अशक्त/सशक्त स्त्रियाँ
अशक्त स्त्रियाँ को न तो सशक्त का अर्थ पता है न अशक्त का
उन्हें तो यह भी नहीं पता कि उनका भी कोई दिवस है
न ही उन्हें मालूम है कि
कभी किसी ने उनके लिए लिखीं हैं कविताएं या कहानियाँ
मैंने खेतों में काम करती स्त्रियों को देखा है बहुत पास से
उनसे मैं मिलकर भी आया हूं
उनका महिला दिवस भी आम दिनों जैसा था
सुबह से शाम तक चूल्हा फूंकना
खेतों में काम करने के बाद घर पर फिर से काम पर लौटना
घर लौटकर फिर से काम पर खटना
उनका कोई संडे था न कोई वुमन डे
इसके बावजूद उनके चेहरे पर न थकान न थी कोई शिकन
बस मुस्कान थी
लौटते हुए खुशी खुशी बतिया रही थी
सुन्दरता क्या होती है, उन्हें नहीं पता
काम पर जाते हुए बस एक बार आइने में
जैसे तैसे संवार लेती हैं अपने बाल
मेकअप के नाम पर लगा लेती हैं
कोई सस्ती सी क्रीम
जो उन्होंने ने खरीदी थी किसी फेरी वाले से
पिछले करवाचौथ के दिन
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प्रासंगिक विवेचन
सत्य दर्पण दिखलाती कविता। बहुत सुंदरता से यथार्थ का दर्पण शब्दों द्वारा चित्रित किया गया है इस कविता के भावों में।