अजय शुक्ल की बेतुकी बातें – जॉब इंटरव्यू

बेतुकी बातें की नौंवीं कड़ी

जॉब इंटरव्यू

अजय शुक्ल

साक्षात्कारकर्ता: अपना संक्षिप्ततम परिचय दीजिए?

उम्मीदवार: मैं एक आकांक्षी हूं।

साक्षात्कारकर्ता: क्या चाहते हो?

उम्मीदवार: दो जून की रोटी और एक छत।

उम्मीदवार: पक्की छत? छप्पर से काम नहीं चलेगा?

साक्षात्कारकर्ता: छप्पर न हो तो भी चलेगा

साक्षात्कारकर्ता: एक्सीलेंट। कोई महत्वाकांक्षा नहीं?

उम्मीदवार: आकांक्षी की कोई महत्वाकांक्षा नहीं होती। महत्वाकांक्षी लोग टू मच डेमोक्रेसी की उपज होते हैं। ये लोग आंदोलनजीवी भी होते हैं। संक्षेप में कहूं तो वे ग़द्दार होते हैं।

साक्षात्कारकर्ता: साहित्य पढ़ा है?

उम्मीदवार: थोड़ा थोड़ा

साक्षात्कारकर्ता: सबसे ख़राब होता है सपनों का मर जाना। यह एक मशहूर कविता की लाइन है। इस पर टिप्पणी करो।

उम्मीदवार: बेहूदी कविता है। सपनों के मरने से भी ज्यादा ख़राब होता है अपना ख़ुद का मर जाना।

साक्षात्कारकर्ता: तुम्हारे रेज्यूमे में दर्शनशास्र का भी उल्लेख है। बताओ सत्य क्या है?

उम्मीदवार: सत्य वही है जो मालिक को अच्छा लगे। वहीं सुंदर और शिव भी है। सत्यं शिवं सुंदरम्। मैं अद्वैत में यकीन करता हूं। इस ब्रह्मांड में सिर्फ एक सत्य है, सत्ता है। और वह है मेरा मालिक। मेरा साहब। सिर्फ वही करता है। वहीं कर्ता है। कबीर बहुत पहले कह गए थे: साहब सों सब होत है , बंदे ते कछु नाहिं राई ते परबत करै , परबत राई माहिं।

साक्षात्कारकर्ता: वाह! कमाल है!! तुम नौकरी के लिए बिल्कुल फिट हो। तुम्हारे जैसे कर्मवीरों के लिए ही कहा गया है: न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे, ये लोग कितने मुनासिब हैं, नौकरी के लिए।

उम्मीदवार: मतलब?

साक्षात्कारकर्ता: यू आर सिलेक्टेड।