ग़ज़ल
राकेश शर्मा
नाम का लोलुप है जो, ईनाम का शौक़ीन है,
मान लूं कैसे वो शायर मेरा समकालीन है
लाल रूसी गाल पर जड़ कर तबाही की चपत,
किरकिरी अमरीकियों की आंख की अब चीन है
घर से निकलो तो कफ़न सर बांध के निकला करो,
हुक्मरां इस मुल्क का आखेट का शौक़ीन है
नाचती है ख़ुद, नचाती है समूचे मुल्क को,
तख़्त पे दिल्ली के कठपुतली कोई आसीन है
सुन लें वो, रखते हैं जो आज़ाद होने का भरम,
आज भी यह मुल्क थैलीशाहों के आधीन है
जी रहे कीड़ों के जैसा करके किस्मत पे यकीन,
तेरी राशि कर्क है तो मेरी राशि मीन है
फ़िक्र है दुनिया की जिसको उसकी दुनिया है तबाह,
ख़ुश है वो जो स्वार्थों को साधने में लीन है
मुल्क से ज्यादा अहम, लो हो गये दैरोहरम,
अक्ल पे लानत है यह, एहसास की तौहीन है
ज़िन्दगी लगती है मुझको इंकलाबी फ़ितरतन,
पल में खट्टी, पल में मीठी, बाज पल नमकीन है
मेरे बारे में अमूमन दोस्तों की है यह राय,
है ज़ुबां का तल्ख़, लेकिन आदमी शालीन है