंगों से रचा, बसा
कुछ गीला, कुछ चिपचिपा
मेढक सा
हाथ से फिसलता हुआ
मेरी कविता का विषय।
दूर कहीं
गड्ड मड्ड होता हुआ विचित्र
सर और पैर हीन
आधुनिक सा चित्र
विभिन्न आकृतियों में
होता हुआ विलीन सा
मेरी कविता का विषय।
सड़कों पर घूमता हुआ
धूल भरे
भूतहे चक्रवात सा
मेडिसिन की दुकान पर
बिकती हुई
पवित्र राख सा।
विसंगतियों के बीच
अदृष्य से दृष्य
और फिर
दृष्य से अदृष्य
होता हुआ
मेरी कविता का विषय।
(व्हाट्सएप से साभार)